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खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: रसायन, डिहाइड्रेशन और भारी धातुओं से बढ़ रहा खतरा

खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: रसायन, डिहाइड्रेशन और भारी धातुओं से बढ़ रहा खतरा

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खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: रसायन, डिहाइड्रेशन और भारी धातुओं से बढ़ रहा खतरा

खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: भारत के किसान देश का पेट भरते हैं. लेकिन आज एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आ रही है. देश के विभिन्न हिस्सों में खेती-किसानी से जुड़े लोगों में किडनी की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. यह समस्या अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले रही है. हाल ही में हुए शोध ने इसकी मुख्य वजह सामने लाई है.

खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: रसायन, डिहाइड्रेशन और भारी धातुओं से बढ़ रहा खतरा
खेती-किसानी से जुड़ी किडनी बीमारी: रसायन, डिहाइड्रेशन और भारी धातुओं से बढ़ रहा खतरा

यह समस्या कितनी गंभीर है?

ग्रामीण इलाकों में रहने वाले किसानों और खेतिहर मजदूरों में क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के मामले खतरनाक गति से बढ़े हैं. विशेष रूप से तटीय और गर्म इलाकों में यह समस्या अधिक देखी जा रही है. इसके पीछे कोई एक कारण नहीं बल्कि कई कारण जिम्मेदार हैं.

खतरनाक रसायन और पेस्टिसाइड्स

किसान फसलों को कीटों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों का use करते हैं. ये रसायन सीधे त्वचा के संपर्क में आते हैं. साथ ही, ये जहरीले पदार्थ पानी और मिट्टी में मिलकर भूजल को दूषित कर देते हैं. फलस्वरूप, यही दूषित पानी पीने से किडनी धीरे-धीरे खराब होने लगती है.

पानी की कमी (डिहाइड्रेशन)

किसान घंटों धूप में काम करते हैं. इस दौरान उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता. नतीजतन, शरीर में पानी की कमी हो जाती है. लगातार डिहाइड्रेशन की स्थिति किडनी पर अतिरिक्त दबाव डालती है. अंततः इससे किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

भारी धातुओं का विषैला प्रभाव

कुछ इलाकों की मिट्टी और पानी में कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुएं प्राकृतिक रूप से मौजूद होती हैं. लंबे समय तक इन धातुओं के संपर्क में रहने से किडनी की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा, कुछ रासायनिक उर्वरक भी मिट्टी में इन धातुओं की मात्रा बढ़ा देते हैं.

दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक use

मजदूरी करने वाले किसान अक्सर शरीर के दर्द को ignore करते हैं. वे बिना डॉक्टर की सलाह के दर्द निवारक दवाएं लेते हैं. ये दवाएं सीधे किडनी पर toxic प्रभाव डालती हैं. समय के साथ यह आदत किडनी फेलियर का कारण बन सकती है.

किडनी खराब होने के शुरुआती लक्षण क्या हैं?

इन लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है.

  • थकान और कमजोरी लगातार बने रहना.

  • पैरों और आंखों में सूजन आना.

  • भूख कम लगना या जी मिचलाना.

  • पेशाब की मात्रा में कमी आना.

  • त्वचा में रूखापन और खुजली होना.

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कैसे बचें इस गंभीर समस्या से?

किसान अपनी मेहनत से अनाज का भंडार भरते हैं. उनका स्वस्थ रहना हमारे लिए बहुत जरूरी है. निम्नलिखित उपाय अपनाकर वे सुरक्षित रह सकते हैं.

सुरक्षात्मक उपकरणों का use जरूर करें

खेत में रसायनों का छिड़काव करते समय हमेशा दस्ताने, मास्क और पूरे बाजू के कपड़े पहनें. इससे त्वचा का सीधा संपर्क रसायनों से नहीं होगा.

भरपूर मात्रा में पानी पिएं

धूप में काम करते समय अपने साथ पानी की बोतल जरूर रखें. नियमित अंतराल पर पानी पीते रहें. इससे डिहाइड्रेशन और किडनी पर दबाव दोनों कम होंगे.

जैविक खेती को अपनाएं

रासायनिक खाद और कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खेती को बढ़ावा दें. इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और किसान का स्वास्थ्य भी.

नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं

साल में एक बार blood और urine test जरूर कराएं. इससे किडनी की बीमारी का शुरुआत में ही पता चल जाएगा.

दवाओं में सावधानी बरतें

बिना डॉक्टर की सलाह के कभी भी दर्द निवारक दवाएं न लें. अगर शरीर में दर्द रहता है तो डॉक्टर से सलाह लें.

निष्कर्ष

किसान हमारे अन्नदाता हैं और उनका स्वास्थ्य राष्ट्र की संपत्ति है. रासायनिक खेती और गलत आदतों के कारण उनका स्वास्थ्य खतरे में है. सरकार, स्वास्थ्य संगठनों और समाज को मिलकर काम करना होगा. जागरूकता फैलाकर और बेहतर सुविधाएं देकर हम अपने किसानों को इस मूक बीमारी से बचा सकते हैं. आइए, अपने अन्नदाताओं के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनें.

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