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Women inspirational story: हथौड़े की चोट और हौसले की गूंज, बकवा गांव की ‘किरण’ की कहानी

मध्यप्रदेश के सीधी जिले के बकवा गांव की गलियों में चलते हुए अगर आपकी नज़र किसी घर की दीवार पर टिक जाए, तो ज़रा रुकिएगा… क्योंकि वो दीवार सिर्फ ईंटों से नहीं बनी, उसमें पसीने की महक है, मेहनत की परतें हैं, और एक औरत के जज़्बे की नींव है. इस गांव में सैकड़ों घर हैं, लेकिन उनमें एक बात कॉमन है कि उन सबकी नींव किरण कली घासी ने रखी है. किरण की उम्र 55 वर्ष है, लेकिन हौसले आज भी जवान. गांव में सभी उन्हें प्यार से पटेल जिज्जी कह कर बुलाते हैं. उनकी मेहनत, उनकी लगन और उनके बनाए मकानों की दीवारों में एक अनकही कहानी गूंजती है एक महिला की, जिसने अपने दम पर खुद की पहचान बनाई है.

दिहाड़ी मजदूरी से मिस्त्री बनने तक का सफर
किरण कभी एक साधारण दिहाड़ी मजदूर थीं, लेकिन आज वह इस क्षेत्र की एकमात्र महिला मिस्त्री हैं. ना उन्होंने कोई किताबें पढ़ीं, ना इंजीनियरिंग की डिग्री ली, लेकिन उनके बनाए हर मकान की नींव इतनी मजबूत होती है कि कोई इंजीनियर भी आज तक कोई खामी नहीं निकाली. उनका काम ज़मीन से जुड़ी सोच और मेहनत के हैं.

ईंट दर ईंट समाज को जोड़ती हैं
किरण सिर्फ दीवारें नहीं बनातीं, बल्कि समाज की सोच को भी एक नई दिशा देती हैं. वह खुद नाप-जोख करती हैं, छत डालती हैं, ईंटें उठाती हैं और लोहा काटती हैं. किरण के हाथों में पड़े फफोले और चेहरे पर थकान की रेखाएं उनकी मेहनत की गवाही देती हैं, फिर भी वो कभी खुद को हारने नहीं देतीं.

घर ही नहीं, बच्चों का भविष्य भी गढ़ा
एक मां होने की जिम्मेदारी भी उन्होंने उतनी ही बखूबी से निभाई. फिर चाहे बच्चों को पढ़ाना-लिखाना हो या फिर उनके भविष्य की नींव संजोना हो, हर सुविधा दी. उनकी कहानी बताती है कि मां सिर्फ घर की दीवार नहीं होती, वो उस घर की नींव होती है.


आज सम्मान से बुलाते हैं लोग
जो लोग कभी कहते थे- ये क्या काम करेगी? आज वही लोग उन्हें इज्ज़त से बुलाने आते हैं. ये कहकर जोड़ाई कराना है दीदी आइएगा. किरण कली घासी सिर्फ एक मिस्त्री नहीं, वो हजारों महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं. उनका काम बोलता है, और किरण की कहानी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को सच करना चाहती हैं. वो कहती हैं कि जब हौसला और हथौड़ा साथ हों, तो कोई भी दीवार सीधी खड़ी हो सकती है.