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भारत ब्रिटेन: मुक्त व्यापार समझौता

भारत ब्रिटेन: मुक्त व्यापार समझौता

फ्री ट्रेड अग्रीमेंट या एफ टी ए  होता क्या है ?
FTA एक तरह का ऐसा व्यापार समझौता है जिसे दो या दो से अधिक देशों के बीच किया जाता है.एक सफल व्यापार वही माना जाता है जिसमें कम से कम बैरियर और  कम टैरिफ लगते हो, FTA उसी दिशा में एक कदम है.ग्लोबलाइजेशन का उद्देश्य,एक ऐसा विश्व बनाना है जहां कोई सीमाए न हो आसानी से वस्तु और सेवाओं को एक दुसरे के साथ साझा किया जा सके.

एफटीए से क्या हासिल हुआ?
ब्रिटेन भारत का चौथा सबसे बड़ा निर्यात टारगेट है,और भारत ब्रिटेन का 11वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है.लगभग 60 अरब अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2030 तक दोगुना होने का अनुमान है. FTA ब्रिटेन में भारतीय निर्यात के 99%एरिया पर जीरो फीस एक्सेस देता है, जिनमें कपड़ें, चमड़ा, जूते, समुद्री उत्पाद, खेल सामग्री, खिलौने, रत्न आभूषण, ऑटो पार्ट्स, और जैविक रसायन शामिल हैं.

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ऑटोमोबाइल टैरिफ को 100% से घटाकर 10% किया गया है. भारत और ब्रिटेन ने एक समझौते पर साइन किया है जिसे सोशल सिक्योरिटी एग्रीमेंट कहा जाता है. इसका मतलब ये है कि अब अगर कोई प्रोफेशनल एक देश से दूसरे देश में काम करने जाता है, तो उसे दोनों देशों में नेशनल इंश्योरेंस या सोशल सिक्योरिटी टैक्स नहीं देना पड़ेगा -सिर्फ एक ही देश में देना होगा इससे उन्हें डबल पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे.
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कैसे ये समझौता भारत की डिप्लोमेटिक जीत है?
यह मुक्त व्यापार समझौता भारत के लिए एक सफल डिप्लोमेसी का उदाहरण साबित हुआ है, क्योंकि जहां भारत करीब 200 सालों तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा है. वहां अपनी शर्तों पर मुक्त व्यापार समझौता होना भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. हम सभी जानते हैं भारत एक विकासशील देश है लेकिन उसके साथ ही विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और ब्रिटेन विश्व की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भारत अब ब्रिटेन से आगे है.
शायद यही वजह रही है कि इतना बड़ा मार्केट ब्रिटेन को दूसरी जगह नहीं मिलने वाला था. यहां की नीतिगत खामियों को दूर किया जा रहा है और व्यापार को और आसान बनाया जा रहा है जिससे ज्यादा से ज्यादा इन्वेस्टमेंट भारत में आए.
ऐसा माना जा रहा है कि अगले तीन वर्षों में ब्रिटेन को भारत के कृषि निर्यात में 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है, जिसका कारण एफटीए द्वारा 95 प्रतिशत से अधिक भारतीय कृषि और प्रोसेस्ड खाद्य उत्पादों पर शून्य-शुल्क लगना है, जिसमें फल, सब्जियां, अनाज, कॉफी, चाय, मसाले, तिलहन, अल्कोहल बेवरेज और खाने के लिए तैयार वस्तुएं शामिल हैं.

एफटीए से जुडी चिंताएं क्या हैं?
अक्सर FTA (Free Trade Agreement) के बाद ऐसा होता है कि हमारा import (आयात) ज्यादा होता है और export (निर्यात) कम होता है.जैसे 2017-2022 के बीच FTA पार्टनर्स के साथ एक्सपोर्ट 31% बढ़ा, लेकिन इम्पोर्ट 82% बढ़ गया. इससे ट्रेड में भारी असंतुलन हो गया.
इसके साथ FTA का कम इस्तेमाल भी एक और परेशानी है.भारत में FTA का यूज सिर्फ 25% है, जबकि डेवलप्ड देशों में ये 70-80% तक होता है. इसका मतलब ये है कि भारत FTA का लाभ नहीं उठा पा रहा है.
इसके अलावा भारत को कुछ सेक्टर में FTA पार्टनर्स से भारी कंपटीशन मिल रहा है, क्योंकि उनके पास innovation और low cost production में बढ़त है,जैसे ASEAN और साउथ कोरिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्सटाइल में भारत को पीछे छोड़ दिया है.
भारत में कई बार ऐसा होता है कि raw material पर ज़्यादा tax लगता है और final product पर कम, जिससे इंडियन मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान होता है.
टैरिफ फीस भले ही खत्म हो गई है लेकिन नॉन-टैरिफ रुकावटें भारत के exports को रोक रही हैं,जैसे EU का Carbon Border Tax भारत के $8 बिलियन के एक्सपोर्ट को नुकसान पहुँचा सकता है.

आगे क्या हो सकता है?
बढ़ते ग्लोबलाइजेशन के दौर में ओपन मार्केट ही सबका पसंदीदा विकल्प होने वाला है.खासकर भारत विश्वमंच में सबसे बड़ा मार्केट है इसलिए भारत अपनी शर्तो पर विकसित देशों को भी मना सकता है,यही वजह है की आगे चलकर अमेरिका के साथ भी फ्री ट्रेड अग्रीमेंट होने के चांस है.बस जरुरत है अपनी क्षमताओ के अनुसार ट्रेड डील क्रैक करने की.