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कटनी से रीवा: खस की खुशबू हुई धुंधली, इंपोर्टेड कूलर ने छीनी कारीगरों की रोजी-रोटी

कटनी से रीवा: खस की खुशबू हुई धुंधली, इंपोर्टेड कूलर ने छीनी कारीगरों की रोजी-रोटी

कटनी से रीवा: कटनी से रीवा तक, एक समय था जब खस की लकड़ी और बांस इन क्षेत्रों के कई परिवारों की जीवनरेखा हुआ करते थे. सदियों से, इन प्राकृतिक संसाधनों ने उन्हें आश्रय, रोजगार और एक विशिष्ट पहचान दी थी. खस से बनने वाले पारंपरिक कूलर और बांस से तैयार किए जाने वाले विभिन्न उत्पाद उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत थे.

कटनी से रीवा: बदलता दौर, मिटता काम

लेकिन, समय का पहिया घूमा और आधुनिकता की तेज रफ्तार ने उनके पारंपरिक व्यवसाय पर गहरा आघात किया. बाज़ार में इंपोर्टेड कूलर और एयर कंडीशनर की बाढ़ आ गई. इनकी आकर्षक डिजाइन और कथित बेहतर शीतलन क्षमता ने धीरे-धीरे खस के कूलरों की मांग को कम कर दिया. नतीजा यह हुआ कि खस बनाने वाले कारीगरों का काम लगभग ठप हो गया.

मेहनतकश हाथों की व्यथा

इस वीडियो में, आप उन्हीं मेहनतकश हाथों की कहानी सुनेंगे. वे कारीगर जिन्होंने पीढ़ियों से खस को आकार दिया, बांस को मोड़ा, अब बदलते वक्त के साथ अपनी पहचान और रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनकी जुबानी सुनिए उस दर्द को जो आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ जाने का है, उस चिंता को जो भविष्य को लेकर है. यह सिर्फ एक व्यवसाय का अंत नहीं, बल्कि एक संस्कृति और परंपरा के मिटने की कहानी है.

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