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Poverty मापने के लिए बनती हैं अलग-अलग समितियां, जानें देश से क्या हैं गरीबी के हालात

हमारा भारत एक विकासशील देश (Developing Countries) के तौर पर जाना जाता है. देश में समय-समय पर गरीबी (Poverty) मापी जाती है. इससे पता लगाया जाता है कि देश में कितना विकास हो रहा है और कितने लोग अभी भी गरीब बचे हैं. खास बात यह है कि गरीबी को मापने के लिए अलग-अलग समितियां अलग-अलग मापदंड अपनाती हैं. जिसका नतीजा यह होता है की सेम ईयर में गरीबों की संख्या घटती बढती रहती है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि गरीबी को कैसे मापा जाता है. किस आधार पर यह तय किया जाता है की कोई आदमी गरीब है.

सबसे पहले जान लेते हैं कि गरीबी क्या है. आसान भाषा में कहें तो किसी व्यक्ति को गरीब तब माना जाता है जब उसकी आमदनी (Income) न्यूनतम स्तर से नीचे चली जाती है. ऐसे में व्यक्ति अपनी बेसिक जरूरतों (Facilities) को पूरा करने में सक्षम नहीं होता है. इस न्यूनतम स्तर को ही ‘गरीबी रेखा’ कहा जाता है.

गरीबी को मापने का मापदंड
अब यह जानना जरूरी है कि गरीबी को मापने का मापदंड क्या होता है. जैसे कि गरीबी को मापने के लिए क्या सिर्फ आय को देखना चाहिए या फिर जीवन के दूसरे पहलुओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य या दूसरी जरूरी सुविधाएं भी होनी चाहिए. बता दें कि देश में जो मानक हैं उसे योजना आयोग ने तेंदुलकर कमेटी के नाम से बनाया था. इसके अनुसार ग्रामीण इलाके में प्रतिदिन 27 रूपए से कम खर्च करने वाले और शहरी इलाके में प्रतिदिन 33 रूपए से कम खर्च करने वालों को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता था. इस रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में देश में 21.9% लोग गरीबी रेखा से नीचे थे.

रंगराजन कमेटी
रंगराजन कमेटी का गठन 2012 में हुआ. इसके मुताबिक ग्रामीण इलाके में प्रतिदिन 32 रूपए से कम खर्च करने वाले और शहरी इलाके में प्रतिदिन 47 रूपए से कम खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे रखा गया था. इसके मुताबिक साल 2014 में 29.5 % लोग गरीबी रेखा से नीचे थे. हालांकि सरकार ने रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट को नहीं माना.

तेंदुलकर कमेटी
वर्तमान में SBI BANK ने तेंदुलकर कमेटी के मानक के मुताबिक महंगाई दर को देखते हुए एक मानक बनाया जिसके अनुसार ग्रामीण इलाके में प्रतिदिन 54 रूपए से कम खर्च करने वाले और शहरी इलाके में प्रतिदिन 64 रूपए से कम खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे माना गया है. जिसके अनुसार 2022-2023 में 7 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे पाए गए. MINISTRY OF STATISTICS AND PROGRAM IMPLEMENTATION के HOUSEHOLD CONSUMPTION EXPENDITURE SURVEY के अनुसार 2022-23 में सिर्फ 2.2% लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं यानी की लगभग 3 करोड़. इस आंकडे का आधार IPL यानी की INTERNATIONAL POVERTY INDEX था जिसे की WORLD BANK DECIDE करती है.

WORLD BANK की रिपोर्ट
WORLD BANK के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 1.90$ यानी की 158 रूपए से कम खर्च करता है तो वह गरीबी रेखा के नीचे आता है.

गरीबों की संख्या में अंतर
साल 2022-23 में वर्ल्ड बैंक के HOUSEHOLD CONSUMPTION EXPENDITURE SURVEY ने सिर्फ 3 करोड़ लोगों को गरीब माना जबकि सरकार की योजना आयोग जो वर्तमान में नीति आयोग हो गया है उसने अपनी रिपोर्ट में 7 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा के नीचे माना है.

बहुआयामी गरीबी
जिन मानकों के बारे में आपने जाना वो EXPENDITURE  के बेसेस पर थे लेकिन इसके अलावा देश में एक और मानक अपनाया जाता है. जिसमें आय के साथ-साथ कई चीजों को ऐड किया जाता है. हाल ही में नीति आयोग ने ‘वर्ष 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी’ शीर्षक से Discussion Paper जारी किया, जिसमें कहा गया है कि पिछले नौ सालों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी (Multidimensional Poverty)  से उबर गए हैं. यानी देश में गरीबी दिन प्रतिदिन घटती जा रही है. बता दें कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी – स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का आंकलन करता है जिनमें 12 सतत् विकास लक्ष्य-संरेखित संकेतकों यानी कि Sustainable Development Goal-aligned indicators शामिल किये जाते हैं. और इसी से ये मापा जाता है कि आप गरीब है या नहीं.

इन 12 Indicators में Nutrition (पोषण), Maternal health (मातृ स्वास्थ्य), Child and adolescent mortality (बाल और किशोर मृत्यु दर) Years of schooling (स्कूली शिक्षा के वर्ष), School attendance (स्कूल में उपस्थिति), Cooking fuel (पकाने का ईंधन), Sanitation (स्वच्छता), Drinking water (पेयजल), Electricity (ऊर्जा), Assets (संपत्ति) और Bank account (बैंक खाते) शामिल है.

सरकारी योजनाओं का लाभ
MPI यानी कि Multidimensional poverty index वैश्विक कार्यप्रणाली अलकाईर और फोस्टर (Alkire and Foster- AF)) पद्धति पर आधारित है जो कि गरीबी का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है. इसमें Metrics के आधार पर लोगों की गरीब के रूप में पहचान की जाती है. इसका उपयोग यूनाइटेड किंगडम के साथ-साथ दुनिया भर के लगभग हर देश में किया जाता है. साल 2013-14 से 2022-23 में लगभग 24.82 करोड़ लोग MPI की सिचुएशन से बाहर आए हैं. जिसका श्रेय सरकार की विभिन्न योजनाओं को दिया जाता है.

15 करोड़ गरीब अभी भी हैं
Multidimensional poverty index के अनुसार साल 2022-23 में देश के 11.28 % लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. जिसका मतलब ये हुआ की देश के लगभग 15 करोड़ लोग अभी भी गरीब हैं. नीति आयोग के अनुसार गरीबी का ये आंकड़ा 2013-14 में 29.17% था जो कि 2022-23 में घटकर 11.28% हो गया. इतना ही नहीं देश के ऐसे चार राज्य हैं जिनमे गरीबी तेज़ी से गिरी है. सबसे ज्यादा 5.94 करोड़ लोग उत्तर प्रदेश के हैं. उसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ लोगों की गरीबी के स्तर में सुधार हुआ है.

आपकी आमदनी और खर्च गरीबी के तहत आता है या नहीं, जानने के लिए देखिए ये वीडियो।