विंध्य की गोद में सदियों की विरासतें समाई हैं, जो प्राचीन शैलचित्रों से लेकर मध्यकालीन भव्य मंदिरों और शक्तिशाली किलों तक फैली हैं. खजुराहो की अद्वितीय कलात्मकता और रीवा-अजयगढ़ के ऐतिहासिक दुर्ग यहाँ की गौरवशाली कहानियाँ कहते हैं. इस क्षेत्र की विविधता में जनजातीय संस्कृति और जीवंत लोक कलाएँ भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं. प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण विंध्य, इतिहास और संस्कृति का एक अद्भुत मिलन स्थल है, जो हमारी पहचान और सम्मान का प्रतीक है. इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है.
माधवगढ़ किला
सतना से 7 किमी दूर, टमस नदी किनारे स्थित यह जर्जर महल माधवगढ़ किले के नाम से जाना जाता है. रीवा के महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव द्वारा निर्मित यह सामरिक महत्व का स्थान था, जहाँ सैन्य संसाधन रखे जाते थे. पर्यटन विकास की योजना अधूरी रही.

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मैहर किला
मैहर किला जहां आज भी राजपरिवार निवास करता है. मैहर किले का इतिहास रीवा, ओरछा, पन्ना और छतरपुर से जुड़ा है.18वीं सदी में महाराज बेनीसिंह की बेटी राजधर ने इसका निर्माण कराया. शासक का दर्जा प्राप्त मैहर के राजा को 9 तोपों की सलामी मिलती थी. पर्यटन की संभावनाएँ जर्जर स्थिति के बावजूद इसकी पहचान बनाए हुए हैं.

नागौद किला
अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में स्थित नागौद किला, जिसके एक हिस्से में होमस्टे भी पंजीकृत है, परिहार राजपूतों की पहचान है. माउंट आबू से आए परिहारों ने गहरवारों को हटाकर प्रभुत्व स्थापित किया. 1720 में राजा चैनसिंह ने नागौद को राजधानी बनाया. यहाँ के राजा को भी 9 तोपों की सलामी मिलती थी.

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महारानी अजब कुंवरी की बावड़ी
रीवा रियासत की कई स्थापत्य कलाओं में से एक, गुढ़ चौराहे के पास महाराजा भाव सिंह द्वारा महारानी अजब कुंवरि के लिए 360 वर्ष पहले निर्मित बावड़ीयुक्त कोठी है. लखनऊ और राजस्थान की शैलियों से प्रभावित यह जलक्रीड़ा स्थल उपेक्षित है, जबकि पर्यटन की अपार संभावनाएँ रखता है. 1664-70 ईस्वी के मध्य निर्मित, यह रानी की विशेष जीवनशैली और उनके द्वारा कराए गए निर्माणों का प्रतीक है.

क्योंटी किला
13वीं शताब्दी में रीवा के महाराजा शालिवाहन के पुत्र नागमल द्वारा निर्मित यह किला अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है. 1857 के विद्रोह में क्रांतिकारियों का आश्रय स्थल रहा यह किला ऐतिहासिक महत्व का है. पुरातत्व विभाग से पर्यटन निगम को हस्तांतरित यह किला अब निजी हाथों में हेरिटेज होटल बनने की राह पर है. 2.213 हेक्टेयर में फैले इस किले के पास मनोरम प्रपात भी है. 1972 में यहां ‘बिदिया बंदूक’ फिल्म की शूटिंग भी हुई थी.

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