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ये कैसा विकास? रीवा के इस गांव में आजतक सड़क नहीं, 250 लोगों की सुध लेने कभी कोई नेता भी नहीं पहुंचा 

देश को आजाद हुए कई बरस बीत चुके हैं. हम चांद पर जा पहुंचे हैं. जिन गांवों में लोग अपनों का हाल जानने के लिए लोग डाकिया के चिट्ठी लाने का इंतजार करते थे अब वहां हर हाथ में स्मार्ट फोन दिखाई देता है. मीलों दूर बैठे लोगों से हर दिन वीडियो कॉल पर बात होती है. ये सब देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि देश ने खूब तरक्की की है. लेकिन ये सब देखते हुए क्या आप किसी ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां आज तक सड़क ही नहीं है. यहां बसे लोगों की आंखे इस आस में पथरा गई हैं कि कभी कोई नेता इनकी भी सुध लेगा.

ऐसे गांव को ढूंढने के लिए हमें न तो ज्यादा मेहनत करनी पड़ी और न ही ज्यादा दूर जाना पड़ा. विकास पुरुष कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ला के रीवा में बने घर से दादर गांव का बंजरहा टोला केवल 14 किलोमीटर दूर है. फिर भी यहां के लोग सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं.

गांव तक जाने का जो रास्ता है वो किसी खेत की मेढ़ से कम नहीं है. कच्चे रास्तों पर धूल के गुबार से जूझते हुए, आंखे मिचमिचाते हुए गर्मी के मौसम में तो यहां किसी तरह पहुंचा जा सकता है लेकिन बारिश के मौसम में नहीं. 

किसी बाहर वालो को अपनी ओर आता देख गांव वालों को कैमरा और माइक देख उम्मीद की किरण नजर आई. उन्हें लगा कि शायद अब उनकी बात किसी नेता, विधायक, सांसद के कानों तक पहुंचेगी, इसलिए हर कोई अपनी बात रखने कैमरे के सामने आकर खड़ा हो गया. 

250 वोटर वाले इस गांव में हर व्यक्ति को समस्या थी. कई लोगों के बच्चे सड़क न होने की वजह से स्कूल  नहीं जा पा रहे तो कई लोग काम-धंधे के लिए परेशान हैं. गांव के लोगों के लिए छोटी-मोटी बीमारी भी सिर्फ सड़क न होने की वजह से जानलेवा हो जाती है, क्योंकि स्वास्थ्य केन्द्र तक जाने के लिए बारिश के मौसम में कीचड़ से सने रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है. गांव की गर्भवति महिला को अस्पताल ले जाने के लिए ट्रैक्टर का सहारा लेना पड़ता है, कई बार वो भी नहीं मिलता.  

उम्मीद खो चुके कई गांव वाले तो बात करते-करते रुआंसे हो उठे और कहने लगे कि चुनाव आता है तो वोट मांगने आते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद कभी पलटकर झांकते भी नहीं. ये गांव भी उसी रीवा का हिस्सा है जहां फ्लायओवर बन रहे हैं, एयरपोर्ट बनकर तैयार है, कई मंजिला इमारते बन रही हैं, बड़े-बड़े ब्रांड के शोरूम आ रहे हैं, मॉल बन रहे हैं. उसी रीवा की नाक के नीचे बसा ये गांव इतना पिछड़ा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. 

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