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विंध्य: रॉक पेंटिंग, विस्थापन, नीतिगत असमानता और कफ़ सिरप का धीमा ज़हर

यहां पढ़िए हमारी पांच ऐसी वीडिओ कहानियां जिन्होंने हमें जोड़ा लोगों के लिए बिरले मुद्दों से.

तस्वीर: आकाश पांडेय (विंध्य फर्स्ट)

हमनें ढूंढा सदियों पुरानी दुर्लभ कलाकृतियां, रहस्यमई शैलचित्र. रीवा ज़िले से 45 किलोमीटर दूर सिरमौर के घने जंगलों में. यहां पहाड़ी इलाकों की छुपी झाड़ियों और बड़े चट्टानों के बीच हजारों साल पुरानी रॉक पेंटिंग मौजूद हैं. ये शैलचित्र आदि मानवों की जीवनशैली, शिकार, नृत्य और धार्मिक अनुष्ठानों को दर्शाते हैं. प्राकृतिक रंगों से बनी ये चित्रकृतियां आज भी जीवंत प्रतीत होती हैं, मानो अतीत से संवाद कर रही हों. ऐसा माना जाता है कि इन गुफाओं में प्राचीन सभ्यता के लोग रहा करते थे, जिनके निशान अब भी यहां मौजूद हैं. घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के कारण ये स्थल अब तक अनछुए और रहस्य से भरे हुए हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार, ये शैलचित्र मानव इतिहास की शुरुआती कलात्मक अभिव्यक्तियों में से एक हैं. इन अद्भुत कलाकृतियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर को समझ सकें.

 

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तस्वीर: राम प्रकाश (विंध्य फर्स्ट)

सीधी जिले के कुसमी तहसील का ताल गांव नीतिगत असमानता का शिकार है. यहां रहने वाली बैगा और गोंड जनजाति के बीच बिजली आपूर्ति में भेदभाव देखा जा सकता है. बैगा प्रोजेक्ट के तहत कुछ घरों में बिजली पहुंचाई गई, लेकिन गोंड जनजाति के घर अब भी अंधेरे में हैं. गांव में कुछ घरों में बल्ब जलते हैं, तो कुछ अब भी टिमटिमाते दीपक के सहारे हैं. एक घर रोशन है, तो दूसरा अंधेरे में डूबा हुआ. यह सरकारी योजनाओं के असमान क्रियान्वयन का उदाहरण है, जिससे लोगों के बीच असंतोष और सामाजिक भेदभाव की भावना पनप रही है.

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तस्वीर: आकाश पांडेय (विंध्य फर्स्ट)

यह गांव पन्ना ज़िले के पहाड़ियों के बीच स्थित है, जहां सदियों से लोग अपने पारंपरिक जीवन के साथ बसे हुए हैं. पारंपरिक मकान सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं. लेकिन अब यह गांव केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना के कारण विस्थापन की कगार पर है. सरकार की इस योजना से जल संकट का समाधान निकाला जा रहा है, लेकिन स्थानीय लोग अपने घर, खेती और संस्कृति से दूर हो रहे हैं. विस्थापन के चलते ग्रामीणों के लिए नए जीवन की चुनौतियां खड़ी हो गई हैं, जिनका समाधान जरूरी है.

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तस्वीर: आकाश पांडेय (विंध्य फर्स्ट)

रीवा में युवाओं के बीच नशे की लत तेजी से बढ़ रही है, खासकर कफ सिरप जैसी नशीली दवाओं का सेवन आम हो गया है. गली-कूचों में, सुनसान जगहों पर या दोस्तों के साथ बैठकर कई युवा कोरेक्स की बोतल हाथ में लिए नशे में डूबे दिखते हैं. यह लत न केवल उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि उनके भविष्य को भी अंधकार में धकेल रही है. बेरोजगारी, मानसिक तनाव और नशे की आसान उपलब्धता इसकी बड़ी वजहें हैं. प्रशासन को सख्ती बरतने और युवाओं को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि वे इस घातक जाल से बाहर निकल सकें.

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तस्वीर: शैलेश पांडेय (विंध्य फर्स्ट)

सिंगरौली का मुख्य इलाका मोरवा जिसकी खदानों के बीच खड़ा यह घर विकास और विस्थापन की जटिल कहानी बयां करता है. कोयला खनन के विस्तार ने कई गांवों को निगल लिया, लेकिन यह घर अब भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ संघर्ष का प्रतीक बना हुआ है. चारों ओर गहरी खदानें, उड़ती धूल और लगातार होती खुदाई के बीच यह मकान अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
यह तस्वीर पत्रकारिता की ताकत को दर्शाती है, जो हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ बनती है. ऐसी रिपोर्टिंग न सिर्फ सच्चाई उजागर करती है, बल्कि नीति-निर्माताओं को सोचने पर भी मजबूर करती है.

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