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Sharat Saxena: सतना के शरत सक्सेना की कहानी, रोमांच से भरपूर है बॉलीवुड का सफ़र

शरत सक्सेना ने मिस्टर इंडिया, बजरंगी भाईजान जैसी ढ़ेरों सुपरहिट फ़िल्मों में अपनी अलग पहचान छोड़ी है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में दशकों से काम कर रहे शरत सक्सेना 74 साल की उम्र में भी बिंदास फिटनेस का नमूना पेश कर रहे हैं.

बॉलीवुड (Bollywood) में 300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके शरत सक्सेना (Sharat Saxena) विंध्य में सतना (Satna) जिले के रहने वाले हैं. फिल्मी दुनिया में शरत सक्सेना काफी जाने – माने नाम हैं. इन्होंने बॉलीवुड में लगभग हर बड़े किरदार के साथ किया है. शरत सक्सेना ने मिस्टर इंडिया (Mr. India), बजरंगी भाईजान (Bajrangi Bhaijaan) जैसी ढ़ेरों सुपरहिट फ़िल्मों में अपनी अलग पहचान छोड़ी है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में दशकों से काम कर रहे शरत सक्सेना 74 साल की उम्र में भी बिंदास फिटनेस का नमूना पेश कर रहे हैं.

विंध्य के सतना जिले में जन्में शरत सक्सेना की स्कूलिंग की शुरूआत भोपाल से हुई. 10वीं के बाद शरत ने आगे की पढ़ाई जबलपुर से की. शरत सक्सेना मुंबई जाकर फिल्मी दुनिया में काम करना चाहते थे. हालांकि उनके पिता इसके लिए तैयार नहीं थे. पिता की इच्छा पूरी करने के लिए शरत ने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया और डिग्री पूरी की. इसके बाद 25 साल की उम्र में हीरो बनने का ख्वाब लेकर मुंबई चले गए. खास बात यह रही कि इस बार पिताजी बरसे नहीं. उनको भी लगा कि अगर कुछ नहीं भी हुआ तो इंजीनियर की नौकरी ही मिल ही जाएगी.

खुद को हीरो मटेरियल मानते थे शरत
शरत जब खुद को शीशे में देखते थे, तो उन्हें अपने आप में ‘हीरो मटेरियल’ दिखता था. दुनिया के हर एक्टर की तरह शरत भी हीरो ही बनना चाहते थे. इसलिए उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में जाने का फैसला लिया था. शरत जी को जैसे ही पिता की हरी झंडी मिली, उन्होने फ़ौरन अपना बोरिया-बिस्तर समेट बंबई की गाड़ी पकड़ ली. शरत के दिमाग में चल रहा था अब तो सीधा हीरो बन कर ही लौटना है. लेकिन बंबई नगरिया की डगर आसान नहीं थी.

मजबूरी में शुरू की नौकरी
मुंबई की कड़वी हकीकत से शरत सक्सेना बहुत जल्द रूबरू हो गए. कई दिनों तक इधर-उधर धक्के खाने के बाद भी कहीं कोई बात नहीं बनी. कई महीने बीत जाने पर पिता ने चिट्ठी भेज कर लिखा कि अपना वक़्त बर्बाद करना छोड़ो और कोई नौकरी ढूंढो. ऐसे में शरत सक्सेना ने नौकरी करना शुरू कर दी. लेकिन उनका जुनून फिल्मों के लिए कम नहीं हुआ. शरत ने फ़िल्म सेट पर बने रहने के लिए नौकरी के साथ फोटोग्राफी शुरू कर दी. दिन में नौकरी करते और रात में फोटोग्राफी सीखते. ऐसा करते हुए शरत ने एक महीने में ही तंग आ कर नौकरी छोड़ दी और पूरा ध्यान फोटोग्राफी में ही लगाने लगे.

बॉलीवुड में एंट्री
एक दिन चंदन, धर्मेन्द्र के भाई वीरेंद्र की फ़ोटो खींची रहे थे, तब वहां शरत भी चंदन के साथ थे. रिफ्लेक्टर पकड़कर दोस्त की मदद कर रहे थे. काम खत्म होने के वीरेंद्र ने कहा कि आओ लड़कों खाना खिलाते हैं तुम दोनों को. स्ट्रगल के दौर था दोनों ने हामी भर दी. लंच करते वक़्त वीरेंद्र जी ने शरत से पूछा, तुम भी एक्टर बनना चाहते हो क्या? शरत ने हां में सिर हिलाया तो वीरेंद्र ने उनसे उनकी फ़ोटो मांगीं. वीरेंद्र ने उनकी फ़ोटोज़ अगले दिन अपने प्रोड्यूसर को दिखाईं. प्रोड्यूसर को एक किरदार के लिए शरत जी फिट लगे और इस तरह ‘बेनाम’ फ़िल्म से उनके करियर की शुरुआत हुई.

फिल्म सेट में कई बार घायल हुए
एक्शन करते हुए शरत सक्सेना कई बार घायल हुए. कभी उनका हाथ टूटा तो कभी पांव. कभी-कभी तो मांसपेशियां तक फट कर बाहर आ जाती थीं. इसमें आठ बार से ज्यादा उनको हॉस्पिटल जाना पड़ा. बता दें कि आज के दौर में फ़िल्म सेट्स पर एक्शन सीन्स फिल्माने के लिए कई सेफ्टी मेज़र्स को ध्यान में रखते हुए काम होता है. लेकिन उस समय फ़िल्म सेट पर ऐसा नहीं होता था.

सलीम खान ने जावेद अख्तर से कराई पहचान
शरत सक्सेना, सलीम खान को पहले से जानते थे. मुंबई में रहते हुए उनसे मुलाकात करते रहते थे. एक दिन जब सलीम साहब के यहां जावेद अख्तर बैठ कर ‘काला पत्थर’ लिख रहे थे. तभी शरत वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर सलीम साहब ने जावेद से कहा कि शरत को ‘धन्ना’ का रोल दे दें. जावेद साहब को भी शरत इस रोल के लिए सही लगे. सलीम साहब ने शरत से कहा कि वो यश चोपड़ा जी के पास जाएं और उनसे कहें कि मुझे सलीम-जावेद ने भेजा है. शरत जी सलीम साहब के घर से सीधा यश चोपड़ा के ऑफिस गए और सलीम खान का रिफरेंस दिया. तब यश जी ने शरत को फाइनल कर दिया. इस तरह शरत जी के शुरुआती दौर में सलीम-जावेद ने उन्हें बहुत सी फ़िल्मों में रोल दिलवाए.

बचपन से ही कसरत करते थे शरत
शरत सक्सेना 60 के दशक में बंबई गए थे. उस वक्त कसरती शरीर वाले व्यक्ति को लेबर क्लास समझा जाता था. शरत के पिताजी एथलीट थे, जिसके चलते शरत को भी बचपन से ही कसरत में रुचि थी. लिहाज़ा जब शरत बंबई पहुंचे तो अच्छे-खासे हट्टे-कट्टे थे. डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर ऐसे डील-डौल वाले व्यक्ति को देख पहले ही दिमाग में गढ़ लेते थे कि ऐसा व्यक्ति अभिनय या कला से जुड़ा कोई भी काम नहीं कर सकता है. ऐसे लोग तो विलन और गुंडे के लिए ही ठीक हैं. ऐसे में शरत को ऐसे ही रोल मिले और वो लंबे अरसे तक गुंडे के नौकर का ही किरदार निभाते रहे.

30 साल बाद मिला एक्टर का रोल
तकरीबन 30 साल तक हीरो की मार खाने के बाद शरत सक्सेना ज़िंदगी के दूसरे पड़ाव पर पहुंचे. बाल सफ़ेद होने पर शरत जी को फ़िल्मों में गुंडे की जगह हीरो-हिरोइन के बाप के रोल मिलने लगे. जिसकी शुरुआत ‘तुमको ना भूल पाएंगे’ फिल्म में सलमान खान के बाप बनने से हुई. इस फ़िल्म में शरत जी का काम देख डायरेक्टर शाद अली खान ने अपनी फ़िल्म ‘साथिया’ में शरत जी को रानी मुखर्जी का बाप बना दिया. इसमें उनका रोल छोटा था. लेकिन क्रिटिक्स ने शरत जी के अभिनय की खूब सराहना की. ‘साथिया’ के बाद से शरत जी की गिनती ‘फाइटर’ की बजाय ‘एक्टर्स’ में होने लगी.

शरत सक्सेना का बॉलीवुड सफ़र जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।