क्या आज़ादी के 75 साल बाद भी गांवों को सड़क जैसी बुनियादी सुविधा देना एक सपना है? मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले की ग्राम पंचायत मुदरिया टोला का एक हिस्सा, बेल्हान टोला, इस सवाल का कड़वा जवाब बन गया है. बेलहान टोला के लोग आज के आधुनिक युग में सड़क जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं, इनकी आवाज न तो नेता सुन रहे और न ही प्रशासनिक अधिकारी आखिर ये जाएं तो जाएं कहां?
बुनियादी सुविधाओं को सिसकते बेलहान वासी
यहां का संपर्क मार्ग आज भी कच्चा और बदहाल है. बरसात में यही रास्ता दलदल और कीचड़ में तब्दील हो जाता है, जिससे बच्चों का स्कूल जाना बंद हो जाता है, बीमारों को इलाज तक नहीं मिल पाता, और गर्भवती महिलाओं को कंधों पर उठाकर बाहर ले जाना पड़ता है. गांव मानो कुछ महीनों के लिए पूरी तरह से दुनिया से कट जाता है.
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नहीं सुन रहे ग्रामीणों की आवाज
ग्रामीणों ने वर्षों तक पंचायत प्रतिनिधियों, जनपद अधिकारियों और नेताओं से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा हर बार सिर्फ आश्वासन के खोखले वादे ही निकले. अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. नाराज़ ग्रामीणों का कहना है कि अगर अब भी सुनवाई नहीं हुई तो आंदोलन तेज़ किया जाएगा.
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यह सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि देश के हज़ारों गांवों की कहानी है, जहां विकास के नाम पर सिर्फ बातें हुईं, ज़मीनी काम नहीं. बेल्हान टोला की हालत सवाल खड़े करती है कि क्या सरकार की योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित हैं?
आज जबकि भारत अंतरिक्ष में छलांग लगा रहा है, स्मार्ट शहर बसाए जा रहे हैं, वहीं बेल्हान टोला जैसे गांवों में एक पक्की सड़क भी “सपने” जैसी है. यह लेख केवल सूचना नहीं, बल्कि एक जागृति की पुकार है. उन नीति निर्माताओं के लिए, जिन्हें अब सिर्फ सुनना नहीं, कुछ करना भी होगा.