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Toggleचुनावी दबाव से मीडिया की आजादी तक: देश के सामने बड़े सवाल
चुनावी दबाव से मीडिया की आज़ादी तक: देश में घटित हो रही कई ऐसी घटनाएँ और चिंताएँ जो हमारे लोकतंत्र, नागरिक अधिकारों और शासन प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं. यूपी-राजस्थान के चुनावी दबाव से लेकर संसद के हंगामे और मीडिया की घटती स्वतंत्रता तक. आइए विस्तार से समझते हैं.
चुनावी दबाव और बीएलओ की जान जोखिम
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में चुनावी तैयारियों के चलते बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) पर अमानवीय दबाव डाला जा रहा है. मतदाता सूची के काम को लेकर ऊपर से लगातार दबाव के कारण कई बीएलओ तनाव और अत्यधिक काम के बोझ तले दब रहे हैं. इससे उनकी सेहत और जीवन को खतरा पैदा हो गया है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर लगभग चुप्पी साधे हुए है. यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने की जल्दबाजी एक सरकारी कर्मचारी के जीवन से भी ज्यादा कीमती है.
संसद सत्र का हंगामेदार आगाज और दिल्ली एयरपोर्ट पर जीपीएस छेड़छाड़
नए संसद सत्र की शुरुआत हंगामे के साथ हुई है. विपक्षी दलों ने सुरक्षा उल्लंघन और अन्य मुद्दों को उठाते हुए हंगामा किया. इससे सदन का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ. वहीं एक और गंभीर खुलासा हुआ है. सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आसपास जीपीएस सिग्नल में छेड़छाड़ की गई थी. यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है और सवाल उठाता है कि हमारी महत्वपूर्ण अवसंरचना कितनी सुरक्षित है.
मोदी काल में सिकुड़ती मीडिया की आज़ादी
एक और चिंताजनक बात यह है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में मीडिया की स्वतंत्रता लगातार सिकुड़ रही है. ऐसा लगता है कि अब यह आजादी मीडिया संस्थानों के मालिकों के हाथों में भी सुरक्षित नहीं है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दबाव के चलते अब वही खबरें प्रमुखता से दिखाई देती हैं जो सत्ता के एजेंडे के अनुकूल हों. जनहित और आलोचनात्मक पत्रकारिता का दायरा सिमटता जा रहा है. यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए एक बड़ा संकट है.
यूपी में टीटीई की क्रूरता और अन्य मुद्दे
उत्तर प्रदेश में एक ट्रेन टिकट परीक्षक (टीटीई) की क्रूरता का मामला सामने आया है. उसने एक नौसेना अधिकारी की पत्नी को चलती ट्रेन से धक्का दे दिया. यह घटना सार्वजनिक सेवकों के आचरण और यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है. इसके अलावा कई और मुद्दे चिंता का कारण बने हुए हैं. जनगणना और परिसीमन के नाम पर संघीय ढांचे में बदलाव की आशंका जताई जा रही है. साथ ही सरकारी फॉर्मों के जरिए नागरिकों पर नियंत्रण बढ़ाने की कोशिशों पर भी सवाल उठ रहे हैं.
विविध मुद्दे: शादी के आंकड़े से लेकर एआई खिलौनों तक
कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे भी चर्चा के केंद्र में हैं. अपनी मर्जी से शादी करने वाली महिलाओं के आंकड़े एकत्र करने की मांग को लेकर ब्रिटेन की सांसद ट्यूलिप सिद्दीक को सजा मिली है. दिल्ली के प्रदूषण डेटा की कमी और पत्रकार खुर्रम परवेज की कैद भी चिंता का विषय है. अयोध्या में धर्म ध्वज फहराने की घटना के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सार्वजनिक माफी मांगी है. वहीं बच्चों के लिए एआई खिलौनों में छिपे खतरों पर भी विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं.
निष्कर्ष
ये सभी घटनाएं और मुद्दे मिलकर एक बड़ी तस्वीर पेश करते हैं. यह तस्वीर लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण, नागरिक अधिकारों पर बढ़ते दबाव और संस्थानों की कमजोर होती स्वायत्तता की है. एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमारा फर्ज बनता है कि हम इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करें और एक जवाबदेह सरकार की मांग करें. लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब उसकी नींव में पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान हो.
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