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बैगा और गोंड आदिवासी में सरकारी योजना का भेदभाव, बिजली के लिए चुनाव का बहिष्कार

100 फ़ीसदी बैगा और गोंड आदिवासी वाले इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं में भेद-भाव के शिकार हैं. यहां के बैगाओं को केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत बिजली मिलती है जबकि गोंड आदिवासियों की आंखें आज भी रोशनी के इंतजार में हैं.

बैगा (Baiga) और गोंड (Gond tribal) देश की प्रमुख आदिवासी जनजातियां हैं. सीधी ज़िला (Sidhi) मुख्यालय से 90 किलीमीटर दूर धौहनी विधानसभा की कुसुमी तहसील के ग्राम पंचायत हरदी का ताल और छड़हुला गांव में भी इस जनजाति के कई परिवार रहते हैं. यह इलाका मध्यप्रदेश (MP) और छत्तीसगढ़ (CG) के बॉर्डर पर स्थित है. गांव की कुल आबादी 737 है जबकि इसमें से मतदान करने का अधिकार सिर्फ 488 लोगों के पास है. 100 फ़ीसदी बैगा और गोंड आदिवासी वाले इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं में भेद-भाव के शिकार हैं. यहां के बैगाओं को केंद्र सरकार (Central government) की प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत बिजली मिलती है जबकि गोंड आदिवासियों की आंखें आज भी रोशनी के इंतजार में हैं. स्थानीय लोगों के साथ यह भेदभाव क्यों है इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है.

यह हालत तय हैं जब देश के दिल मध्य प्रदेश के रीवा और सीधी के बार्डर इलाके गुढ़ में एशिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट स्थित है. इसके बावजूद यहां के कई गांव के लोग आज भी अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. यही कहानी सीधी जिले के गोंड आदिवासी परिवारों के साथ भी हैं. देश को आजादी मिलने के साथ हरदी का ताल और छड़हुला गांव के आदिवासी परिवारों ने भी बिजली आने का सपना देखा रहा होगा लेकिन आज भी गोंड परिवारों को बिजली नहीं मिल रही है. हैरानी की बात तो यह है कि उसी गांव में रहने वाले बैगा आदिवासियों के घर बिजली से जगमग हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि एक ही जगह में रहने वाले दो अलग – अलग आदिवासी परिवारों के साथ एक जैसा व्यवहार क्यों नहीं हो रहा है. भेद-भाव के शिकार गोंड आदिवासी परिवार बिजली कनेक्शन न होने से खेती-किसानी से दूर होने के अलावा ढंग का पीने लायक पानी का भी इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं.

एमपी और सीजी के बार्डर में हैं ये गांव
आदिवासियों का यह गांव दोनों राज्यों की सीमा पर होने के कारण भी उपेक्षित है. जबकि नदी के उस पार छत्तीसगढ़ में लोगों को सारी सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन इस तरफ मध्यप्रदेश में नहीं मिल रही हैं. बैगा आदिवासी परिवारों को प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत बिजली मिली रही है. वहीं गोंड आदिवासी परिवारों को मोबाइल चार्ज करने के लिए पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ जाना पड़ रहा है. ऐसे में ये सरकार के नीतिगत निर्णय का शिकार हो रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि इन दोनों ही आदिवासियों के बीच विभाजन की रेखा लंबी खिंचती जा रही है. आदिवासियों को लेकर सरकार बड़े बड़े दावे करती है लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है.

सरकार भूल गई अपना वादा
विधानसभा चुनावों से पहले यहां के स्थानीय लोगों ने एक बार फिर से बिजली की मांग की. बिजली नहीं मिलने पर चुनावों तक का बहिष्कार करने की बात कही गई. ऐसे में सरकार पर इस धमकी का असर हुआ. खंभे गड़े, लाइन बिछी, और बिजली आ भी गई लेकिन यह पूरे गांव को नहीं मिली. बैगा आदिवासी घरों में उजाला है और उन्हीं के बग़ल में गोंड आदिवासी घरों में आज भी अंधेरा है.

आदिवासियों के साथ हो रहे भेदभाव को जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।