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विस्थापितों का शहर बना मोरवा, जमीन चली गई पर नहीं मिला मुआवजा

सिंगरौली (Singrauli) का मोरवा (Morwa) देश भर में कोयले की खान (Coal Mines) के लिए एक अलग पहचान रखता है. लेकिन यहां के स्थानीय निवासियों को सुविधाएं तो दूर मुआवजा भी नहीं मिला.

मोरवा के स्थानीय लोग, अपनी ही जमीन में विस्थापितों (Displacement) जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं. सिंगरौली (Singrauli) का मोरवा (Morwa) देश भर में कोयले की खान (Coal Mines) के लिए एक अलग पहचान रखता है. लेकिन यहां के स्थानीय निवासियों को सुविधाएं तो दूर बल्कि मूलभूत जरूरत भी नहीं पूरी हो पा रही है. सुखई प्रसाद मोरवा के मेढौली, वार्ड नंबर 10 के मूल निवासी हैं. इनकी उम्र 49 साल है. ये फुटकर, बनी-मजदूरी करके अपना गुज़ारा करते हैं. इसका कारण NCL है. दरअसल, सिंगरौली ज़िला के वार्ड नंबर 10 यानी मोरवा में लोगों को बेघर कर विस्थापन प्रक्रिया साल 2010 से शुरू है. NCL ने कोयला उत्खनन के लिए इनकी ज़मीन का अधिग्रहण किया लेकिन कोई मुआवजा नहीं दिया. लोगों को इस विस्थापन ना तो कोई रोजगार मिला और ना ही जमीन के बदले जमीन.

इन परिस्थियों में मजबूर होकर सुखई अपने ही ज़मीन और घर से बिना किसी मुआवज़े और मुनाफ़े के थोड़ी दूरी पर दूसरा घर बनाकर रह रहे हैं. सुखई बताते हैं NCL ने ज़मीन और घर तो छीन लिया लेकिन रहने की कहीं और व्यवस्था नहीं की. सुखई के 5 डिसमिल में बने घर का रेट गिराकर कम कर दिया गया. साल 2016-17 में तानसेन वार्ड मेन रोड की ज़मीन का आवासीय कलेक्टर रेट 11000 वर्ग मीटर था जो कि, 2020-21 में घटाकर 8800 वर्ग मीटर कर दिया गया. यह तब किया गया है जब मोरवा नगर निगम क्षेत्र है.

स्थानीय लोगों को होती है समस्या
मोरवा में कोयला खनन के लिए ब्लास्टिंग की जाती है. मोरवा के इस इलाके में ब्लास्टिंग होने से 30 से 35 हज़ार घर कांप उठते हैं. मोरवा के घरों की दीवारों पर दरार पड़ चुकी हैं. कांच की खिड़कियां और घरों की छत में लगी सीमेंट सीट फटती जा रही हैं. इतना सब होने के बाद भी आसपास के इलाक़े में रह रहे लोगों को उनके घर से बाहर निकालकर माइंस में समय-समय पर ब्लास्टिंग की जाती है. क़ायदे से ब्लास्टिंग से हुए नुक़सान की भरपाई का आश्वासन दिया जाता है लेकिन कोई भरपाई की नहीं जाती है. यहां के लोग हर दिन डर के साए में जीने को मजबूर हैं.

नहीं पता कहां बसाएगी सरकार
सुखई के दादा-परदादा कई सालों से मोरवा में रह रहे हैं. सुखई जैसे 2 लाख़ लोग हैं जिन्हें उनके ही घर से हटाया जा रहा है. कोयले के खनन के लिए बसे-बसाए शहर को उजाड़ा जा रहा है लेकिन विस्थापन की इस प्रक्रिया में पुनर्वास एक बड़ी चुनौती है. किसी के लिए भी बार-बार एक जगह से दूसरे जगह पर घर बनाना आसान नहीं होता है. बच्चों की पढ़ाई, रोजगार और रोजी-रोटी भी ठप्प हो जाती है. मोरवा के विस्थापितों को अब तक एक जगह पर स्थाई स्थान नहीं दिया गया. घर तो गिराए जा रहें हैं लेकिन बसाया कहां जाएगा इसका पता नहीं है.

रोजगार नहीं दे रहा NCL
NCL ने लोगों को विस्थापित तो कर दिया, लेकिन इन विस्थापितों को कोई भी सुविधा NCL की ओर से नहीं मिली. स्थानीय लोग जब NCL  से रोजगार की मांग करते हैं तो कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड मार के भगा देते हैं. NCL के आने के बाद से यहां पर दलालों की सक्रियता बढ़ गई है. लोगों का आरोप है कि यहां के अधिकारी लोगों के हित में काम नहीं कर रहे हैं बल्कि NCL का पक्ष ले रहे हैं.

बीमार हो रहे हैं लोग
कोयला उत्खनन के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है. इससे लोग बीमार हो रहे हैं. स्थानीय लोगों में टीवी, दमा, खांसी, उल्टी और दस्त जैसी बीमारियां हो रही हैं. हैरानी इस बात की है कि यहां के सरकारी अस्पतालों में इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है. अस्पताल वाले बाहर जाकर इलाज कराने की सलाह देते हैं.  

मोरवा के मजबूर लोगों की कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।