मध्य प्रदेश के मैहर जिले के पास स्थित इचोल गांव, जो अपनी अद्भुत कला के लिए आज विश्व भर में जाना जाता है. आर्ट इचोल भारत के कला-मानचित्र पर एक अलग ही स्थान बना चुका है. हरे-भरे खेतों और शांत पहाड़ियों के बीच स्थित यह गांव कला का एक केंद्र बन चुका है, जहां बेकार समझे जाने वाले पत्थरों, धातु, लकड़ी और स्क्रैप को कला के अद्वितीय रूप में बदला जाता है. यहां की हवा में कुछ खास है, जो हर कलाकार को प्रेरित करती है.


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आर्ट इचोल की स्थापना
आर्ट इचोल की स्थापना साल 2014 में अंबिका बेरी ने की थी, जिन्होंने कला को अपने जीवन का पर्याय बनाया है. अंबिका बेरी का मानना है कि कला की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए, और इसे हर किसी के लिए सुलभ होना चाहिए. आर्ट इचोल का विचार एक खुले कैनवास की तरह था, जहां हर कलाकार अपनी कल्पनाओं को बिना किसी बंधन के आकार दे सकता है. यहां कोई दीवारें नहीं, बस खुली हवा और बेहतरीन प्राकृतिक दृश्य हैं.


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कलाकृतियों का निर्माण
आर्ट इचोल में कला का हर रूप संभव है. यहां पर पत्थरों को तराशकर खूबसूरत मूर्तियां बनाई जाती हैं, मेटल से नई आकृतियां गढ़ी जाती हैं और लकड़ियों को इस तरह से आकार दिया जाता है, जैसे वे कभी बेकार नहीं थीं. ये कलाकृतियां न केवल स्थानीय कला का प्रतीक हैं, बल्कि आधुनिक कला के शौकिनों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं.



युवाओं के लिए एक अवसर
आर्ट इचोल सिर्फ एक गैलरी ही नहीं, बल्कि एक प्रयोगशाला भी है. यहां हर साल एक स्कॉलरशिप प्रोग्राम आयोजित किया जाता है, जिसमें युवा कलाकारों को तीन महीने तक रहने और खाने की सुविधा दी जाती है, साथ ही उन्हें 1 लाख रुपए की आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है. अब तक आर्ट इचोल में 25 देशों के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, और यह एक ऐसा मंच बन चुका है, जहां कलाकार अपनी कला के साथ-साथ अपनी कल्पनाओं को भी जीवित कर सकते हैं. आर्ट इचोल एक ऐसा स्थान है, जहां कला को नए आयाम मिलते हैं और हर कलाकार को अपनी रचनात्मकता को विस्तार देने का मौका मिलता है. यह कला और प्राकृतिक सुंदरता का एक अद्भुत संगम है, जो हर किसी को प्रेरित करता है.