मोनोपॉली यानी की एकाधिकार के बारे में तो आपने खूब सुना होगा. इस बार गूगल के एकाधिकार को लेकर खबरों का बाजार गर्म है. अमेरिका की कोर्ट ने Google Monopoly Case में गूगल को दोषी माना है. अमेरिकी जज अमित मेहता (Amit Mehta) ने गूगल पर मार्केट में दबदबा बनाने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल करने और मार्केट में अपनी मोनोपॉली सेट करने के लिए दूसरी कंपनियों को पैसे देने का भी आरोप तय किया है. 286 पेज के अपने फैसले में जज मेहता ने कहा कि गूगल ने अपने डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट में मार्केट में कंपटीशन को आने से ब्लॉक किया है. हालांकि इस फैसले पर गूगल के चेयरमैन केंट वाकर ने इसे कोर्ट में चुनौती देने को कहा है. ऐसे में सबसे पहले जान लेते हैं कि गूगल मोनोपॉली केस क्या है?
गूगल के दबदबे का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि गूगल की सर्च मार्केट में कुल हिस्सेदारी करीब 90 फीसदी है. वहीं स्मार्टफोन में 95 फीसद सर्च मार्केट में गूगल अपनी हिस्सेदारी रखता है. आपको जब भी किसी नई जानकारी की जरूरत होती है तो आप गूगल कर लेते हैं. जैसे कि इंजीनियरिंग के लिए सबसे अच्छे कॉलेज कौन से हैं. या फिर बारिश के मौसम में आपको कहां घूमने जाना चाहिए. औसतन एक व्यक्ति हर दिन लगभग 3 से 4 बार गूगल पर सर्च करता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया भर में प्रति मिनट गूगल पर 3.8 मिलियन सर्च होते हैं. वहीं प्रति घंटे 228 मिलियंस लोग गूगल पर सर्च करते हैं और प्रति दिन की अगर बात करें तो एक दिन में लगभग 5.6 बिलियन सर्च गूगल पर होते हैं. गूगल का इस्तेमाल इस हद तक बढ़ गया है कि दूसरे सर्च इंजन का इस्तेमाल बहुत कम लोग करते हैं.
गूगल एकाधिकारवादी है
हालांकि अब गूगल को अमेरिकी कोर्ट से फटकार लगाई है. कोर्ट ने गूगल पर अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए गलत तरीकों के इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. कोर्ट का कहना है की गूगल ने अमेरिकी एंटीट्रस्ट लॉ का उल्लंघन किया है. बता दें कि साल 2020 में यूएस डीओजे गूगल पर उसके वितरण समझौते को लेकर कोर्ट में मुक़दमा दायर किया था. इसके मुताबिक किसी भी नए डिवाइस के इस्तेमाल करने वालों के लिए पहला और डिफ़ॉल्ट ऑप्शन गूगल होता है. गूगल इस विशेष अधिकार के लिए कई कंपनियों को भुगतान करता है. साल 2021 में इसके लिए गूगल ने $26 बिलियन से भी ज्यादा का भुगतान किया था. इसके बाद लगभग 2 सालों तक यह मुकदमा चलता रहा. इस दौरान कोर्ट को पता चला कि गूगल एकाधिकारवादी यानि की monopolist है. पिछले कुछ सालों में गूगल का मार्केट में एकाधिकार स्थापित है.
एकाधिकारवादी या मोनोपॉलिस्ट क्या होता है?
एक व्यक्ति, समूह या कोई कंपनी जो किसी विशेष वस्तु या सेवा के लिए पूरे बाजार को नियंत्रित करता है या फिर जब किसी बाजार या मार्केट में किसी स्पेसिफिक चीज का प्रोडक्शन सिर्फ एक ही कंपनी करती हो. जिसमें कोई दूसरी कंपनी कंपटीशन में नहीं होती तो उसे एकाधिकार या मोनोपॉली कहते हैं.
कोर्ट का फैसला
अमेरिका के जज मेहता गूगल मोनोपोली केस में 5 अगस्त को फैसला सुनाते हुए गूगल को दोषी माना. कोर्ट के मुताबिक गूगल एकाधिकारवादी है. गूगल नार्मल सर्च और एड में एकाधिकार रखता है. गूगल ने 26 अरब डॉलर का भुगतान अपने सर्च इंजन को स्मार्टफोन और वेब ब्राउजर पर डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाने के लिए किया, जिसकी वजह से मार्केट में दूसरे कंपटीटर को पकड़ नहीं मिल पाई.
कोर्ट ने लगाई फटकार
कोर्ट ने गूगल के कर्मचारिओं के चैट और मैसेज को सेफ न रख पाने में भी गूगल को फटकार लगाई है. हालांकि कोर्ट ने ये भी माना की गूगल के पास सबसे उच्च गुणवत्ता वाला सर्च इंजन है. जिसके परिणामस्वरूप गूगल के पास करोड़ों डेली यूजर्स का भरोसा भी है. इस केस में विपक्ष ने दावा किया की गूगल मार्केट में निष्पक्ष कंपटीशन को नुकसान पहुंचाता है और गूगल के विकल्प तलाशने में भी यूजर के लिए प्रॉब्लम्स क्रिएट करता है.
गूगल करेगा अपील?
रिपोर्ट्स की माने तो गूगल इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील करने की योजना में है. गूगल का ये कहना है की उसके कंपनी की सफ़लता यूजर्स को बेहतर और क्वालिटी प्रोडक्ट देने की वजह से है. बता दें कि गूगल मोनोपॉली केस के दौरान कोर्ट को लाखों पन्नों का डेटा मिला है. साथ ही गूगल का पेटाबाइट डेटा और टेक्नोलॉजी फील्ड के कई हाई प्रोफाइल लोगों के इसमें शामिल होने की भी खबर मिली है. इसमें गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला और एप्पल के एडी क्यू शामिल थे.
गूगल मोनोपॉली केस की पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।