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Human Story: बेरोजगार युवाओं को ऐसे देखता है समाज

भारत देश विश्व का सबसे बड़ा युवा प्रधान देश है और इस देश का ही युवा बेरोजगारी के दंश झेल रहा है. हमारा देश जनसंख्या के मामले में तो चीन को पीछे छोड़ रहा है. लेकिन सरकार बेरोजगारी को कम करने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठा रही है.

मध्यप्रदेश सरकार हर दिन नई-नई योजनाएं तो लागू करती है. लेकिन ये योजनाओं युवाओं के लिए कारगर साबित नहीं हो रहीं हैं. बेरोजगारी की वजह से युवा वर्ग डिप्रेशन और आत्मघाती कदम का शिकार होते जा रहे हैं.

आज हम इस कहानी में बात कर रहें हैं सीधी जिले के रहने वाले सूर्य प्रताप शर्मा की. सूर्य प्रताप शर्मा का बचपन से ही सपना था की वो एक दिन पढ़ लिखकर कोई बड़ा अफसर या अधिकारी बनेंगे, और क्षेत्र में फैली तमाम तरह की समस्याओं को सुलझा सकेंगें. लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से उनका सपना मात्र सपना बन कर ही रह गया. 

सूर्य प्रताप शर्मा अपने छात्र जीवन में एक मेधावी छात्र रहे. उन्होंने रामपुर स्कूल से कक्षा 12वीं में टॉप किया था. फिर उन्होंने सीधी से बीए कि पढ़ाई की. घर वालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो आगे की पढ़ाई कर पाते. इसलिए उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए इन्दौर चले गए. इन्दौर तो पहुंच गए लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उनके पास रहने-खाने तक के लिए पैसे नहीं थे. तब वो जिस कोचिंग में तैयारी करने के लिए गए थे. उसी कोचिंग के एक सोफे में रह कर पूरा दिन कोचिंग के पेंप्लेट बांट कर अपना खर्चा चलाते थे.

इन तमाम संघर्षों के बाद जब उन्होंने NTPC और ग्रुप डी की परीक्षा के लिए आवेदन किया. लेकिन रेलवे की परीक्षा चार साल बाद हुई. तब तक उन्होंने जिस प्रतियोगी एग्जाम कि तैयारी की उसका सिलेबस ही बदल चुका था.

साल 2023 में सूर्यप्रताप पटवारी की परीक्षा के लिए आवेदन तो किया. लेकिन उनकी तबियत खराब हो जाने के कारण वो एग्जाम में नहीं बैठ पाए.

उनका कहना है कि मैं तो परीक्षा में शामिल नहीं हो पाया. लेकिन जिन लोगों ने पटवारी की परीक्षा दी है उनको पिछले कई महीनों से अधर में अटकाया जा रहा है. किसी एक के किए की सजा बाकियों अभ्यर्थीयों को क्यों दी जा रही है.

आगे कहते हैं कि बेरोजगारी को लेकर समाज में लोगों ने ऐसी मानसिकता बना ली है कि अगर कोई लड़का बेरोजगार है तो कोई भी बाप अपनी बेटी का हांथ उस बेरोजगार लड़के को देना नहीं चाहता है.

सरकार दिखावे के लिए तो युवाओं के हित में सीखों कमाओ जैसी योजनाएं लागू कर देती है. लेकिन उसकी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. सीखो कमाओ योजना में वैकेंसी निकली 65 हजार पदों पर. जहां आवेदन लगभग 9 लाख हुए. सरकार युवाओं के रोजगार और शिक्षा के लिए कोई भी उचित माध्यम उपलब्ध नहीं करा रही है.

सूर्यप्रताप शर्मा अंत में कहते हैं कि सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की वह झूठी घोषणाएं और वादे तो करती है. लेकिन किसी के भी एजेंडे में शिक्षा, स्वास्थय और रोजगार को लेकर कोई भी घोषणाओं नहीं होती हैं. युवाओं की इस हालत का संपूर्ण जिम्मेदार शासन में बैठे लोग हैं.   

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