मध्य प्रदेश के पन्ना जिले का एक छोटा सा गांव गहदरा, जहां शिक्षा की रोशनी तो पहुंची है, लेकिन स्थिति अब भी अंधकारमय बनी हुई है. सरकारी योजनाओं के बावजूद यहां के स्कूलों की स्थिति सोचने पर मजबूर कर देती है.
तीन कमरों में 95 बच्चों की पढ़ाई
गहदरा गांव का माध्यमिक शाला शिक्षा व्यवस्था की हकीकत बयां करता है. यहां कुल 95 छात्र नामांकित हैं, जो पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ते हैं. लेकिन सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब है. सिर्फ तीन कमरे, जहां सभी कक्षाएं जैसे-तैसे संचालित होती हैं. पर्याप्त जगह न होने के कारण बच्चे अक्सर एक-दूसरे से सटकर बैठने को मजबूर होते हैं. दीवारों की पुताई उखड़ चुकी है और स्कूल भवन जर्जर हालत में है.

शिक्षकों की कमी – कौन है जिम्मेदार?
इस विद्यालय में चार शिक्षक नियुक्त हैं—दो रेगुलर और दो अतिथि शिक्षक। लेकिन जब हमारी टीम ने स्कूल का दौरा किया, तो हालात कुछ और ही नजर आए. एक अतिथि शिक्षक गायब थे, और प्रधानाध्यापक का भी कोई अता-पता नहीं था. सरकारी रिकॉर्ड में शिक्षक मौजूद दिखाए जाते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है.
बच्चों का भविष्य अधर में
शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य बच्चों का भविष्य संवारना होता है, लेकिन गहदरा के बच्चे खुद सवाल कर रहे हैं कि क्या उनका भविष्य सुरक्षित है? यहां के अधिकांश बच्चे गरीब और आदिवासी परिवारों से आते हैं. उनकी पढ़ाई शिक्षकों की अनुपस्थिति और सुविधाओं के अभाव में प्रभावित हो रही है.

केन-बेतवा प्रोजेक्ट के कारण विस्थापन का खतरा
गहदरा गांव का भविष्य सिर्फ शिक्षा संकट से ही नहीं, बल्कि बेतवा नदी लिंक परियोजना के कारण विस्थापन के खतरे से भी जूझ रहा है. इस परियोजना के तहत गांव को खाली कराना पड़ सकता है, जिससे यहां के बच्चों की पढ़ाई और भविष्य और भी अनिश्चित हो जाए
क्या सरकार और प्रशासन इन बच्चों की आवाज सुनेंगे? या फिर यह गांव विस्थापित होकर इतिहास का हिस्सा बन जाएगा?