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किसान आंदोलन 2.0: एकबार फिर दिल्ली बॉर्डर पर किसान और पैरामिलिट्री फोर्स आमने-सामने, क्या इस आंदोलन का लोकसभा चुनाव में होगा असर?

किसान आंदोलन 2.0

साल 2020-21 के बाद देश का किसान एकबार फिर खेत छोड़कर दिल्ली बॉर्डर पर डेरा जमाए हुए है. किसान, पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स एकबार फिर आमने-सामने हैं. प्रशासन का पूरा जोर है कि किसान दिल्ली न घुस पाएं इसलिए बॉर्डर पर कड़ी व्यवस्था है. सीमेंट के स्लैब, नुकीली चीजें बॉर्डर पर बिछा दी गई हैं. आंसू गैस के गोले किसानों पर दागे जा रहे हैं. प्रशासन और किसानों के बीच लगातार बातचीत का दौर भी जारी है. 

देश में साल 2024 के लोकसभा चुनाव भी जल्द ही हो सकते हैं, जिसके लिए पीएम मोदी दावा भी कर चुके हैं कि अबकि बार NDA 400 पार. ऐसे में प्रशासन हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहता है ताकि चुनावों में इसका असर न हो. अब बात ये आती है कि जब दो साल पहले प्रशासन और किसानों के बीच सहमति बन गई थी तो अब किसान धरने पर क्यों बैठे हैं. किसानों का आंदोलन 2.0 पिछले आंदोलन से कितना अलग है? ये जानने के लिए पिछले आंदोलन के बारे में जानना जरूरी है. 

साल 2020-21 में बड़े पैमाने पर किसानों का आंदोलन हुआ. ये आंदोलन कृषि कानून के खिलाफ था. इस आंदोलन में किसानों की क्या-क्या मांग थीं एक नजर इसपर डालते हैं.

  1. MSP को लेकर जो नीति चल रही है, वही चलती रहे. इसमें कोई बदलाव न हो. 
  2. MSP निर्धारित करने के लिए समिति का गठन हो और उसमें संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य शामिल रहें
  3. पराली जलाने पर कोई मामला दर्ज न किया जाए
  4. आंदोलन के दौरान अगर किसानों पर कहीं कोई मामला दर्ज किया गया हो तो उसे वापस लिया जाए.
  5. आंदोलन के दौरान जान देने वाले किसानों के परिवार को मुआवजा मिले.

सालभर से ज्यादा चले इस आंदोलन का आखिरकार असर हुआ और किसानों की मांग पर सरकार से सहमति मिली और सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए.  19 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने एलान किया कि कृषि कानून वापस लिए जाएंगे.

आखिर जब किसान और सरकार के बीचे सहमति बन गई थी तो अब ऐसा क्या हुआ कि किसान फिर सड़कों पर उतर आई. 12 फरवरी 2024 की शाम किसान और केन्द्रीय मंत्रियों के बीच क्या बात हुई कि अगले दिन किसानों ने दिल्ली जाने का फैसला कर लिया. क्या ये आंदोलन पिछले आंदोलन से अलग है.

इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए किसानों के आंदोलन 2.0 की मांग जानना जरूरी है. 

  1. Msp के लिए स्वामीनाथन आयोग के अनुरूप कानून बनाया जाए
  2. किसान-मजदूरों की कर्ज माफी के लिए ऋण राहत कार्यक्रम 
  3. भूमि अधिग्रहण कानून (2013) की राष्ट्रीय स्तर पर बहाली
  4. 58 साल से अधिक उम्र वाले किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन
  5. पिछली आंदोलन में जिन किसानों की जान गई उनके परिवार को मुआवजा जल्द से जल्द मिले
  6.  जान गंवाने वाले किसानों के परिवार के एक सदस्य को नौकरी
  7. लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्याय
  8. कृषि से जुड़ी वस्तुओं, दूध, फल-सब्जियों पर इंपोर्ट ड्यूटी कम कर भत्ता बढ़ाया जाए
  9. विद्युत संशोधन विधेयक (2020) रद्द हो और बिजली की व्यवस्था हो
  10. मनरेगा को बढ़ाकर दिहाड़ी 700 रुपये हो और साल में 200 दिन रोजगार मिले
  11. नकली बीज, ऊर्वरक, कीटनाशक बेंचने वालों पर कार्रवाई
  12. हल्दी, मिर्ची जैसी सुगंधित फसलों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोग का गठन हो

अपनी इन्हीं मांगों को लेकर किसान एकबार फिर आंदोलन करने पर उतर आए हैं. केन्द्रीय मंत्रियों के साथ बैठक का दौर भी जारी है. अब किसानों का कहना है कि सरकार अपने वादे से मुकर गई है इसलिए दिल्ली का रुख करना पड़ा. 

एक तरफ बीजेपी इन किसानों के आंदोलन को राजनीति का हिस्सा बता रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष का कहना है कि हम किसानों के साथ हैं. पैरामिलिट्री फोर्सेस के हमले में घायल किसानों से राहुल गांधी ने फोन पर बात करते हुए ये कहा कि अपने हक के लिए लड़ना अच्छी बात है और हम आपके साथ हैं. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी का आरोप है कि विपक्ष इस आंदोलन को हवा दे रही है. 

हालांकि किसानों के इस आंदोलन का असर लोकसभा चुनाव में होता नजर नहीं आएगा, क्योंकि टेलीग्राफ में लिखे जयदीप के आर्टिकल की माने तो विपक्ष देश के इस तरह के मुद्दों को मजबूती देने में असमर्थ है. 

किसानों के आंदोलन का लोकसभा चुनाव पर असर, स्वामीनाथन की रिपोर्ट जैसी सारी बातें समझने के लिए वीडियो जरूर देखें

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