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53 साल का बांग्लादेश, जहां कोटा सिस्टम ने छीन ली पीएम शेख हसीना की कुर्सी!

बांग्लादेश में लोगों को आरक्षण, फ्रीडम फाइटर यानी की स्वतंत्रता सेनानी के परिवार वालों को मिलता है. जबकि हमारे भारत देश में जाति के आधार पर लोगों को आरक्षण मिलता है. कोटा सिस्टम (Quota system) के विरोध में आज बांग्लादेश जल रहा है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) अपने पद से इस्तीफा देकर भारत की शरण में पहुंच चुकी हैं.

1971 में आजादी मिलने के बाद बांग्लादेश (Bangladesh) आज 53 साल का हो चुका है. कोटा सिस्टम (Quota system) के विरोध में आज यह मुल्क जल रहा है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) अपने पद से इस्तीफा देकर भारत की शरण में पहुंच चुकी हैं. हालांकि इसी बीच बांग्लादेश में नयी अंतरिम सरकार का गठन हुआ और मोहम्मद युनुस ने मुखिया के तौर पर शपथ ली. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आरक्षण के मुद्दे पर छात्रों के विद्रोह का कारण क्या है और यह मामला इतना बड़ा कैसे बन गया कि देश की प्रधानमंत्री को ही अपना पद छोड़कर भारत (India) की शरण लेनी पड़ी.

बांग्लादेश की अगर बात करें तो यहां लोगों को आरक्षण, जाति (CASTE) के आधार पर नहीं बल्कि फ्रीडम फाइटर यानी की स्वतंत्रता सेनानी के परिवार वालों को मिलता है. जबकि हमारे भारत देश में जाति के आधार पर लोगों को आरक्षण मिलता है. बता दें कि 1947 में जब हमारा देश भारत आजाद हुआ था तो उस समय बांग्लादेश, पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था. इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. 1970 में पूर्वी पाकिस्तान की 162 सीटें और पश्चिमी पाकिस्तान की 138 सीटों पर चुनाव हुए. पश्चिमी पाकिस्तान में लोगों ने अलग पार्टी को वोट किया लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में ज्यादातर लोगों ने आवामी लीग पार्टी को वोट दिया. जिसे शेख मुजीबुर रहमान लीड कर रहे थे.

असली कहानी यहीं से शुरू होती है. जो नतीजे आए उससे यह साफ हो गया की दोनों पाकिस्तान में आवामी लीग की पार्टी सरकार बनाएगी. हालांकि पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ये होना नहीं देना चाहती थी. ऐसे में आर्मी के कमांडर इन चीफ याहिया खान ने इलेक्शन के रिजल्ट मानने से इंकार कर दिया और पूर्वी पाकिस्तान पर मार्शल लॉ लागू कर दिया जिसके खिलाफ मुजीबुर रहमान ने सिविल DISOBEDIENCE PROTEST शुरू कर दिया. तब पूर्वी पाकिस्तान पर कई हमले हुए और उन पर कई अत्याचार किये गए. जिसकी वजह से काफी ज्यादा संख्या में लोग पूर्वी पाकिस्तान छोड़ कर भारत आने लगे.

1971 का युद्ध
साल 1971 आता है और भारत – पाकिस्तान का युद्ध होता है. इसी युद्ध में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को आजादी दिलाई थी और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश का नाम दिया गया. पूर्वी पाकिस्तान के जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में मदद की. उन्हें फ्रीडम फाइटर कहा गया. आजादी के बाद, सरकार ने इन सभी फ्रीडम फाइटर को 30% का रिजर्वेशन यानी की आरक्षण देने का नियम बनाया.

फ्रीडम फाइटर के बच्चों के लिए कोटा
फ्रीडम फाइटर तक तो ठीक था लेकिन साल 1997 में इस कोटे को उनके बच्चों के लिए भी आरक्षित कर दिया गया और धीरे-धीरे ये कोटा उनके नाती पोतों को भी मिलने लगा. यहीं से विरोध के स्वर मुखर आवाज में उठने लगे और आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों को देने की बात होने लगी.

बांग्लादेश में क्या है कोटा सिस्टम
बांग्लादेश में कोटे की अगर बात करें तो 30% कोटा या आरक्षण फ्रीडम फाइटर के लिए है. वहीं 10% कोटा महिलाओं के लिए. बैकवर्ड डिस्ट्रिक्स के लिए 10% जिला कोटा है. 5% कोटा माइनॉरिटीज के लिए जबकि 1% कोटा है विकलांगों के लिए है. फ्रीडम फाइटर को मिलने वाला 30 प्रतिशत कोटा स्टूडेंट्स के प्रोटेस्ट की असली वजह है. प्रोटेस्ट करने वाले स्टूडेंट्स चाहते हैं की फ्रीडम फाइटर को मिलाने वाले आरक्षण को हटा दिया जाए. साल 2010 में इस कोटे को एक्सटेंड कर दिया गया था. जिसकी वजह से 2013 में भी लोगों ने आंदोलन किया था.

बांग्लादेश में आरक्षण संशोधन
साल 2018 में जब बांग्लादेश साधारण छात्र आधिकार संरक्षण परिषद् ने कोटा सिस्टम में बदलाव की सरकार से मांग की. सरकार ने दबाव में आकर अक्टूबर 2018 में 1ST और 2ND क्लास जॉब्स के लिए आरक्षण हटा दिया. लेकिन इसी साल 5 जून 2024 को सरकार ये अपना फैसला वापस ले लिया. दरअसल साल 2021 में कुछ फ्रीडम फाइटर के बच्चे इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए. जिसकी वजह से सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा और कोटा सिस्टम को फिर से शुरू करना पड़ा. इसके बाद से ही देश में प्रोटेस्ट होना शुरू हो गए.

आंदोलन करने वाले छात्रों की मांग
प्रोटेस्ट करने वाले स्टूडेंट्स कहते है की संविधान में ये नहीं लिखा गया है की फ्रीडम फाइटर के बच्चों और उनके पोते – पोतियों को भी रिजर्वेशन मिलना चाहिए. वो इसे गैरकानूनी (ILLEGAL) कहते हैं. इतना ही नहीं इस कोटा सिस्टम में एक और प्रॉब्लम यह है की इसमें सरकार तय करती है की कौन फ्रीडम फाइटर के बच्चे या पोते – पोतियां हैं जिन्हें रिजर्वेशन मिलना चाहिए. इस तरह सामान्य स्टूडेंट्स का यह मानना है की सरकार इसमें घोटाला कर रही है. आरोप है की सरकार अपने लोगों को इस रिजर्वेशन का फायदा देती है. इतना ही नहीं फ्रीडम फाइटर को लेकर जिन-जिन लोगों का नाम दिया गया है. इन्हें लेकर अब तक 60 हज़ार ऑब्जेक्शन (OBJECTIONS) लगा चुके हैं. लेकिन सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है.

कोटा सिस्टम में कोर्ट का रुख
10 जुलाई को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाता है और सरकार हाई कोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए याचिका दायर करती है. हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा देता है. बावजूद इसके प्रोटेस्ट रुकते नहीं है. 15 जुलाई को प्रोटेस्ट करने वाले लोगों और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन की झड़प होती है जिसमे 300 से ज्यादा लोग घायल हो जाते हैं. इसी समय देश की प्रधानमंत्री प्रदर्शन करने वालों को रजाकार कह कर संबोधित करती हैं.

बांग्लादेश में कौन होते हैं रजाकार
रजाकार उन लोगों को कहा जाता है. जिन्होंने 1971 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध में बांग्लादेश का साथ न देकर पाकिस्तान का साथ दिया था. शेख हसीना कहती हैं की स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटा नहीं मिलेगा, तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को मिलेगा? इस बयान के बाद से देश में हिंसा और बढ़ जाती है. जनता उन्हें डिक्टेटर यानी की तानाशाह कह कर बुलाने लगती है. 16 जुलाई जब ढाका, चटगांव और रंगपुर में प्रदर्शनकारी छात्रों और सुरक्षाबलों की झड़प में छह लोगों की मौत हो जाती है. 17 जुलाई को देश में राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा की जाती है और प्रधानमंत्री शेख हसीना न्यायिक जांच की घोषणा करती है. 18 जुलाई को पूरे देश में इंटरनेट की व्यवस्था बंद करवा दी जाती है. और देश भर के स्कूल और कॉलेजों को बंद कर दिया जाता है. इसी दिन प्रोटेस्ट में 29 लोगों की मौत हो जाती है.

बांग्लादेश में 19 जुलाई को कर्फ्यू
19 जुलाई को आधी रात में सरकार पूरे देश में कर्फ्यू लगा देती है. जिसकी वजह से आगजनी और तोड़फोड़ होना शुरू होता है और 66 लोगों की मौत हो जाती है. 20 जुलाई को कर्फ्यू के पहले दिन 21 लोगों की मौत होती है और इसी दिन बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया. इसके बाद 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट आरक्षण को 56 से घटाकर 7 प्रतिशत कर देती है. इसमें फ्रीडम फाइटर के वंशजों को 5% आरक्षण दिया जाता है.

हिंसा में 150 लोगों की मौत
22 जुलाई तक बीएनपी के कई नेताओं की गिरफ्तारी होती है. 26 जुलाई तक देश में इंटरनेट सुविधाए बंद रहती हैं. इसी दिन BNP पार्टी सरकार को गिराने का प्लान बनाती है. इसी बीच ढाका में 200 से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं और 2.13 लाख लोगों को अभियुक्त बनाया जाता है. तब तक देश में लगभग 150 लोगों की मौत हो चुकी होती है. 30 जुलाई को शिक्षक और छात्र मौन जुलूस निकालते है. इसके बाद परीक्षार्थियों को जेल से न छोड़े जाने पर सभी परीक्षाओं के बहिष्कार की घोषणा की जाती है.

प्रधानमंत्री आवास पर कब्ज़ा
2 अगस्त को प्रदर्शनकारी ‘न्याय मार्च’ में शामिल होते हैं और असहयोग आंदोलन की घोषणा करते है. 3 अगस्त को ढाका में हजारों लोग शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करते हैं. जिसके बाद कुमिला में हिंसा के दौरान 30 प्रदर्शनकारी घायल हो जाते हैं. 4 अगस्त को प्रदर्शनकारी एक बार फिर आरक्षण को लेकर भड़क जाते हैं और इसी दिन 100 से भी ज्यादा लोग इस झड़प में मारें जाते हैं. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश छोड़ कर भारत में शरण ले लेती हैं. जिसके बाद देश में हिंसा काफी बढ़ जाती है. लोग छी-छी हसीना शर्म करो का नारा लगाने लगते हैं. ढाका में स्थित आवामी लीग पार्टी के मुख्यालय में आग लगा दी जाती है और प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास पर कब्ज़ा कर लेते हैं.इन सब के बाद सेना प्रमुख प्रदर्शनकारियों से संयम बरतने की अपील करते हुए अंतरिम सरकार की घोषणा करते हैं.

बांग्लादेश में बगावत का पूरा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें.