Vindhya First

Search

SC-ST RESERVATION: आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या बदल जाएगा?

SC-ST RESERVATION पर सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसला सुनाया है. जिसके बाद राज्य सरकारें सब कैटेगरी रिजर्वेशन देने के लिए बड़े और महत्वपूर्ण कदम उठा सकती हैं. ऐसे में लाभार्थियों की पहचान आसानी से हो सकेगी.

आरक्षण (RESERVATION) एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर अक्सर देश के कई हिस्सों में चर्चा होती रहती है. देश में राज्य, धर्म और जाति के नाम पर काफी विभिन्नताएं थीं. 1947 में जब देश आजाद हुआ तो सरकार (Government) के सामने संविधान (Constitution) बनाने की भी प्रमुख चुनौती थी. देश की जनता को उनका हक मिल सके इसके लिए संविधान में कई तरह के प्रावधान किए गए. भारतीय संविधान में SC और ST वर्ग के लोगों को कई चीजों में छूट दी गयी जिसे RESERVATION या आरक्षण का नाम दिया गया.

अब इसी बीच 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से एक फैसला सुनाया. इस फैसले के मुताबिक राज्य सरकारें SC और ST यानी की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं. साथ ही राज्य की विधानसभा इसे लेकर कानून बनाने में सक्षम होंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा की सरकारी नौकरियों में SC-ST वर्ग के लोगों के लिए भी OBC की तरह क्रीमी लेयर होनी चाहिए.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है की ये आरक्षण कब तक रहेगा. क्या पिछड़े वर्ग में जो लोग आगे हैं क्या उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना बंद हो जाएगा? आरक्षण में (क्रीमी लेयर) CREAMY LAYER का सिद्धांत क्या है? साथ ही आरक्षण में इस नए बदलाव से क्या कुछ बदल जाएगा? ऐसे में सबसे पहले बात करते है आरक्षण की.

बता दें कि साल 1992 में इंदिरा सहानी केस से आरक्षण में CREAMY LAYER का सिधान्त आया. इसका मतलब है कि जो लोग OBC में होते हुए भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से आगे हैं. उन्हें क्रीमी लेयर के अंदर रखा गया है. क्रीमी लेयर SUB CLASSIFICATION या SUB CATEGORISATION के सामान नहीं बल्कि ऐसे ग्रुप को प्रदर्शित करता है. जो एक ही जाति के अंदर बाकि लोगों से उन्नत या बेहतर है. 16 नवंबर 1992 को जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में नौ न्याय धीशों की पीठ ने आरक्षण को लेकर एक फैसला सुनाया जिसमे क्रीमी लेयर को छोड़ कर 27 प्रतिशत आरक्षण को बरक़रार रखा गया था.

SC-ST के आरक्षण को लेकर नया फैसला
1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने 20 साल पुराने ईवी चिन्नैया मामले पर अपना फैसला सुनाया है. जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने दिए गए फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण यानि की SUB-CLASSIFICATION नहीं किया जा सकता है. यानि की अब राज्य सरकारें अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए SC-ST में CLASSIFICATION कर सकती हैं यानि की कोटे के अन्दर कोटा. जिससे की आरक्षण का लाभ केवल उन्ही लोगों को मिल पाए जो इसके असली हक़दार हैं.

बता दें की यह फैसला सुनाने वालों में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे. हालांकि इस बेंच के जस्टिस बेला एम त्रिवेदी इस फैसले के खिलाफ थे.

कोटे के अंदर कोटा का कांसेप्ट क्या है
आसान भाषा में कोटे के अंदर कोटा का अर्थ है कि आरक्षण मिलने वालों की जाति के अंदर उन लोगों की पहचान करना जो अति पिछड़े या अति वंचित हैं. जिससे की उनका उत्थान हो सके और वो भी आगे बढ़ सकें. कोटे के अंदर कोटा करने से जो लोग आर्थिक सामाजिक या किसी भी रूप से आगे हैं. उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पायेगा. इसका उदेश्य आरक्षण के बड़े समूहों के भीतर छोटे, कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना है ताकि वे भी आरक्षण का लाभ उठा सकें.

वह मामला जिस पर आरक्षण का नया फैसला सुनाया गया है
फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट के सामने पंजाब सरकार बनाम दविंदर सिंह का केस आया. दरअसल पंजाब सरकार ने 2006 में एक कानून पंजाब अनुसूचित जाती और पिछड़ी जनजाति सेवा आरक्षण कानून बनाया था. इसके अंदर पंजाब सरकार ने sc-st में categorisation किया. जिसमे जो लोग sc-st में होकर आर्थिक या किसी भी मामले में आगे हैं उन्हें ग्रुप-A में रखा गया. जो लोग सबसे पीछे हैं उन्हें ग्रुप-B में रखा गया और जो मध्यम हैं उन्हें ग्रुप-C में रखा गया. और इसे sc-st का SUB-CATEGORISATION कहा गया.

जब ये कानून बना तो इसे पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी और 29 मार्च 2010 को इस कानून को रद कर दिया गया. इस कानून को रद करने के पीछे कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले का हवाला दिया. ईवी चिन्नैया मामले पर साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया था. जिसमें ये कहा गया की SC या ST वर्ग में उप-वर्गीकरण का अधिकार राज्य को नहीं है और इसके लिए कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 341 का हवाला दिया गया था.

अनुच्छेद 341 क्या है
अनुच्छेद 341 के तहत केवल राष्ट्रपति को ही SC और ST की सूची में बदलाव करने का अधिकार है. इसके अलावा कोई अन्य इसमें छेड़छाड़ नहीं कर सकता है.  

1 अगस्त को सुनाया गया फैसला
पंजाब हाई कोर्ट के फैसले के बाद पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अगस्त 2010 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच के सामने सुनवाई शुरू हुई. मामले को संवैधानिक बेंच पर रेफर कर दिया गया. जिसके बाद फरवरी 2020 में 5 जजों की संवैधानिक बेंच के सामने सुनवाई हुई. जिसमे तात्कलिक बेंच ने कहा, “अगर राज्य के पास आरक्षण देने का अधिकार है तो उसके पास वर्गीकरण करने का भी अधिकार होना चाहिए.” संघीय ढांचे के तहत “राज्यों को आरक्षण की सूची में बदलाव करने से वंचित नहीं किया जा सकता है.” जब फरवरी 2020 तक उन पांच जजों की बेंच कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंची तब इसे कोर्ट ने और बड़ी बेंच को रेफर कर दिया. इस मामले पर लगातार 3 तक सुनवाई हुई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा जिसे 1 अगस्त को सुनाया गया.

सुप्रीम कोर्ट की 5 बड़ी बातें

  • SC/ST समुदाय के लोग समाज की सीढ़ी नहीं चढ़ पाते क्योंकि उन्होंने पूरे तंत्र के स्तर पर भेदभाव झेला है.
  • सभी दलित जातियां एकसमान नहीं हैं और उनके बीच की सामाजिक स्थितियां भी समान नहीं हैं.
  • राज्य सरकारें जातियों के बीच भी पिछड़ेपन की शिनाख्त कर सकती हैं.
  • अगर अछूत होना पैमाना है तो राज्य को उसे सटीक आंकड़ों के साथ प्रमाणित करना होगा.
  • सरकारों के फ़ैसले की न्यायिक समीक्षा होगी.

नए कानून के आने से क्या बदल जायेगा
कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकारें अपने हिसाब से कोटे के अंदर कोटा लगा सकती है. राज्य सरकारें सब कैटेगरी रिजर्वेशन देने के लिए बड़े और महत्वपूर्ण कदम उठा सकती हैं. इसके लिए राज्य सरकारें सामाजिक और आर्थिक आंकड़े कलेक्ट करनें के लिए राज्य सरकारें सर्वे, जनगणना और रिसर्च कर सकती है. एक बार लाभार्थियों की पहचान हो जाने के बाद सब कैटेगरी रिजर्वेशन दिया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकारें सब कैटेगरी रिजर्वेशन को कानूनी मान्यता देने के लिए विधानमंडल में विधेयक भी पेश कर सकती हैं.

SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर की पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो।।