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Toggleसरदमन स्कूल के सिर पर मौत: 100 फीट गहरी अवैध खदान से कांपता बचपन
सरदमन स्कूल के सिर पर मौत: मऊगंज जिले के सरदमन गांव की ये तस्वीरें सिर्फ सरकारी लापरवाही नहीं, बल्कि बच्चों के जीवन से हो रहे सीधे खिलवाड़ को उजागर करती हैं. गांव की शासकीय प्राथमिक शाला, जहां रोज़ आदिवासी बच्चे पढ़ाई के लिए आते हैं, उसके ठीक 25 कदम की दूरी पर एक 100 फीट गहरी, खतरनाक और अवैध खदान मौजूद है.
हर दिन धमाके, हर दिन डर
इस खदान में हर रोज़ विस्फोट होते हैं, जिनकी आवाज़ इतनी तेज होती है कि बच्चों के कान और दिल दोनों कांप उठते हैं. विस्फोट के दौरान शिक्षक और स्टाफ को बच्चों को लेकर स्कूल छोड़कर बाहर भागना पड़ता है. कई बार ब्लास्टिंग के झटकों से स्कूल की दीवारों में दरारें तक आ चुकी हैं.
खदान अवैध, नियम सिर्फ कागजों तक
यह खदान किसी वैध लीज के अंतर्गत नहीं आती. यह पूरी तरह अनाधिकृत और छोड़ी गई खदान है. यहां न तो कोई चेतावनी बोर्ड है, न सुरक्षा घेरे और न ही कोई सरकारी निगरानी. माइनिंग एंड मिनरल्स एक्ट के तहत किसी भी स्कूल या शिक्षण संस्था के 300 मीटर के भीतर खनन प्रतिबंधित है, लेकिन सरदमन में यह नियम खुलेआम टूट रहा है.
री-क्लेमेशन की अनदेखी, सुरक्षा को दरकिनार
माइनिंग कानून के अनुसार जब कोई खदान बंद होती है, तो उसे री-क्लेमेशन प्रक्रिया के तहत भरकर समतल करना होता है. इसके लिए कंपनियों से सिक्योरिटी मनी ली जाती है, ताकि ज़मीन को सुरक्षित बनाया जा सके. मगर यहां न कोई भराई हुई, न समतलीकरण और न ही कोई प्रशासनिक हस्तक्षेप. खदान को यूं ही बच्चों के स्कूल के पास खुला छोड़ दिया गया है.
सिर्फ बच्चे नहीं, पूरे गांव की जान पर खतरा
ग्रामीणों के अनुसार आस-पास कई और ऐसे गड्ढे मौजूद हैं, जिनकी गहराई 150 फीट तक है. इनमें पशु आए दिन गिरकर मर जाते हैं. एक महिला की जान भी इस कारण जा चुकी है. लेकिन सबसे बड़ा खतरा स्कूल के मासूम बच्चों पर मंडरा रहा है. वे हर दिन मौत के साए में पढ़ाई कर रहे हैं.

शिकायतें हुईं, पर नतीजा सिफर
स्थानीय लोगों ने कई बार इस खदान को बंद करने और स्कूल को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने की मांग की, लेकिन नतीजा सिर्फ “देखेंगे, सोचेंगे” तक ही सिमटा रहा. अधिकारी आए, निरीक्षण किया, आश्वासन दिए और लौट गए.
विधायक आए, फोटो खिंचवाई, लेकिन बदलाव नहीं
कुछ महीने पहले स्थानीय विधायक प्रदीप पटेल भी गांव पहुंचे थे. उन्होंने स्थिति देखी और अधिकारियों को कार्रवाई के निर्देश दिए. मगर आज तक न खदान बंद हुई, न सुरक्षा दीवार बनी और न ही स्कूल को स्थानांतरित किया गया. तस्वीरें खिंचवाई गईं, सोशल मीडिया पर पोस्ट हुईं, फिर सब कुछ पहले जैसा हो गया.
कब जागेगा सिस्टम?
सरदमन गांव की यह घटना सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है. यह पूरे सिस्टम पर एक सवाल है — क्या बच्चों की जान की कोई कीमत नहीं? शिक्षा के मंदिर के बगल में जब मौत का खौफ हो, तो कैसा भविष्य और कैसी नीति?
सरकार से सवाल करती ये पंक्तियाँ:
“दीवारें गिरें तो मरम्मत होती है,
मगर जब भरोसा गिर जाए तो क्या करेंगे?
शिक्षा के नाम पर वादे बहुत हैं,
पर ज़मीनी हालात में बच्चों की सांसें भी दांव पर लगती हैं.”