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Toggleकांवड़ यात्रा: आस्था या राजनीति? क्या ये संविधान के अनुच्छेद 14-19 का उल्लंघन है?
कांवड़ यात्रा: कांवड़ यात्रा, जो कभी शिव भक्ति और आत्मचिंतन का प्रतीक थी, अब राजनीतिक राष्ट्रवाद और धार्मिक भेदभाव का औजार बनती जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा में QR कोड लगाने की घोषणा ने इस बहस को नया मोड़ दिया है. यह यात्रा अब भजन-कीर्तन और तपस्या के बजाय लाउड म्यूजिक, ट्रकों के काफिले और तिरंगे के साथ शक्ति प्रदर्शन का मंच बन गई है.
QR कोड: सुविधा या धार्मिक प्रोफाइलिंग?
इस साल कांवड़ यात्रा मार्गों पर QR कोड लगाए गए हैं. सरकार का दावा है कि यह भोजन की शुद्धता और यात्रियों की सुविधा के लिए है. लेकिन कई लोग इसे मुस्लिम दुकानदारों की पहचान करने और उन्हें सामाजिक बहिष्कार का निशाना बनाने की कोशिश मान रहे हैं. क्या यह धार्मिक भक्ति के बजाय धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का तरीका बन रहा है?
संवैधानिक सवाल
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनका तर्क है कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती है. सवाल यह है कि क्या धार्मिक आयोजनों में QR कोड के उपयोग से धार्मिक प्रोफाइलिंग को बढ़ावा मिल रहा है? क्या राज्य और प्रशासन को किसी धर्म के प्रचार का औजार बनाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक नहीं है?
सत्ता, पुलिस और भीड़ का गठजोड़
प्रोफेसर अपूर्वानंद का मानना है कि प्रशासन और पुलिस ‘आस्था’ के नाम पर भीड़ की गुंडागर्दी को संरक्षण दे रही है. कांवड़ यात्रा के दौरान अक्सर रास्ते रोके जाते हैं, अस्पताल जाने के मार्ग बंद होते हैं, और पुलिस भीड़ के आगे निष्क्रिय हो जाती है. आस्था का सम्मान जरूरी है, लेकिन क्या आस्था के नाम पर कानून को नजरअंदाज करना उचित है?
भक्ति या राजनीति?
कांवड़ यात्रा का बदलता स्वरूप अब सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं रहा. यह राजनीति, धर्म और राष्ट्रवाद के खतरनाक मेल का उदाहरण बन गया है. क्या शिव भक्ति में QR कोड और शक्ति प्रदर्शन जरूरी है? क्या हम एक ऐसे मोड़ पर हैं जहां भक्ति की जगह डर और नफरत ले रही है? ये सवाल आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो गए हैं.