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Toggleटीम इंडिया संकट: कभी ‘होम बुलडोजर’… अब गंभीर युग में डगमगाई टीम इंडिया? क्या सच में सेलेक्शन में है ‘सर्जरी’ की जरूरत
टीम इंडिया संकट: कुछ समय पहले तक भारतीय क्रिकेट टीम को घरेलू मैदानों पर एक अजेय ‘बुलडोजर’ के रूप में जाना जाता था. वह टीम जो अपने दर्शकों के सामने किसी भी विपक्षी टीम को रौंद देती थी. उसकी जीत का सिलसिला लगातार जारी रहता था. लेकिन हाल के कुछ महीनों में यह तस्वीर धुंधलाने लगी है. एक ऐसी ‘गंभीर युग’ में प्रवेश करती नजर आ रही है जहाँ नतीजे अनिश्चित हो गए हैं और टीम की रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं.
कहाँ गया वह शानदार दौर?
याद कीजिए वह समय जब भारत ने घर पर सीरीज के पीछे सीरीज अपने नाम की थी. टेस्ट क्रिकेट में spin-friendly पिचों पर विदेशी टीमों का सफाया कर देना आम बात थी. लेकिन हाल में हुई कुछ हार और करीब-करीब हारने के मैचों ने एक अलग ही कहानी बयां की है. टीम ने अपना वह क्रूर और निर्णायक स्वरूप खो दिया है जो उसकी पहचान हुआ करता था. मैच जीतने की उस आदत में दरार नजर आ रही है.
चयन समिति के सामने बड़ी चुनौती
यही वह मोड़ है जहाँ चयन समिति की भूमिका सबसे अहम हो जाती है. अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या मौजूदा खिलाड़ियों के साथ चलते रहना ठीक है या फिर टीम में कुछ बड़े बदलाव करने की जरूरत है. क्या वाकई सेलेक्शन में ‘सर्जरी’ का वक्त आ गया है.
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विराट और रोहित का भविष्य. जिन दो महान खिलाड़ियों ने years तक भारतीय बल्लेबाजी का नेतृत्व किया, उनके फॉर्म में गिरावट चिंता का सबब बनी हुई है. क्या अब नए खिलाड़ियों को लंबी रस्सी देने का समय आ गया है. या फिर उनके अनुभव पर भरोसा जारी रखना चाहिए.
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मध्य क्रम की अस्थिरता. टीम के पास एक स्थिर मध्य क्रम नजर नहीं आ रहा. एक पारी के बाद दूसरी पारी में प्रदर्शन बदलता रहता है. ऐसे में क्या कुछ नए चेहरों को मौका देकर उन्हें तैयार किया जाना चाहिए.
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गेंदबाजी में विविधता का अभाव. चोटों और फॉर्म के चलते गेंदबाजी इकाई में भी स्थिरता का अभाव है. क्या टीम मैनेजमेंट को अगले बड़े टूर्नामेंट के लिए एक clear plan के साथ आगे बढ़ना चाहिए.
क्या ‘सर्जरी’ है एकमात्र रास्ता?
‘सर्जरी’ शब्द का मतलब यह नहीं है कि पूरी टीम को हटाकर नए खिलाड़ी ले लिए जाएं. बल्कि इसका सही अर्थ है सटीक और सोच-समझकर बदलाव करना.
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युवा रक्त का समावेश. घरेली क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन कर रहे युवा खिलाड़ियों को टीम में शामिल करना. उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका देना.
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फॉर्म को प्राथमिकता. पुराने नामों पर भरोसा करने के बजाय वर्तमान फॉर्म को चयन का आधार बनाना.
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टीम संतुलन पर ध्यान. इस बात पर गौर करना कि टीम में बैलेंस है या नहीं. क्या हमारे पास सही संयोजन वाली टीम मैदान में उतर रही है.
निष्कर्ष
टीम इंडिया निस्संदेह एक कठिन दौर से गुजर रही है. लेकिन यह दौर उतना भी बुरा नहीं है जितना दिख रहा है. यह एक संक्रमण का समय है. ऐसे में चयनकर्ताओं पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. उन्हें दूरदर्शिता और साहस के साथ फैसले लेने होंगे. जरूरत ‘बुलडोजर’ को फिर से पटरी पर लाने की है. और इसके लिए जरूरी है कि सही समय पर सही ‘सर्जरी’ की जाए. ताकि टीम इंडिया फिर से दुनिया की क्रिकेट पर छा सके.
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