मध्यप्रदेश सरकार ने अपने लोगों को रोजगार देने के लिए खूब वादे किए हैं, कई घोषणाएं भी की हैं. मध्यप्रदेश सरकार की कई ऐसी घोषणाएं हैं जिनकी चर्चा देश भर में हैं जैसे लाडली बहना, सीखो कमाओ योजना. सवाल ये है कि अगर सरकार अपने लोगों को रोजगार देने के लिए इतना कुछ कर रही है तो बेरोजगारी कैसे इतनी तेजी से बढ़ रही है? इसकी एक बड़ी वजह है आउटसोर्सिंग. यानी भर्तियां न करनी पड़े इसलिए सरकार लगभग सारा काम ठेके पर करवा रही है.
घोषणाओं का प्रदेश कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की आबादी 7.5 करोड़ है. यहां ग्रुप 3 और ग्रुप 4 के कर्मचारियों की नियुक्ति 20 सालों से नहीं हुई है, यहां सभी सुविधाएं ठेके पर मुहाईया कराई जाती हैं. इनके द्वारा किए जाने वाले कामों का जिम्मा ठेकेदारों के पास है.सरकारी जुमले में इसे आउटसोर्सिंग कहा जाता है. यानी भर्ती ना करनी पड़े और बाहरी ठेकेदारों के काम चलाऊ स्टाफ से काम चलाया जाए.
मध्यप्रदेश के 56 सरकारी विभागों में 80% काम करने वाले कर्मचारी आउटसोर्स हैं. यानी 80% निजीकरण किया जा चुका है.आपको मिलने वाली सरकारी सुविधाएं सरकार की नहीं हैं बल्कि ठेके पर जा चुकी हैं. मध्यप्रदेश की शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, लोक सेवा विभाग हो, नगर निगम हो, कलेक्ट्रेट हो सभी जगह का 80% निजीकरण किया जा चुका है. मध्यप्रदेश में 12 लाख कर्मचारी आउटसोर्स हैं जिन्हें कभी भी हटाया जा सकता है.
जनता की मूलभूत सुविधाओं से जुड़े कई विभाग के कर्मचारी भी ठेके पर हैं जैसे किसी दुर्घटना स्थल में सबसे पहले पहुंचने वाला डायल 100, एंबुलेंस 108 सरकार की नहीं है. स्वास्थ्य विभाग में 3 लाख कर्मचारी हैं जिनमे 2.5 लाख आउटसोर्स हैं. अस्पतालों में डॉक्टर्स और नर्स को छोड़ कर सभी कर्मचारी आउटसोर्स हैं.
देश मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया की दौड़ में है बिना कंप्यूटर के कोई काम मुमकिन नहीं है. हैरान कर देने वाली बात है कि मध्यप्रदेश सरकार के पास अपना खुद का एक कंप्यूटर ऑपरेटर नहीं है. 100% कंप्यूटर ऑपरेटर ठेके पर कंपनियों द्वारा मुहैया कराए जाते हैं.
जनता के कौशल विकास की योजनाएं लाई गई हैं, लेकिन व्यावसायिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों की भर्ती ही नहीं हुई है. व्यावसायिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों को भी कंपनियां ठेके पर उपलब्ध करवाती हैं. सरकार की नल जल योजना में काम करने वाले कर्मचारी सरकारी नहीं है. मध्यप्रदेश में बिजली विभाग के 60,000 कर्मचारी हैं, जिनमे 55,000 आउटसोर्स है.
विंध्य फर्स्ट की टीम ने आउटसोर्स कर्मचारी से बात की जिसमें हमने लोक सेवा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, बिजली विभाग के कर्मचारियों से बात की. उनका कहना है कि आउटसोर्सिंग के माध्यम से वह सरकारी विभागों में पदस्थ हैं. कर्मचारी कुर्सियों पर बैठकर ओवरटाइम काम करते हैं लेकिन मासिक वेतन भी पूर्ण रूप से उन्हें नहीं मिलता है. सरकार द्वारा जो योजनाएं चलाई जाती हैं उनका लाभ भी उन्हें नहीं मिलता है. सबसे बड़ी बात ये है कि जॉब की कोई गारंटी नहीं होती है. कभी भी कंपनी इन्हें काम से बर्खास्त कर देती है. जो लोग 30 सालों से काम कर रहे हैं, उन्हें भी नियमित नहीं किया गया है और अब वह जीवन के आखिरी पड़ाव में हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.