ग़रीबी यानी वो दशा जब किसी किसी की रोटी, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतें भी पैसे की कमी की वजह से पूरी नहीं हो पातीं. ग़रीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल से मिल पाती है. भारत के लिए ग़रीबी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. भारत के 21.9 फ़ीसदी लोग हैं जो ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं, ये आंकड़ा 2011 की जनगणना का है. मध्यप्रदेश में आप कहां हैं? प्रदेश के 20.63 फ़ीसदी लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं. सिंगरौली में 51.92 फ़ीसदी, सतना में 34.12 प्रतिशत और सीधी में 52.68 फीसदी और रीवा में 37.04 फीसदी लोग गरीब हैं. अनूपपुर मे 41.70 फीसदी, शहडोल में 43.50 फीसदी, उमरिया की 45.60 फीसदी आबादी गरीब है. विंध्य में ग़रीबी का कुल प्रतिशत है 44 फीसदी.
बीते समय में गरीबी मिटाने के कई वादे किए गए, कई योजनाएं बनाई गईं लेकिन आज भी करोड़ों लोगों को भूखे पेट सोना पड़ता है. जब तक आखिरी व्यक्ति तक विकास नहीं पहुंचता विकास हर मायने में अधूरा है. यही बात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नें भी कही थी.
गरीबी दूर करने के कुछ एक्शन प्वाइंट्स हैं जो विंध्य क्षेत्र में लंबे समय से जमीनीं स्तर पर कार्यरत 2 सामाजिक कार्यकर्ता, अनूपपुर से विकास सिंह चंदेल, रीवा की श्लेषा शुक्ला और भोपाल यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर अमित झा से बात करने पर सामने आए.
अनूपपुर जिले में लंबे समय से समाज सेवा में लगे विकास सिंह चंदेल का कहना है कि योजनाएं बेहतरीन हैं लेकिन उन्हे जमीन पर सही से लागू नहीं किया जाता. इसके अलावा योजनाओं को क्षेत्र के हिसाब से बनाना जरूरी है. विंध्य क्षेत्र में पानी की कमी है, भू-जल स्तर नीचे है, नहर इत्यादि की सुविधाएं कम हैं तो य़हां उद्यान जैसे प्रोजेक्ट लगाना चाहें तो वो सफल नहीं होगा. इनका कहना है कि स्थानीय खनिज संपदा आधारित उद्योगों में स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाए. कृषि और फॉरेस्ट प्रोड्यूस उत्पादन यूनिट, मार्केट लिंक्ड फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगें.
अमित झा का कहना है कि शिक्षा पर खासतौर पर ध्यान देने की जरूरत है. ऐसे बहुत सारे स्टार्टअप हैं जो शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाते हैं क्योंकि सरकार उसमें मदद नहीं करती या फिर छोटे-छोटे व्यवधान खड़े कर देती है. इसलिए स्वरोजगार के रास्ते में आने वाली छोटी-मोटी समस्याओं को रोकना होगा. लालफीताशाही को खत्म करने की जरूरत है और किसी भी योजना के तहत पैसे देने की बजाय इस बजट से कोई रोजगार का साधन पैदा किया जाए,वो बेहतर विकल्प होगा.
रीवा शहर में सामाजिक कार्यकर्ता श्लेषा शुक्ला का कहना है कि सरकार को लोगों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटना बंद कर देना चाहिए और उन्हें रोजगार देना चाहिए क्योंकि मुफ्त की खाने की आदत लोगों को आगे नहीं बढ़ने देती है.
गरीबी हटाने के 7 एक्शन प्वाइंट्स निम्नलिखित हैं-
1.योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही कार्यान्वयन.
2.क्षेत्र की भौगोलिक संरचना के हिसाब से योजनाओं का निर्माण.
3. सुचारू शिक्षा व्यवस्था.
4. लोकल और फॉरेस्ट प्रोडक्ट्स के प्रसंस्करण यूनिट लगाकर इनको मार्केट में पहुंचाना.
5. एक बेहतर डेवलपमेंट प्लान की आवश्यकता है.
6. रोजगार के नए साधन बनाने होंगे, लालफीताशाही को कम करना होगा जो रोजगार के रास्ते में रोड़ा बनती हैं.
7. स्वरोजगार को आगे बढ़ाने के के लिए आगे आना होगा और उसके रास्ते में आ रहे छोटे व्यवधानों को हटाने का प्रयास करना चाहिए.
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