‘गीता के दूसरे अध्याय में श्री कृष्ण अर्जुन को समझते हैं कि जो लोग कर्म नहीं करते हैं, अपने कर्तव्य से भागते हैं, कायर होते हैं. कर्म न करना भी एक कर्म ही है इसका फल हमें हानि और अपयश के रूप में मिलता है. अकर्म रहने से हमें घर परिवार में भी मान सम्मान नहीं मिल पाता है. जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उन्हें उसी प्रकार के फल की प्राप्ति होती है.’
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजे से यह बात तय होती है कि सत्ता पक्ष को उसका काम और विपक्ष को उसका काम करना ही होगा. सत्ता का दल भाजपा कर्ज के कौरा से ही सही, मतदाता के समक्ष करिश्माई नेतृत्व साबित करने में सफल रहा. लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस ने किया धरा कुछ नहीं बस इसी जुमले में गोल-गोल घूमती रही कि जनता भाजपा से ऊब चुकी है, कांग्रेस को चुनने की मजबूरी है. कांग्रेस के लोग भ्रम के शिकार रहे कि द्विपक्षी ध्रुवीकरण के कारण मतदाता लाचार होकर कांग्रेस को स्वीकार करेगा. सरकार सत्ता पक्ष की होती है तो सड़क विपक्ष की है. लेकिन कांग्रेस ने लोगों के आंसू पोंछने का काम नहीं किया जो विपक्ष का काम है.
बीजेपी मध्य प्रदेश में 2003 से लगातार सत्ता में है उसने कांग्रेस के द्वारा बनाए सूचना के अधिकार को समाप्त करने का प्रयास किया. लोकायुक्त, सूचना आयुक्त, आर्थिक विभाग में स्टाफ की कमी बनाए रखी. महत्वपूर्ण पदों पर प्रभारी की तथा प्रमोटी एवं दागी अधिकारियों की पदस्थापना की. कांग्रेस इन सबके विरोध में संघर्ष करते नहीं दिखी. अधाधुंध आदिवासियों और किसानों का जबरिया अधिग्रहण और विस्थापन होता रहा, नौजवानों के भविष्य में ग्रहण लगाने वाले व्यापम और पटवारी भर्ती घोटाला सहित कई घोटाले होते रहे, मजदूरों के हकों में हमला होता रहा, महिलाओं पर व्यभिचार पर प्रदेश, देश में जेष्ठ रहा. दुधमुहों के निवाले, पोषण आहार का घोटाला किया गया. विपक्ष के कर्म से कांग्रेस अबोध बनी रही और सड़क सूनी रही.
भ्रष्टाचार का आलम यह था कि भाजपा राज्य में भ्रष्टाचार भी रोता था, भ्रष्टाचार कहता था कि हमें भी भ्रष्ट कर दिया, उसने कहा पहले लोग गलत कार्य के लिए मेरा सहारा लेते थे. भाजपा राज्य में सही कार्य को भी करने के लिए मेरा सहारा लिया और मुझे भी भ्रष्ट कर दिया. भाजपा सरकार में गरीब अपनी जेब नहीं संभालता था, बल्कि अपने कपड़े को कसकर पकड़े रहता था कि सरकारी तंत्र उतार न ले. भाजपा शासन में लाखों करोड़ों का ठेका लेने वाले ऐसे ठेकेदार पैदा हो गए जो घर का चुअना तक नहीं बनवा सकते. विपक्ष के नाते सड़क कांग्रेस की थी लेकिन कांग्रेस नजर नहीं आई.
संभवतया भाजपा का ही दांव था जिसमें चुनाव के कुछ पहले कई चैनल ने कांग्रेस की सरकार बना दी और कांग्रेस इस कहावत के चरितार्थ में उतारू हो गई कि ‘लोभी के गांव में ठग भूख नहीं रहता’ और टिकट बटवारे में बंदर बांट किया. बंदरबाट का मतलब है योग्य व्यक्तियों को मौका ना देते हुए अयोग्य अथवा अपात्र अपने चाटुकारों को उपकृत करना.
हालांकि कांग्रेस सत्ता की हकदार कतई नहीं थी, जितना (66 सीटें) मिला उसकी भी पात्र नहीं थी. सब कुछ जानते और याद होने के बाद भी मैंने भी चुनाव में कुछ सीटों में कांग्रेस का समर्थन किया क्योंकि भाजपा शासन में देश का संविधान, देश की संवैधानिक संस्थाएं और देश का भाईचारा संकट में है.
टोंको रोको ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा के संयोजक
उमेश तिवारी
(ये लेखक के निजी विचार हैं)