अजित राय भारत के फिल्म और थिएटर समीक्षक और सांस्कृतिक पत्रकार हैं. अजित राय ने अपने करियर में सभी प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ भारत और विदेश में 35 सालों से अधिक का अनुभव प्राप्त किया है. अजित राय की अंग्रेजी में बेस्टसेलर किताब ‘हिंदुजा एंड बॉलीवुड’ और हिंदी में ‘बॉलीवुड की बुनियाद’ है. अजित राय को 50 से अधिक देशों और नोबेल पुरस्कार समारोहों में आमंत्रित किया जाता है. दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित कान्स फिल्म फेस्टिवल ने उन्हें दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण फिल्म पत्रकारों में से एक माना है. विंध्य फर्स्ट से भारतीय सिनेमा और मीडिया पर अपने विचार रखें हैं. साथ ही उन्होंने विश्व सिनेमा के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला है.
सवाल- OTT के ज़माने में फिल्म फेस्टिवल की क्या प्रासंगिकता है? छोटे क्षेत्रों में फिल्म फेस्टिवल क्यों ज़रूरी है?
अजित राय- भारत में बनने वाली अच्छी फ़िल्में सिनेमा घरों में रिलीज़ नहीं हो पातीं क्योंकि पूरे देश में कुल 13,000 स्क्रीन हैं, जो पर्याप्त नहीं हैं. 13,000 स्क्रीन में 5,000 साउथ में हैं, तो बचे 8,000 स्क्रीन. भारत में साल भर में 2,000 फिल्में बनती हैं, जो फिल्में देश के प्रतिष्ठित अभिनेताओं की आने वाली फ़िल्में साढ़े 7 हज़ार हॉल बुक कर लेती हैं, तब 500 हॉल बचे. अब सवाल यही है कि, 500 हॉल में 2,000 फ़िल्में कैसे रिलीज़ होंगी. दुनिया भर में जो सिनेमा का विकास होता है, वो स्वतंत्र सिनेमा की वजह से बनता है.
सवाल- भारत में बॉलीवुड को लेकर आपके क्या विचार हैं, बॉलीवुड में बनने वाली फ़िल्मों का क्या स्तर है?
अजित राय- मध्यप्रदेश के कवि श्रीकांत वर्मा की रचना मगध में एक पंक्ति है कि, मगध में विचारों की बहुत कमी है, उसी तरह बॉलीवुड में विचारों की बहुत कमी है. अभी वो लोग 100 साल पीछे हैं. भारत में जो बेहतर टैलेंट है, प्रतिभा है उसका उपयोग फ़िल्म निर्माण में नहीं हो पा रहा है, इसीलिए हम उसमें पिछड़े हुए. टेक्नोलॉजिस में प्रतिभा का उपयोग किया गया है, इसीलिए उसमें हम दुनिया में गिने जाते हैं.
सवाल- मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच क्या मैसेज पहुंच रहा है? साहित्य का आने वाला दौर कैसा होगा?
अजित राय- सिनेमा भी माध्यम है, और भारत में हम देख रहे हैं कि, डायरेक्टर्स बहुत सारा पैसा सिर्फ स्टार चेहरों पर लगा रहें हैं, जिससे सारी कमाई बंट जाती है. जैसे यदि 200 करोड़ की कोई फ़िल्म है, उसमें 100 करोड़ तो उसका हीरो ही ले लेता है. दूसरे चीज़ों के लिए पैसा बचता ही नहीं है. इसीलिए मेरा मानना है कि, में स्ट्रीम मीडिया ने बहुत नुकसान पहुंचाया है, सिनेमा को.
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