साल 2023 का upsc रिजल्ट एकतरफ तो कुछ लोगों के लिए तो ढेरों खुशियां लेकर आया, वहीं कुछ लोगों के लिए दोबारा तैयारी में लग जाने का पैगाम भी लाया. कुछ लोगों की उम्मीदें भी टूटी और वो अब इससे अलग हटकर कुछ करने के बारे में सोच रहे हैं. भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक upsc के लिए हर साल लाखों बच्चे तैयारी तो करते हैं लेकिन उन्हे ये भी पता होता है कि इसमें सफल होने दर आमतौर पर 0.01 प्रतिशत से 0.2 प्रतिशत तक होती है. साल 2023 की परीक्षा में 10 लाख से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल हुए थे लेकिन सफलता केवल 1016 लोगों को मिली.
दिल्ली के करोल बाग, मुखर्जी नगर से लेकर प्रयागराज के सलोरी इलाके तक upsc कोचिंग के हब माने जाते हैं. यहां बड़े-बड़े क्लासरूम में एकसाथ 70 से 80 बच्चे कोचिंग लेते हैं. बड़े से एसी क्लासरूम में बच्चों की सहूलियत के लिए टीचर के पास माइक तो लगा ही होता है साथ ही क्लास रूम में LED स्क्रीन भी लटक रही होती है, ताकि आखिरी कुर्सी पर बैठा बच्चा भी ये देख पाए कि टीचर ब्लैकबोर्ड पर क्या लिख रहे हैं. भले ही टीचर बच्चों को न देख पाए.
हर साल लाखों बच्चे सिविल सर्विस का सपना लिए अपना घर छोड़कर इन शहरों की ओर चल पड़ते हैं जहां हजारों कोचिंग सेंटर लाखों की फीस लेकर ये कहते हुए नहीं थकते कि हमारे सेंटर का रिजल्ट सबसे अच्छा है. लेकिन जब वाकई में परीक्षा का रिजल्ट आता तो कईयों के हाथ केवल निराशा लगती है. इसबार जो रिजल्ट आया उसमें भी हजार अभ्यर्थियों में से केवल एक के हाथ ही सफलता लगी.
ऐसे में ये जानना जरूरी है कि जो स्टूडेंट सफल हुए उनकी तैयारी कैसे असफल रहे स्टूडेंट से अलग थी. जब सभी दिन में 8-10 घंटे पढ़ाई कर रहे हैं तो सफलता कुछ चंद अभ्यर्थियों को ही क्यों मिलती है? साल 2018 में upsc क्रैक करने वाले रीवा के DFO अनुपम शर्मा (IFS) बताते हैं कि आप कितने घंटे पढ़ते हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है, आप जो पढ़ रहे हैं उसका आउटपुट कितना निकला ये महत्वपूर्ण है. इसमें सबसे ज्यादा जरूरी होता है आपका कंसंट्रेशन यानी आप कितने प्रभावी ढंग से पढ़ रहे हैं.
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