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Nobel Prize 2024: माइक्रो RNA की खोज के लिए मिला नोबेल पुरस्कार, चिकित्सा के क्षेत्र में आएगी क्रांति

नोबेल असेंबली (Nobel Assembly) ने विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन (Victor Ambrose and Gary Ruvkun) को माइक्रोआरएनए की खोज और Post Translation Engineer Gene Shipyard में इसकी भूमिका के लिए 2024 का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize 2024) दिया गया. विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन ने 1993 में ही माइक्रोआरएनए की खोज की थी, लेकिन इसके प्रभाव को समझने में लोगों को काफी साल लग गए. जिसके बाद, इस खोज के दूरगामी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, इन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया है. आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि माइक्रोआरएनए क्या है. साथ ही ये हमारे लिए क्यों जरूरी है? बता दें कि नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हर साल अक्टूबर महीने में होती है. नोबेल पुरस्कार आमतौर पर ऐसी खोजों के लिए दिया जाता है. जिनमें मानवता की भलाई के लिए योगदान दिया हो. यह पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक है.

माइक्रोआरएनए क्या है
microRNA को माइक्रो राइबोन्यूक्लिक एसिड के नाम से भी जानते हैं. यह एक छोटा सा अणु (Molecule) होता है, जो हमारे शरीर की कोशिकाओं (Cells) में मौजूद होता है. इसे आप एक “on-off switch” की तरह समझ सकते हैं. यह तय करता है कि कौन से जीन (Genes) काम करेंगे और कौन-से नहीं. हमारे शरीर में जीन वो कोड हैं, जो बताते हैं कि कौन सा प्रोटीन बनाना है और कौन सा नहीं है. माइक्रोआरएनए जीनों को कंट्रोल करता है यानी यह जीन को रोक सकता है कि वह प्रोटीन न बनाए. इसके साथ ही यह शरीर की बहुत सारी चीज़ों को नियंत्रित करता है जिसमें कोशिका कैसे बढ़ेगी. कोई जीन ज्यादा काम कर रहा है या कम और शरीर को कब बीमारी से लड़ना है आदि का पता आसानी से लगाया जा सकता है.

कैसे काम करता है microRNA
माइक्रोआरएनए को आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिये आपके शरीर में एक फैक्ट्री है, जो प्रोटीन बनाती है. लेकिन अगर कोई प्रोटीन ज़रूरत से ज्यादा बनने लगे, तो यह आपको बीमार कर सकता है. इस बढ़ते हुए प्रोटीन को रोकने का काम माइक्रोआरएनए करता है. ये वही “ऑफ बटन” है, जो शरीर में प्रोटीन को जरूरत से ज्यादा बनने से रोकता है. आसान शब्दों में माइक्रोआरएनए एक तरह का “छोटा लेकिन ताकतवर मैनेजर” है, जो कोशिकाओं के अंदर का कामकाज संभालता है.

शरीर के लिए क्यों जरुरी है माइक्रोआरएनए
माइक्रोआरएनए शरीर में जरुरत से ज्यादा बनने से प्रोटीन को रोकता है. शरीर में प्रोटीन की जरूरत से ज्यादा मात्रा कई बीमारियों को जन्म देती हैं. माइक्रोआरएनए अगर शरीर में सही से काम नहीं करे तो कैंसर, डायबिटीज, या दूसरी गंभीर बीमारियां होना शुरू हो जाती हैं.

कैसे हुई माइक्रोआरएनए की खोज
1980 के दशक में, एम्ब्रोस और रुवकुन अलग-अलग इस बात पर काम कर रहे थे कि सी.एलिगेंस नामक एक मिलीमीटर लंबे गोल कृमि में जीन कैसे काम करते हैं. इस दौरान माइक्रोआरएनए की खोज सामने आई. इसके बाद एम्ब्रोस ने 1993 के एक पेपर में इस खोज का खुलासा किया. हालांकि शुरू में वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि यह केवल कीड़ों पर ही लागू होता है. साल 2000 में, रुवकुन ने अपनी रिसर्च पब्लिश की जिसमें दिखाया गया कि माइक्रोआरएनए सभी Organism में मौजूद है, जिसमें मनुष्य और यहां तक ​​कि कुछ वायरस भी शामिल हैं. मिस्का ने कहा, यह केवल कीड़ों द्वारा किया गया कोई अजीब काम नहीं है, बल्कि वास्तव में सभी जानवर और पौधे अपने विकास और सामान्य कार्यप्रणाली के लिए पूरी तरह से उन पर निर्भर हैं. इस तरह माइक्रोआरएनए की खोज हुई. ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर में माइक्रोआरएनए पर प्रतिक्रिया करने वाले एक हजार से अधिक जीन मौजूद हैं.

माइक्रोआरएनए की खोज के लाभ
इंपीरियल कॉलेज लंदन में Molecular Oncology की Lecturer डॉ. क्लेयर फ्लेचर ने बताया कि माइक्रोआरएनए के अध्ययन ने कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के रास्ते खोल दिए हैं. यह हमारे कोशिकाओं में जीन की कार्यप्रणाली को Regulated करने में मदद करता है. फ्लेचर ने बताया कि दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां माइक्रोआरएनए सहायक हो सकता है. पहला रोगों के उपचार के लिए और दूसरा शरीर में माइक्रोआरएनए के लेवल को चेक करने के लिए ताकि फ्यूचर में होने वाले रोगों का पता लगाया जा सके. Cambridge University के geneticist एरिक मिस्का ने कहा कि एम्ब्रोस और रुवकुन की यह खोज पूरी तरह से आश्चर्यजनक है, क्योंकि इसने वैज्ञानिकों की कोशिकाओं के काम करने के तरीके के बारे में लंबे समय से चली आ रही समझ को पलट दिया है. उन्होंने बताया कि आनुवंशिक सामग्री यानी की genetic material के इतने छोटे टुकड़े पहले कभी नहीं देखे गए थे. इस तरह माइक्रोआरएनए के इस्तेमाल से अनेक नए उपचार और परीक्षण किए जा रहे हैं.

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