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पर्यावरण के लिए घातक है कोयला, फ्लाई ऐश से हो रही मौत, सरकार पर लगे गंभीर आरोप

भारत में कोयला (Coal) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. कोयले के उत्पादन और उपभोग करने के मामले में दुनिया भर में भारत का दूसरा स्थान है. कोयला आधारित प्रदूषण में भी भारत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. वर्तमान में कोयला हमारे लिए जितना जरूरी है उतना ही पर्यावरण के लिए हानिकारक भी है. मीडिया रिपोर्टस् में छपी क्लाइमेट होम की रिसर्च (Climate Home research report) की माने तो सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए कानून बनाये जाने के बजाय उसमें ढिलाई करती नजर आ रही है. भारत सरकार ने शीर्ष कोयला कंपनियों (coal companies) की पैरवी के बाद कोयला उद्योग से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए नियमों को कमजोर कर दिया है. इतना ही नहीं कोयला आधारित प्रदूषण के नियंत्रण के लिए देश में कई नियम-कानून हैं लेकिन इसमें से कोई भी ठोस कानून नहीं हैं.

बता दें कि विश्व में कोयले के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता भारत में कोयले से तकरीबन 70 फीसदी बिजली बनाई जाती है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोयला रीढ़ की तरह है. इससे न केवल उद्योगों को ऊर्जा मिलती है, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. पर्यावरण के लिए हानिकारक होने के बाद भी कोयले का खनन पूरी तरह से बंद कर देना संभव नहीं है. भारत में कोयला का एक बड़ा हिस्सा कोल इंडिया लिमिटेड के द्वारा उत्पादित किया जाता है. कोल इंडिया लिमिटेड दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है.

क्लाइमेट होम की रिसर्च रिपोर्ट
क्लाइमेट होम ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत सरकार ने देश के शीर्ष उत्पादकों की पैरवी के बाद कोयला उद्योग से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए नियमों को कमजोर कर किया है. भारत की कोयला उत्पादन की दिग्गज कंपनियों ने फ्लाई ऐश (fly ash) के निपटान को सख्त बनाने के लिए पर्यावरण विनियमन के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है. क्लाइमेट होम को RTI से मिली जानकारी के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच संघीय नियमों को कमज़ोर करने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन ने सरकार से लॉबिंग की. इन कंपनियों का यह कहना है की वह फ्लाई ऐश निपटान के नियमों का पूरी तरह से पालन करने में सक्षम नहीं हैं. सरकार द्वारा बनाये गए कड़े नियमों के बाद भी ये कंपनियां इन नियमों को कमजोर करने में लगी हैं. हैरानी की बात यह है की सरकार ने इनके खिलाफ कुछ खास कदम नहीं उठाया.

फ्लाई ऐश क्या होता है?
फ्लाई ऐश थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाला एक बारीक पाउडर होता है. यह कोयले को जलाने के बाद बचता है. जब कोयला थर्मल पावर प्लांट्स में जलाया जाता है, तो इससे निकलने वाले धुएं में बारीक कण मौजूद होते हैं. इन्हें इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP) जैसे उपकरणों के जरिए अलग किया जाता है. इसे ही फ्लाई ऐश कहा जाता है. इसका इस्तेमाल सीमेंट, कंक्रीट ईट, सड़क बनाने में किया जाता है. कुछ कोयला उत्पादक कंपनियां फ्लाई ऐश को तालाब में डाल देती हैं. इसकी वजह से इसके मोटे कण पानी के जरिये मिट्टी में मिल जाते हैं और मिट्टी को प्रदूषित कर देते हैं. फ्लाई ऐश के छोटे कण हवा में मिल कर वायु प्रदूषण करते हैं. फ्लाई ऐश का सही ढंग से प्रबंधन नहीं होने पर यह मानव और पर्यावरण (Environment) दोनों को नुकसान पहुंचाता है.

बिजली संकट का हो सकता है खतरा
नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन का यह कहना है की वित्तीय बाधाओं की वजह से कंपनी दशकों से जमा हुए कचरे को साफ करने और वायु प्रदूषण को रोकने में असमर्थ है. वहीं कुछ मामलों में, कोयला कंपनियों ने सरकार को प्रभावित करने में सफलता पाई है और उन्हें कुछ नियमों में ढील भी मिल गई है. पर्यावरण और ऊर्जा मंत्रालयों ने सरकारी दस्तावेजों और बातचीत में इन कंपनियों द्वारा दिए गए तर्कों को शामिल किया है. क्लाइमेट होम के अनुसार कंपनियों ने नियमों में राहत पाने के लिए सरकार पर दबाव बनाया और उनके तर्क सरकारी चर्चा का हिस्सा भी बने. कंपनियों का यह कहना है कि waste disposal rules का पालन न करने पर लगाया जाने वाला जुर्माना उनकी वित्तीय स्थिरता (financial stability) के लिए जोखिम है और इससे कोल आधारित पॉवर प्लांट (coal based power plants) के बंद होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में देश में बिजली संकट भी पैदा हो सकता है. हालांकि जब क्लाइमेट होम ने कोयला कंपनियों और भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से सवाल किया, तो उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. वहीं वायु प्रदूषण विशेषज्ञों का यह कहना है कि, पर्यावरणीय नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है. ताकि पर्यावरण सुरक्षित हो और कोयला संयंत्रों के पास रहने वाले लोग स्वस्थ रहें.

कोयला जनित प्रदूषण के लिए कानून

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
  • फ्लाई ऐश उपयोग अधिसूचना, 1999
  • वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), 2019
  • थर्मल पावर प्लांट्स के लिए उत्सर्जन मानक, 2015

कोयला का इस्तेमाल बंद नहीं करेगा भारत
साल 2021 में भारत में फ्लाई ऐश के मैनेजमेंट को लेकर चर्चा हुई थी. भारत उसी समय ग्लासगो में आयोजित COP26 जलवायु सम्मेलन में शामिल हुआ था. इस सम्मेलन में भारत ने वैश्विक स्तर पर कोयले से दूर जाने को अस्वीकार कर दिया था, हालांकि कोयले से होने वाली बिजली उत्पादन को कम करने पर सहमति जताई थी. बावजूद इसके सरकार ने पर्यावरणीय नियमों में ढिलाई की. इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा और उत्पादकों को मुनाफा हुआ. ऐसे मौके पर दक्षिण एशियाई देश की कोयला कंपनियों ने सरकार से फ्लाई ऐश प्रदूषण पर नियमों के खिलाफ पैरवी की साथ ही कोयले के उत्पादन को भी बढ़ाया.

कोयला कंपनियों की दलील जानने के लिए देखिए पूरा वीडियो।।