हर साल भारत में 14 नवंबर को बाल दिवस (Childrens Day) के रूप में मनाया जाता है. इसके अगले सप्ताह 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस (World childrens day) दुनिया भर के देशों में आयोजित किया जाता है. इस मौके पर यूनिसेफ ने ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024, द फ्यूचर ऑफ चिल्ड्रन इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट बदलती दुनिया में बच्चों के भविष्य को लेकर तैयार की गई है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 में दुनिया में बच्चों की आबादी लगभग 2.3 बिलियन यानी की 230 करोड़ हो जाएगी. ऐसे में 2050 तक बच्चों की वैश्विक जनसंख्या में एक-तिहाई से ज्यादा की हिस्सेदारी भारत, चीन, नाइजीरिया और पाकिस्तान की होगी. हालांकि 2050 में भारत में बच्चों की आबादी सिर्फ 35 करोड़ होगी. यानी की आज की तुलना में 2050 में 106 मिलियन बच्चों की कमी हो जाएगी.
बता दें कि विश्व बाल दिवस, यूनिसेफ का बच्चों के लिए, बच्चों के द्वारा मनाया जाने वाला वैश्विक दिवस है. हर साल की तरह इस बार भी नई दिल्ली सहित देश की सभी ऐतिहासिक इमारतों को बाल अधिकारों के समर्थन में ब्लू लाइट से सजाया गया था. यह बाल अधिकार कन्वेंशन (Child Rights Convention) को अपनाने का एक सिंबल है.
द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024 रिपोर्ट में क्या है?
द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024 रिपोर्ट में तीन ग्लोबल मेगा ट्रेंड, जनसांख्यिकीय बदलाव (demographic change), जलवायु संकट (climate crisis) और अग्रणी प्रौद्योगिकियों (leading technologies) पर आधारित है. यह रिपोर्ट 2050 तक बच्चों के जीवन को एक नया आकार देने के लिए बनाई गई है. यूनिसेफ की रिपोर्ट में मध्य शताब्दी (Mid Century) में बच्चों के जीवन में आने वाले बदलावों का एक खाका बनाने की कोशिश की गयी है. इस रिपोर्ट में यह बताया गया है की अब से 2050 तक बच्चों का जीवन, उनके अधिकार और बच्चों के लिए अवसर नए स्वरूप में होंगे. रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक 350 मिलियन बच्चे होंगे, उन्हें अपनी भलाई और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियों का सामना करना होगा. हालांकि भारत में आज की तुलना में 106 मिलियन बच्चों की कमी आएगी, फिर भी यह वैश्विक बाल आबादी का 15% हिस्सा होगा.
निम्न आय वाले देशों में होगी संसाधनों की कमी
यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की बढ़ती आबादी के साथ नई चुनौतियां भी बढ़ेंगी. इन चुनौतियों से निपटने के लिए बच्चों और युवाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास में अधिक निवेश करना बहुत जरूरी है. 2050 के दशक तक, बच्चों को जलवायु और पर्यावरण संबंधी खतरों का सामना करना पड़ेगा. यह 2000 के दशक की तुलना में लगभग आठ गुना ज्यादा बच्चों के बहुत अधिक गर्मी (extreme heat) के संपर्क में आने की उम्मीद है. इसके अलावा 2050 में ज्यादा से ज्यादा बच्चे निम्न आय वाले देश जैसे की अफ्रीका में रह रहे होंगे. गौर करने वाली बात यह है कि इस दौर में इन देशों में जलवायु और पर्यावरण संबंधी खतरों से निपटने के लिए संसाधन की कमी होगी.
जोखिम वाले देशों में 100 करोड़ बच्चे
बता दें की लगभग 100 करोड़ बच्चे पहले से ही जलवायु संबंधी खतरों के अधिक जोखिम वाले देशों में रहते हैं. अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन के लिए कुछ नहीं किया गया तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो जाएगा. विशेष रूप से वे बच्चे जो ग्रामीण और कम आय वाले समुदाय में रहते हैं वो जलवायु और पर्यावरणीय संकट के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं. रिपोर्ट बताती है की जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों से बहुत अधिक गर्मी, बाढ़, जंगल में आग जैसी घटनाओं में आठ गुना वृद्धि होने का अनुमान है और इनका सीधा असर बच्चों पर पड़ेगा.
163 देशों की सूची में भारत का 26वां स्थान
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियां बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और शुद्ध पेयजल जैसी मूलभूत जरूरतों पर विपरीत असर डालेंगी. इससे हमारे बच्चे ना केवल कमजोर होंगे, बल्कि उनका भविष्य भी अंधकारमय होगा. बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक सीसीआरआई के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर 163 रैंक वाले देशों में से भारत 26वें स्थान पर था. इस रैंकिंग में उन देशों को शामिल किया जाता है जिनके बच्चे अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा और वायु प्रदूषण जैसे जोखिमों से जूझ रहे होते हैं. रिपोर्ट में भारत के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और टिकाऊ शहरी बुनियादी ढांचे यानी sustainable urban infrastructure में निवेश (invest) करने को प्राथमिकता दी गयी है.
अनुमान है कि 2050 तक भारत की लगभग आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी.
बच्चों के सामने नई दुनिया
द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (TERI) के डायरेक्टर सुरुचि भदवाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों माध्यम से अलग-अलग प्रभाव डालता है. जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बच्चों को शामिल करने की सख्त जरूरत है. बच्चे परिवर्तन के सक्रिय एजेंट बनकर जलवायु एजेंडे में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं. उन्होंने कहा कि भले ही आजकल के बच्चे नई टेक्नोलॉजी के साथ बड़े हो रहे हैं. नए-नए ऐप्स, गैजेट्स, वर्चुअल असिस्टेंट, गेम्स और लर्निंग सॉफ्टवेयर में जुड़ी AI टेक्नोलॉजी ने बच्चों के सामने रचनात्मकता की नई दुनिया के दरवाजे खोले हैं. लेकिन ये बात भी सच है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी फ्रंटियर टेक्नोलॉजीज बच्चों के लिए अच्छी उम्मीद और जोखिम दोनों ही साथ लेकर आती है.
इंटरनेट का इस्तेमाल
रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले देशों में केवल 26% लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, जबकि ज्यादा आय वाले देशों में 95% से ज्यादा लोग इंटरनेट से जुड़े हैं. रिपोर्ट में इस अंतर को कम करने और बच्चों के लिए सुरक्षित, समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए समावेशी तकनीकी प्रगति (inclusive technological progress) का आह्वान किया गया है. इस तरह ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024’ रिपोर्ट 2050 में दुनिया के बच्चों की स्थिति के बारे में बताता है की 2050 में बच्चों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. भविष्य में बच्चों की स्थिति क्या होगी और इससे निपटने के लिए देशों को कौन -कौन से तरीके अपनाने होंगे. वहीं अगर समय रहते climate change और environment crises को लेकर कदम नहीं उठाये गए तो यह भविष्य में बच्चों को नुकसान पहुंचाएगा.
दुनियाभर के बच्चों पर मंडरा रहे इस खतरे के बारे में जानने के लिए देखिए पूरा वीडियो।।