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न बिजली, न पानी, न सड़क क्या यही है MP के Anuppur का सबसे पिछड़ा गांव?

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले की घनी वादियों के बीच बसा बेलापानी गांव, विकास की अनदेखी का एक जीता जागता उदाहरण है. चीलिहामार ग्राम पंचायत के अधीन आने वाला यह गांव मध्यप्रदेश की विलुप्तप्राय बैगा जनजाति का निवास है, जहां लगभग 300 जनजाति के लोग रहते हैं. लेकिन यह गांव आज भी सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है. यहां समय जैसे थम सा गया है. चुनावों के मौसम में जब नेता वादों की बौछार करते हैं, तब बेलापानी भी उम्मीदों की डोर थाम लेता है. लेकिन वादे हर बार सिर्फ मंचों तक सीमित रह जाते हैं.

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बुनियादी सुविधाओं का टोटा
बेलापानी में आज तक न तो पक्की सड़क बनी, न बिजली पहुंची और न ही साफ पानी की व्यवस्था हो सकी। गांव में बना यात्री प्रतीक्षालय जिसे ग्रामीण “कंसरा विकास” कहते हैं, विकास का इकलौता दिखावटी प्रमाण है. गांव की महिलाएं आज भी मीलों पैदल चलकर गड्ढों से गंदा पानी लाती हैं. एक-एक घड़ा पानी के लिए पूरा दिन बीत जाता है। बिजली के नाम पर अंधेरे की चादर ओढ़े यह गांव सूरज ढलते ही मानो ठहर जाता है.

स्वास्थ्य सेवाएं और आवागमन भी बेहाल
बेलापानी तक कोई पक्की सड़क नहीं पहुंचती. मुख्य सड़क से गांव की दूरी 10 से 15 किलोमीटर है. एम्बुलेंस या गाड़ी का यहां तक आना मुमकिन नहीं. मरीजों को खाट या सिक्के पर लादकर मीलों पैदल ले जाना पड़ता है. बरसात में तो यह गांव दुनिया से कट जाता है और ग्रामीण तीन महीने तक अपने ही गांव में कैदी बनकर रह जाते हैं.

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नेता आते हैं, वादे करते हैं और चले जाते हैं
पिछले तीन बार से पुष्पराजगढ़ विधानसभा से कांग्रेस विधायक फुंदेलाल मार्को और लगातार दो बार से शहडोल लोकसभा से बीजेपी सांसद हिमाद्री सिंह इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. दोनों के घर बेलापानी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर हैं, फिर भी इस गांव की सुध किसी ने नहीं ली.

बैगा जनजाति की अनदेखी
बैगा जनजाति जिनके संरक्षण के लिए योजनाएं सिर्फ सरकारी कागजों में सजी हैं, वे आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्षरत हैं.

क्या कभी होगा इंतजार खत्म?
बेलापानी का संघर्ष सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि एक सिस्टम की नाकामी है. सवाल है – क्या सरकारें और नेता इन ग्रामीणों के सपनों को हकीकत में बदल पाएंगे? या फिर बेलापानी का इंतजार कभी खत्म नहीं होगा?



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