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सहज स्वभाव के धनी पद्मश्री बाबूलाल दाहिया का सांस्कृतिक संरक्षण

पद्मश्री से नवाजे गए,कई अवार्ड्स से भरा पूरा कमरा, 200 किस्मों की धान से लहलहाता पूरा खेत और एक छोटा सा म्यूज़ियम जिसमें विलुप्त हो चुके या होने वाले बर्तनों और कई तरह के सामानों का संरक्षण. सतना का पिथौराबाद पहाड़ों से घिरा छोटा सा गांव है,जिसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं विंध्य के गौरव बाबूलाल दाहिया.

इनसे मिलने विंध्य फर्स्ट की टीम उनके घर पहुंची जहां, इनसे ढेर सारी बातें हुई. साम्यवादी विचारों से ताल्लुकात रखनें वाले बाबूलाल दाहिया कृषि के क्षेत्र में अद्भुत ज्ञान रखते हैं. दाहिया जी बताते हैं कि आज की खेती पेट की नहीं बल्कि सेठ की खेती हो गई है.

वो परंपरागत खेती के पक्षधर हैं. पहले के समय में किसानों का खेती से एक भावनात्मक जुड़ाव था लेकिन हरित क्रांति के बाद से पैदावार तो ज्यादा हुई लेकिन अब खेती में इतना खर्चा हो जाता है और बदले में उन्हें कुछ नहीं मिलता. दूर से हरे-भरे खेत दिखते जरूर हैं लेकिन असल में उनकी सच्चाई कुछ और ही है. इसीलिए आज गांव में रहने वाला एक युवक बाहर जाकर 8 हज़ार की नौकरी करना ज्यादा मुनासिब समझता है क्योंकि उसे खेती में कोई भी लाभ होता नहीं दिखता. बाबूलाल दहिया एक बेहतरीन लोककवि भी हैं जो बघेली की कविताएं लिखते हैं. उनकी अधिकतर कविताएं पर्यावरण को समर्पित होती हैं.हमारे बोलनें पर अपनी एक कविता उन्होंने हमें भी सुनाई जिसके बोल कुछ इस तरह से हैं.

कउन तरक्की का खुला,

          राम दही कय द्वार।

सहमें सहमें सब लगय,

         जंगल नदी पहार।।

 अमरित जल बांटिन जउन,

               कुइयाँ बउली ताल।

सोंधई दोहनी अस धरे,

                कइके हाल बेहाल।।

ब्यापारिन कय संस्कृति,

          ताने यतर बितान।

नदिया तलबा अस भठे,

         ज्यतर होय समसान।।

हाथ गोड़ मुंडी कहउ,

       कहउ सूंड अवशेष।

सालन से पइड़े परे,

           दुरगा अउर गनेश।।

सूख ओंठ किरपिन बदन,

         पूछय समव जबाब।

कहां चलागा गांव का,

          पानीदार तलाब।।

बूड़ जाय हाथी सइघ,

        जउन तलाए बीच।

तउने मा अब तो बचा,

        रहिगा काँदव कीच।।

पर्यावरण बिधंस भा,

          घोरे यंतर तिजाब।

हे बिकास तय धन्न हा,

         तोर न कुछू जबाब।।

बाबूलाल जी के बेटे सुरेश दहिया एक समय में पत्रकार थे.उन्होनें कई समाचार पत्रों के साथ काम किया है और अब वह स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते हैं. ये 200 किस्मों की धानों का रखरखाव भी करते हैं. जब हम पहुंचे तब धान पक चुकी थी लेकिन हमें दिखाने के लिए उन्होंने उसकी कटाई में एक दिन का विलंब कर दिया. खूबसूरत से खेत में हर तरफ लहलहाती यह धान अन्य धान की किस्मों से अलग है. बगल में ही लगी हाइब्रिड की किस्म और इस जैविक किस्म में जमीन आसमान का अंतर है. छोटे से क्षेत्र में ही थोड़ी-थोड़ी ये किस्में उगाई जाती हैं. दहिया जी का परिवार धान को देश के विभिन्न किसानों को कोरियर भी करता है. यहां दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं. इन किस्मों में किसी भी तरीके का फर्टिलाइजर या केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता जिससे ये मिट्टी को भी नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. 

धान के अलावा बाबूलाल जी अपनें घर के ऊपरी तल पर एक म्यूजियम के माध्यम से कई तरह के विलुप्त हो चुके और हो रहे बर्तनों और शस्त्रों आदि का संरक्षण कर रहे हैं.

सहज भाव का दाहिया जी का परिवार यकीनन समाज और देश के लिए प्रेरणा है जो सिखाता है कि कैसे एक मजबूत परिवार, एक मजबूत देश का निर्माण करता है.

विषय पर गहरी जानकारी के लिए देखिए पूरा वीडियो.