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भगवान भोलेनाथ का आदिवासियों के गुदुंबा नृत्य से है गहरा रिश्ता

आदिवासियों के गुदुंबा नृत्य

विंध्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल सीधी में जहां एक ओर देश-विदेश की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत की. इन हस्तियों ने अपनी उपस्थिति के साथ ही कई तरह की कलाकारी के रंग भी बिखेरे हैं. इस महोत्सव में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जिसमें देश-विदेश के साथ-साथ विंध्य के कलाकारों ने भी अपनी कलाकारी दिखाई. इन तीन दिनों में कई फिल्मों का प्रसारण भी किया गया.

फिर आठ जनवरी को सीधी जिले के ग्रामीण इलाकों में सभी कलाकार जाकर लोक कलाकारी के भी लुप्त उठाए. जिसमें मुख्य रूप से सीधी जिले बकवा में कई लोकनृत्य का अयोजन हुआ. इसी कड़ी में विंध्य फर्स्ट की टीम भी बकवा गांव पहुंची. तब वहां उस वक्त एक लोकनृत्य हो रहा था जिसे गुदुंबा लोक नृत्य कहते हैं. यह नृत्य मुख्य रूप से आदिवासियों द्वारा किया जाता है. इसमें 10 से 15 लोगों का एक समूह होता है. जिसमें वो खुद ही बाद्य यंत्र बजाते हैं और फिर नृत्य करते हैं. इस नृत्य में मुख्य रूप से 10 से 12 नृत्य कलाएं होती हैं. उन कलाओं में कुछ विशेष प्रकार के प्रजातियों की आकृति के रूप में नृत्य करते हैं.

गुदुंबा नृत्य मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया जाता है. इस नृत्य की एक बड़ी खासियत है पुराणों में इस नृत्य को खास मान्यता मिली है वो इसलिए की जब भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की शादी हुई थी. भोलेनाथ की शादी में उनके गण इसी नृत्य को करते हुए माता पार्वती के घर बारात लेकर गए थे. तब से लेकर आज तक इस नृत्य को पौराणिक मान्यताएं प्राप्त हैं.

गुदुंबा नृत्य मुख्य रूप से आदिवासियों के द्वारा किया जाता है. इस नृत्य को माध्यम बनाकर आदिवासी वर्ग अपने स्वरोजगार का साधन भी मानते हैं. और इसी से आदिवासी वर्ग कुछ ख़ास मौकों पर करके मनोरंजन भी करते हैं. जैसे किसी की शादी समारोह में इस नृत्य के माध्यम से हर्ष उल्लास मनाते हैं. सीधी जिले के गुदुंबा नृत्य कलाकार देश कई जगहों में अपनी कलाकारी दिखा चुके हैं.

 

 

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