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मॉडल स्टेट गुजरात कुपोषण, गरीबी, शिक्षा में तमिलनाडु की तुलना में बिहार के ज्यादा करीब

भारत के अलग-अलग राज्यों का विकास मॉडल एक जैसा नहीं है. कुछ राज्य औद्योगिक प्रगति पर ज़ोर देते हैं, तो कुछ सामाजिक कल्याण पर. हाल ही में आई एक रिपोर्ट “India: The Challenge of Contrasted Regional Dynamics”, जिसे Christophe Jaffrelot, Vignesh Rajahmani और Neal Bharadwaj ने तैयार किया है, तीन बड़े राज्यों—गुजरात, बिहार और तमिलनाडु—के विकास की तुलना करती है.

गुजरात: तेज़ औद्योगिकीकरण, लेकिन क्या सबके लिए?
गुजरात को भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाता है. यहां प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत है. रिपोर्ट बताती है कि गुजरात ने उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारी निवेश किया है, ख़ासकर पूंजी-प्रधान उद्योगों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर. हालांकि, इस तेज़ विकास के बावजूद राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर अपेक्षाकृत कम खर्च किया गया है. यही वजह है कि गुजरात में कुपोषण, गरीबी और शिक्षा के स्तर जैसी समस्याएं बनी हुई हैं.

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बिहार: सीमित संसाधन, लेकिन सामाजिक कल्याण पर ज़ोर
बिहार आर्थिक रूप से कमजोर राज्य माना जाता है, लेकिन उसने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर ज़ोर दिया है. उदाहरण के लिए, 2012 से 2019 तक बिहार ने अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च में 29.5% की वृद्धि की, जबकि गुजरात ने केवल 10.5% की. 2021-22 में बिहार ने अपने GSDP का 22.25% सामाजिक योजनाओं पर खर्च किया, जबकि गुजरात ने मात्र 4.46%.

तमिलनाडु: संतुलित विकास मॉडल
तमिलनाडु ने उद्योगों के विकास के साथ-साथ सामाजिक कल्याण पर भी ध्यान दिया है. यही कारण है कि राज्य में गरीबी की दर कम है और यहां के नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं मिल रही हैं. यह मॉडल गुजरात और बिहार से अलग है, क्योंकि यहां आर्थिक और सामाजिक विकास में संतुलन देखा जाता है.

विकास का असली अर्थ क्या होना चाहिए?
इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि केवल तेज़ औद्योगिक विकास ही काफ़ी नहीं है. अगर विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण को नज़रअंदाज किया जाए, तो यह असमानता को बढ़ा सकता है. भारत को अपने विकास मॉडल को संतुलित और समावेशी बनाने की ज़रूरत है, ताकि हर नागरिक को इसका लाभ मिल सके.