जब सुबह की पहली किरण धरती को छूती है, तब बहिनी दरबार की महिलाएं पहले से ही अपने कंधों पर ज़िम्मेदारियों का भार लेकर निकल चुकी होती हैं. यह दरबार केवल न्याय दिलाने का मंच नहीं, बल्कि उन महिलाओं की जमीनी हकीकत भी है, जिन्होंने समाज के अन्याय और बंदिशों से लड़कर अपनी पहचान बनाई है.
ऊषा सिंह यादव: एक सपना, जो आंदोलन बन गया
बहिनी दरबार की फाउंडर ऊषा सिंह यादव का सफर आसान नहीं था. परिवार ने रोका, समाज ने ताने दिए, और गांव ने बहिष्कृत कर दिया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, क्योंकि उन्हें पता था कि बदलाव लाना है तो शुरुआत भी खुद ही करनी होगी. आज उनका संघर्ष हजारों महिलाओं की ताकत बन चुका है.

एक बंद आवाज़ से बुलंद हुंकार तक
सविता साकेत की कहानी हर उस महिला की कहानी है, जिसने किसी बंद दरवाजे के पीछे अपने सपनों को घुटते हुए देखा है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने हक के लिए लड़ती रहीं. आज वे बहिनी दरबार का अहम हिस्सा हैं और अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं.

कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर बसता दरबार
यह संगठन किसी सरकारी फाइल का हिस्सा नहीं, बल्कि महिलाओं के संकल्प से बना एक वास्तविक मंच है. मीना देवी कोल उन महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने हर कठिनाई का सामना किया और इसे अपनी ताकत बना लिया.

स्याही से लिखी गई क्रांति
बहिनी दरबार की सबसे खास बात है इसकी पत्रिका, जो छपाई मशीन से नहीं, बल्कि महिलाओं के हाथों से लिखी जाती है. हर शब्द सिर्फ़ स्याही नहीं, बल्कि दर्द, संघर्ष और बदलाव की कहानी कहता है.
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3000 महिलाओं की हिम्मत की आवाज़
इस पत्रिका के सिर्फ़ 10 पन्ने नहीं, बल्कि यह 3000 महिलाओं की हिम्मत की पहचान है. पुलिस थाने से लेकर गांव की गलियों तक, यह अन्याय के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को ताकत देती है.
यह सिर्फ़ एक संगठन नहीं, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाने वाली महिलाओं का संघर्ष है. यह बहिनी दरबार जहां हर अनसुनी आवाज़ को सुना जाता है और हर अन्याय के खिलाफ़ एक कदम उठाया जाता है.