हरियाणा की रोहतक जेल में बलात्कार के दोष में 20 साल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम एक बार फिर पैरोल पर बाहर है. इस बार भी चुनावी मौसम में 13वीं बार मिली इस रिहाई ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दे दिया है कि क्या यह सिर्फ एक संयोग है या इसके पीछे कोई सोची-समझी रणनीति है? राम रहीम को बार-बार चुनावों से पहले पैरोल या फरलो मिलती रही है. पिछले कुछ वर्षों में एक पैटर्न साफ दिखता है: राम रहीम को जिस समय रिहाई दी जाती है, वह अक्सर किसी न किसी चुनाव से मेल खाती है. जनवरी 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक आठ दिन पहले उन्हें 30 दिन की पैरोल दी गई. अक्टूबर 2024 में हरियाणा चुनावों से पहले 20 दिन की पैरोल, नवंबर 2023 में राजस्थान चुनावों से पहले 21 दिन की पैरोल, और इसी तरह जुलाई 2023, अक्टूबर 2022, फरवरी 2022 — हर बार कोई न कोई चुनाव और राम रहीम की जेल से रिहाई एक साथ ही होती आई है.
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Toggleक्या यह सिर्फ ‘कानूनी अधिकार’ है?
इस पर राज्य सरकारें तर्क देती हैं कि हर कैदी को 70 दिन की पैरोल और 21 दिन की फरलो साल में दी जा सकती है. वहीं राम रहीम के वकील भी दावा करते हैं कि यह सब नियमों के तहत हो रहा है. लेकिन सवाल यही है कि जब सैकड़ों कैदी इन अधिकारों से वंचित रह जाते हैं, तो राम रहीम को बार-बार इतनी “सहूलियतें” क्यों मिलती हैं? और अगर मिलती है, तो क्या वो भी चुनाव से पहले इतनी बार बाहर आते हैं?
राजनीतिक समीकरण और डेरा का वोट बैंक
डेरा सच्चा सौदा का पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा वोट बैंक है. लाखों अनुयायी राम रहीम के निर्देशों को गंभीरता से लेते हैं. चुनावी वक्त पर उसकी मौजूदगी और वीडियो संदेश राजनीतिक दलों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं. इससे यह शक और गहराता है कि क्या ये पैरोल वास्तव में ‘समाजिक पुनर्वास’ के लिए है या ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए?
संयोग या सियासी चाल?
जब एक ही कैदी को बार-बार, और वो भी चुनावों के ठीक पहले रिहाई मिले, तो यह संयोग नहीं लगता. जुलाई 2023 में हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले, अक्टूबर 2022 में आदमपुर उपचुनाव से पहले, फरवरी 2022 में पंजाब चुनावों से पहले — हर बार एक जैसी कहानी.
क्या वाकई कानून सबके लिए समान है?
फरलो और पैरोल जैसे प्रावधान समाज में लौटने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं, लेकिन जब इनका इस्तेमाल चुनिंदा लोगों को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए किया जाए, तो यह लोकतंत्र की नींव पर सवाल खड़े करता है.