साल के अंत में मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव होना है. विधानसभा चुनाव से पहले गोंगपा और बसपा दोनों ही पार्टियां गठबंधन कर चुकी हैं. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का खेल बिगड़ सकता है. विंध्य क्षेत्र से 8 सीटों पर गोंगपा तो वहीं 22सीटों पर बसपा अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारेंगी. विंध्य रीजन में सबसे ज्यादा आदिवासी शहडोल संभाग से आते हैं. कुल 476008 आदिवासी वोटर हैं.
इन वोटरों का प्रभाव साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में देखने में मिला था. गोंगपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 1 लाख 94 हजार 544 वोट मिले थे. गोंगपा का जनाधार, हार के बाद भी बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है जो कि कांग्रेस के लिये आगामी लोकसभा चुनाव में चुनौती बन सकता है.
मध्यप्रदेश में 15 फ़ीसदी मतदाता अनुसूचित जाति वर्ग के हैं जिसे अपने पक्ष में करने का प्रयास कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां कर रही है. प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीट में से 35 सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. वहीं 20 सीट से भी अधिक पर अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं का प्रभाव नजर आता है. यही वजह है कि आदिवासी वर्ग के बाद भाजपा अनुसूचित जाति वर्ग पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. इसकी बानगी देखने को मिली 12 अगस्त को मध्य प्रदेश के सागर जिले में जब संत रविदास स्मारक मंदिर का शिलान्यास करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे.
बसपा ने 43 और गोंगपा ने 16 सीटों के परिणाम प्रभावित किए
बसपा को पिछली बार भिंड और पथरिया में जीत मिली थी. सबलगढ़, जौरा, ग्वालियर ग्रामीण, पौहरी, रामपुर बघेलान और देवतालाब में वो दूसरे नंबर पर थी. बसपा को 18 सीटों पर 30 हजार से अधिक वोट मिले थे. बसपा ने 43 सीटों पर परिणाम प्रभावित किए थे. इसी तरह गोंगपा प्रत्याशी ब्यौहारी और अमरवाड़ा में दूसरे नंबर थे. गोंगपा को 6 सीटों पर 30 हजार से अधिक वोट मिले थे. गोंगपा ने 16 सीटों पर परिणामों को प्रभावित किया था.
दरअसल, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मुताबिक मध्य प्रदेश में लगभग 23% जनजाति के लोग रहते हैं. इसमें से लगभग 15% से ज्यादा गोंड जनजाति के लोग हैं. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अपने आकलन के हिसाब से सिर्फ गोंड जनजाति की आबादी लगभग 15% से ज्यादा है. मध्यप्रदेश की कुल आबादी 7 करोड़ 26 लाख के ऊपर है. ऐसे में 7 करोड़ 26 लाख का 15% लगभग एक करोड़ 10 लाख होता है. एक बड़ा वोट बैंक आदिवासियों का है, जो जीजीपी के साथ है.
2018 में तीन फीसदी से कम वोटों के अंतर से जीतने वाले 46 विधायकों में से 23 बीजेपी के और 20 कांग्रेस के थे. तीन अन्य सीटें दो निर्दलीय और एक बसपा उम्मीदवार ने बेहद कम अंतर से जीतीं. तीनों पर बीजेपी उपविजेता रही थी. विंध्य क्षेत्र से देवतालाब विधानसभा से भाजपा ने गिरीश गौतम को टिकिट दिया जबकि बसपा से सीमा जयवीर सिंह को चुनावी मैदान में उतारा था. जहां चुनावी परिणाम में गिरीश गौतम को 45043 वोट मिले थे. जबकि बसपा उम्मीदवार सीमा जयवीर सिंह को 43963 वोट मिले थे. वहीं, तीसरा स्थान पर कांग्रेस प्रत्याशी विद्यावती पटेल को 30,383 वोट मिले.
जहां बहुत कम अंतर से एक बार फिर चुनाव में गिरीश गौतम ने जीत हासिल की थी. चुनाव में गिरीश गौतम ने 1080 वोटों से जीत हासिल की थी और तीसरे बार देवतालाब सीट से विधायक बने. दोनों राष्ट्रीय दल 46 में से 41 सीटों पर सीधा मुकाबला होना था. भाजपा द्वारा जीती गई 23 सीटों में से दो (ग्वालियर ग्रामीण और देवतालाब) पर बसपा के उम्मीदवार उपविजेता रहे थे.
1990 के बाद से केवल एक बार बीजेपी सारंगपुर सीट हारी
भारतीय जनता पार्टी 1990 के बाद से केवल एक बार सारंगपुर की सीट हारी है और 1990 के बाद से आष्टा निर्वाचन क्षेत्र में कभी नहीं हारी है. लेकिन 2018 में, दोनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों के साथ कड़ी टक्कर देखी गई और भाजपा करीबी अंतर से जीतने में कामयाब रही, 2.9 सारंगपुर में प्रतिशत या 4,381 वोट और आष्टा में 2.93 प्रतिशत या 6,044 वोट मिले. वहीं, तीसरे नंबर पर प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी से कमल सिंह को 17577 वोट मिले.
भाजपा के राजेंद्र पांडे ने 2013 में जावरा सीट पर 18.85 प्रतिशत यानी 30,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. 2018 में केवल 511 वोटों या 0.29 प्रतिशत के अंतर से जीत हासिल कर पाए. कांग्रेस पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे केके सिंह को 63992 वोट मिले. वहीं, निर्दलीय प्रत्याशी डॉ हमीर सिंह को 16593 वोट मिले. 2013 की जीत पांच दशकों से अधिक समय में किसी भी उम्मीदवार के लिए सबसे बड़ी थी.
पिछले चुनाव में बीजेपी के कुछ दिग्गज अपनी सीटें हारने के करीब पहुंच गए थे. उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जिन्हें सीएम पद के दावेदारों में से एक माना जा रहा है, नरोत्तम मिश्रा को 72209 वोट मिले थे. कांग्रेस से भारतीय सिंह 69553 वोट हासिल हुए. वहीं, जेजेपी पार्टी से उम्मीदवार आजाद खान को 983 वोट मिले.
मंत्री रामखेलावन पटेल (अमरपाटन) और भरत सिंह कुशवाह (ग्वालियर ग्रामीण) ने क्रमशः 3,747 वोट और 1,517 वोट से अपनी सीटें जीतीं. अमरपाटन विधानसभा से भाजपा के रामखेलावन पटेल को 59836 वोट मिले. वहीं, कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार डॉ राजेन्द्र कुमार सिंह को 56089 वोट हासिल हुए. तीसरे नंबर पर बसपा पार्टी से उम्मीदवार चंचल कोल को 37918 वोट मिले थे.
इसके अलावा, भाजपा के दिग्गज शरद जैन को 2018 में जबलपुर उत्तर से कांग्रेस के विनय सक्सेना ने केवल 578 वोटों (0.41 प्रतिशत) से हराया था. जैन ने पहले दो बार 50 प्रतिशत से अधिक के अंतर से सीट जीती थी. कांग्रेस प्रत्याशी विनय सक्सेना को 50045 वोट मिले. वहीं, दूसरे नम्बर पर भाजपा प्रत्याशी शरद जैन को 49467 वोट हासिल हुआ. तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी धीरज पटेरिया ने 29479 वोट प्राप्त हुए थे. धीरज पटेरिया जबलपुर उत्तर सीट से प्रतिनिधित्व करते हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में वह बीजेपी से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनके स्थान पर शरद जैन को टिकट दे दिया. इस बात से नाराज होकर धीरज ने बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ लिया. इसका असर यह हुआ कि इस सीट से बीजेपी के शरद जैन कांग्रेस के विनय सक्सेना से 578 मतों से हार गए थे. दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी से बगावत करके निर्दलीय मैदान में उतरे धीरज पटेरिया ने 29479 वोट हासिल किए थे. चुनाव हारने के बाद बीजेपी को एहसास हो गया था कि पटेरिया के कारण ही बीजेपी इस सीट को हारी है. विधानसभा चुनाव से पहले धीरज पटेरिया भाजपा में शामिल हो गए हैं.
भाजपा का आदिवासियों पर फोकस
भाजपा आदिवासी वोट बैंक को अपने तरफ लाने के लिए भरसक प्रयास में जुटी है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों के बीच खाट सभा तक कर चुके हैं. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा चुनाव से पहले पेसा एक्ट की बात कर आदिवासियों को लुभाने में जुटे नजर आए. मध्यप्रदेश में करीब 22% आदिवासी आबादी है. विधानसभा की 230 में से 47 सीटें इस वर्ग के लिए रिजर्व हैं. इनके अलावा 84 सीटें ऐसी भी हैं, जहां आदिवासी वोटर जीत और हार तय करते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल 84 में से 34 सीटों पर ही जीत हासिल की थी.
इससे पहले 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. बीजेपी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ था. जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बहुमत (116 सीटें) से 7 सीटें कम मिली थीं. इससे साफ है कि आदिवासियों का साथ नहीं मिलने के कारण बीजेपी वापसी नहीं कर पाई थी और कमलनाथ सत्ता में आ गए थे.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.53 करोड़ से अधिक थी. दस साल पहले प्रदेश के कुल 7.26 करोड़ निवासियों में से 21.08 प्रतिशत आदिवासी थे. अनुमान है कि आदिवासी समुदाय की आबादी अब लगभग 1.75 करोड़ है, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 22 प्रतिशत हैं. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि राज्य की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं.