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कर्ज में डूबा मध्यप्रदेश

चुनावी घोषणाओं और मुफ्त की रेवड़ी बांटनें के चक्कर में मध्यप्रदेश कर्ज में इतना डूब चुका है कि नई सरकार का स्वागत खाली खजानें से होगा.

प्रदेश के खजाने की स्थिति की बात करें तो 20081.92 करोड़ का कर्ज बाजार से है. अन्य ब्रांड से 6624.44 करोड़ रूपए का कर्ज़ है. वित्तीय संस्थानों से कर्ज की बात करें तो यह 14620.017 रूपए करोड़ है. कर्ज और केंद्रीय सरकार से ली गई एडवांस राशि 52617.991 करोड़ रूपए है. 18472.62 करोड़ रूपए की अन्य देनदारियां हैं और राष्ट्रीय बचत फंड 38498.01 करोड़ रूपए है.

प्रदेश सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी लाडली बहना योजना  के अंतर्गत महिलाओं को ₹1000 प्रतिमाह देना शुरू किया. बाद में राशि को बढ़ाकर 1250 रूपए कर दिया, उसे 3000 रूपए तक करने का वादा भी किया गया. इस योजना के तहत सालाना खर्च कुल 19,500 करोड़ रूपए है.

किसान सम्मान राशि 4 हज़ार से बढ़ाकर 6 हजार कर दी गई, इससे 87 लाख किसानों को लाभ और सरकारी खजाने पर 5220 करोड़ रूपए का भार है.

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की वेतनवृद्धि से सालाना 420 करोड़ रूपए का भार है. 

साल दर साल यह कर्ज बढ़ता ही गया है.2020 में प्रदेश पर कुल कर्ज था 2.20 लाख करोड़ रूपए,2022 में 2.83 लाख करोड़ रूपए  का कर्ज था और 2023-24 में ये बढ़कर 3.31 लाख करोड़ रूपए हो गया.

2013-14 में हर व्यक्ति पर 10,896 रूपये का कर्ज था.2016 में हर व्यक्ति पर 13,853 रूपये का कर्ज था,2017 में ये 21000 हो गया.आज की तारीख में प्रदेश में हर व्यक्ति पर 47000 रूपये का कर्ज है.

पिछले साल आरबीआई की एक रिपोर्ट आई थी जिसमे कहा गया था कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रही हैं जिससे वो कर्ज के जाल में फंस रही हैं.

हाल ही में रेवड़ी कल्चर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार को नोटिस भी जारी किया था. बीते समय में जिस तरह श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझता दिखाई दिया उससे किसी भी तरह की सीख नहीं ली जा रही है और वह दिन दूर नहीं जब अगर मध्य प्रदेश सरकार इसी तरह से कर्ज लेती रही तो वह पूरी तरीके से दीवालिया हो जाएगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले ही अपने भाषण में रेवड़ी कल्चर को नुकसानदायक बताया था.

आचार संहिता लगने से पहले ही शिवराज सिंह ने कई तरह के प्रोजेक्ट्स की घोषणाएं करी थी. इन घोषणाओं के अंतर्गत जो भी प्रोजेक्ट बनाए जा रहे थे उनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट्स अधूरे थे और उनका उद्घाटन मात्र क्रेडिट लेने के लिए कर दिया गया. इन्हीं अधूरे प्रोजेक्ट के लिए सरकार कर्ज लेती गई और इससे राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया.

सबसे बड़ी बात ये है कि इस कर्ज का बोझ टैक्सपेयर पर पड़ेगा.कर्ज चुकानें के लिए प्रोड्क्टस के प्राइस बढ़ाये जाएंगे यानि महंगाई बढ़ेगी और सब कुछ हमसे और आपसे वसूला जाएगा.आने वाले समय में हर व्यक्ति पर भारी कर्ज होगा वह भी ऐसा कर्ज जो ना आपने लिया ना ही आपके परिवार के किसी सदस्य ने बल्कि सरकार की फ्रीबीज या तथाकथित जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए लिए गए कर्ज का भुगतान आप करेंगे.

मध्यप्रदेश में मिनरल,नेचुरल रिसोर्सेस प्रचुर मात्रा में हैं. देश के फॉरेस्ट कवर का कुल 12 फीसदी हिस्सा मध्यप्रदेश में है लेकिन मध्य प्रदेश बीमारू राज्यों में गिना जाता है. मध्य प्रदेश की एक तिहाई  जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती है. किसानों की आत्महत्या के मामले में प्रदेश अव्वल है. राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की जगह लगातार लिए जा रहे इस कर्ज के कारण राज्य की स्थिति और भी ज्यादा खराब होती जा रही है.