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क्या सच में हो सकती है EVM में धांधली?

ईवीएम हैकिंग

विधानसभा चुनाव समपन्न हुए.नतीजे भी आ गए. दिग्विजय सिंह का दावा है कि ईवीएम की वजह से उनकी हार हुई है.उनका कहना है कि अधिकतर सीटों 25 से 26 हजार वोटों से पार्टी जीतने वाली थी, लेकिन ईवीएम सेट होने की वजह से उतने ही वोटों से हार गई. अपने इस दावे के समर्थन में दिग्विजय ने डाक मतपत्रों में कांग्रेस की लीड का हवाला दिया जहां कांग्रेस 230 में से 199 सीटों पर लीड कर रही थी लेकिन नतीजे आते-आते केवल 66 सीटों पर सिमट कर रह गई.

दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर कहा कि कोई भी मशीन जिसमे चिप है वो आसानी से हैक की जा सकती है.उनका कहना है कि वो 2003 से ईवीएम से वोटिंग की खिलाफत कर रहे हैं.उन्होंने इलेक्शन कमिशन और सुप्रीम कोर्ट से लोकतंत्र को बचाने की अपील की है.

बैंगलोर से सॉफ्टवेयर इंजीनियर रेंजिथ थॉमस ने एक ट्विटर थ्रेड शेयर करके ईवीएम में धांधली के कुछ तरीके समझाए हैं,जिसके बारे में हम बात करेंगे

सबसे पहला तरीका है, हार्डवेयर अटैक का, इसके लिए डिस्प्ले मॉड्यूल को एक कस्टमाइज यानि एक वैसे ही दिखने वाले हार्डवेयर से बदल दिया जाए.ऐसा करने पर कंट्रोलर को इनपुट किसी वायरलेस डिवाइस जैसे कि ब्लूटूथ से मिलेगा जिसकी मदद से रिजल्ट में बदलाव किया जा सकता है.अब इसके लिए दो अलग-अलग चिप की आवश्यकता पड़ेगी और साथ ही डिस्प्ले मॉड्यूल को चुनाव वाली तारीख से पहले मशीन में लगाना होगा.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि मशीन रैंडमली पोलिंग बूथ पर भेजी जाती है .तो यह कैसे तय होगा कि किस मशीन का हार्डवेयर चेंज करना है? ये जानना किसी भी तरह से संभव नहीं है, कि किस बूथ में कौन सी मशीन है यानी ईवीएम हैक करने का यह तरीका फेल हो जाता है.

दूसरा मेथड है चिप ऑन मेमोरी मैनिपुलेशन अटैक

इसके लिए EEPROM मेमोरी के डाटा को पढ़कर बदलना होगा. यह वही मेमोरी है जहां वोट स्टोर होते हैं. सबसे बड़ी बात है कि यह पूरा काम बिना डिवाइस को खोले हुए करना पड़ेगा और क्योंकि यूनिट में दो EEPROM होती हैं जिसमें सेम डेटा होता है. दोनों ही जगहों से डेटा को मिटाना और फिर नए सिरे से रजिस्टर करना पड़ेगा. बिना डिवाइस को खोले हुए. साथ ही वीवीपैट के डाटा को भी बदलना पड़ेगा, जो असंभव और इंप्रैक्टिकल है.

अगला तरीका है सॉफ्टवेयर टैंपरिंग का,इसमें एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा मैन्यूफैक्चरिंग के दौरान कोई मैलेसियस कोड डाल दिया जाए. इसको लेकर आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने संसद में डेमो भी दिया था. जिसके अंदर एक कोड के जरिए वोट को प्रभावित किया जा सकता है. लेकिन पहला सवाल यह उठता है की एक बार में एक ही बटन दबाई जा सकती है और कोड कई अंकों के होते हैं.

साथ ही VVPAT आने के बाद वोट डालने के बाद आपको एक स्लिप VVPAT मशीन में दिखती है जो वोटिंग सुनिश्चित करती है.ईवीएम में दो यूनिट होती थी.बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट. बैलेट यूनिट की बटन कंट्रोल यूनिट में जानकारी ट्रांसफर करती हैं. क्योंकि इस व्यवस्था पर सवाल उठ रहे थे इसलिए VVPAT सिस्टम लाया गया. ये कंट्रोल यूनिट में वोट रिकार्ड करने के साथ ही एक पेपर ऑडिट ट्रेल प्रिंट करता है. जिसमें चुने गए कैंडिडेट का चुनाव चिंह होता है. ये स्लिप सात सेकंड तक डिस्प्ले होती है. कांउटिंग के दौरान कंट्रोल यूनिट से वोट गिने जाते हैं और एक्यूरेसी के लिए रैंडमली चुने गए बूथ के VVPAT वोट भी मैच करने के लिए गिने जाते हैं.

इन सभी तर्कौं से ये पता चलता है कि ईवीएम हैक करना इतना सरल नही है.बहरहाल,ईवीएम हैकिंग पर चल रही बहस पर विराम लगाने के लिए चुनाव आयोग को पूरी प्रक्रिया में और भी ज्यादा पारदर्शिता लाने की जरूरत है ताकि लोकतंत्र पर कोई आक्षेप न लगे.