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विंध्य में बेहतर स्वास्थ्य के लिए 8 एक्शन प्वाइंट्स!

WHO के मुताबिक स्वास्थ्य की परिभाषा है – वो स्थिति जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सम्पन्नता हो, न कि केवल बीमारियों या पीड़ा का न होना और ये सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है.
रूरल हेल्थ स्टैटिक्स 2020-21 के मुताबिक विंध्य क्षेत्र मे उप केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को मिलाकर कुल 1796 स्वास्थ्य केंद्र हैं.विंध्य के जिलों की बात करें उमरिया में सबसे कम 131स्वास्थ्य केंद्र हैं और रीवा में सबसे अधिक 368 स्वास्थ्य केंद्र हैं.
लेकिन इन केंद्रो पर मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत क्या है?
यही सच्चाई जानने के लिए हमने दो स्वास्थ्य केंद्रों का दौरा किया.पहला था सिरमौर तहसील के मझियार गांव का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र.

इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर इलाके के 10 से ज्यादा गांव और आबादी के लिहाज से 30 से 35 हजार ग्रामीण अपने इलाज के लिए निर्भर हैं. लेकिन यहां लगभग 5 साल से कोई डॉक्टर ही नही है.लोगों का कहना है कि जबसे पुराने डॉक्टर का रिटायरमेंट हुआ कोई नई पोस्टिंग हुई ही नहीं.केवल दो नर्स और एक चपरासी के भरोसे यहां के लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा मिल रही है.ऑनलाइन डॉक्टर इलाज कर रहे हैं,कोई भी इमरजेंसी होने पर सीधा शहर का रुख करना पड़ता है.


मझियार से भी खराब स्थिति करियाझर गांव की है. यहां 35 साल पहले एक उप स्वास्थ केंद्र का भूमिपूजन हुआ था. हमारी टीम ने बहुत तलाशा लेकिन अस्पताल का कोई नामोनिशान नहीं मिला. यहां बहुलता में गोंड जनजाति के लोग रहते हैं.उनका कहना है कि उन्हे याद ही नहीं की।इतने सालों में कभी यहां कोई अस्पताल भी था.यहां अभी भी घर में प्रसव हो जाता है.गांव की कलावती सिंह इस बात को बेहद सहजता से कहती हैं कि मेरे 3-4 बच्चे हैं और सब घर में ही पैदा हुए हैं.एंबुलेंस को फोन लगाने पर जिम्मेदार टालमटोल करते हैं,बोलते हैं रात हो गई है,रास्ता खराब है, नहीं आ पाएंगे.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में लंबे समय से कार्यरत कुछ एक्सपर्ट से हमने बात की और जानने की कोशिश की कि आखिर ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहां काम करने की जरूरत है और कैसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरी लाई जा सकती है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में 10 साल से ऊपर से काम कर रहे विवेकानंद जी ने कुछ जरूरी उपाय सुझाए.उनका कहना है कि सबसे पहले ये सुनिश्चित करना होगा की योजनाओं की जानकारी हर तबके तक पहुंचे.सेवाएं और स्कीम कैसे पहुंचे इन सब की जानकारी लोगों को होनी चाहिए,लोगों को ये भी पता हो की स्वास्थ्य केंद्रों तक कैसे पहुंचा जाए.पंचायती राज को स्वास्थ्य विभाग से साथ मिलकर काम करना होगा.समस्या ये है कि कई जगह स्वास्थ्य केंद्र या तो बने नहीं हैं या बने भी हैं तो ऐसे किसी दूर दराज इलाके में हैं कि वहां न तो एएनएम,सीएचओ जा सकते हैं ना ही गांव का कोई सामान्य व्यक्ति.

रीवा शहर में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ज्योति सिंह ने स्वास्थ्य के क्षेत्र मे समाधान के लिए विभिन्न पहलुओं पर काम करने के लिए कहा उन्होंने बताया की किस तरह से कोविड के समय जब लोग बाहर की चीज़ें नही खा रहे थे तब बीमारियां काफी कम हो गईं थी.उन्होंने एनीमिया को लेकर सिंगल प्वाइंट इंटरवेंशन का रास्ता सुझाया जिसके तहत बताया कि हर लड़की हफ्ते में दो दिन गोली खाए और है एनीमिक लड़की या औरत हफ्ते के सातों दिन दवाई खाए.उन्होंने आयरन खाने पर ज़ोर दिया.
डॉक्टर्स की गांव के इलाकों में अनुपस्थिति पर उनका कहना है कि ऐसे बहुत से डॉक्टर्स हैं जिनके अंदर काम का जुनून रहता है और वो गांव में सेवा देना चाहते हैं लेकिन वहां व्यवस्थाओं का अभाव है.अगर वो विवाहित हैं और उनके बच्चे हैं तो बेहतर शिक्षा तक ऐसी जगहों पर उपलब्ध नहीं रहती.कई जगहों पर रहने तक की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में सरकार को इस क्षेत्र में काम करने की जरूरत है क्योंकि कोई भी एमडी किया हुआ डॉक्टर ऐसी उम्मीद लेकर तो इस व्यवसाय में नहीं आता.

अनूपपुर जिले में लंबे समय से स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत ललित दुबे ने कुछ बिंदुओं पर ध्यान दिया.उनका कहना है कि स्टाफ की भारी कमी है.पहले तो उस पर काम करने की जरूरत है.दूसरा सरकार अपने स्वास्थ्य बजट का 90% हिस्सा एलोपैथी पर खर्च करती है,इसे डायवर्ट करना होगा और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर खर्च करने की जरूरत है ताकि पूरा बोझ एक ही जगह पर न पड़े.

एक्सपर्ट से बात करने पर स्वास्थ्य की बेहतरी के 8 एक्शन पॉइंट्स निकल कर आते हैं1.जरूरत के मुताबिक स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी.


2.डॉक्टर्स के लिए गांव के या दस्यु प्रभावित इलाकों में बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जाए.
3.सिंगल प्वाइंट इंटरवेंशन
4.स्वास्थ्य योजनाओं और सरकारी स्कीम की जानकारी हर तबके तक पहुंचे
5.ग्रामीण अंचलों में बेहतर सड़क निर्माण
6.पंचायती राज और स्वास्थ्य विभाग को साथ मिलकर काम करना होगा.
7.उपकरणों और सभी स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर उपलब्धता.
8.एलोपैथी पर निर्भरता को कम करना होगा.वैकल्पिक स्वास्थ्य पद्धतियों जैसे आयुर्वेद आदि पर पैसे खर्च करने की जरूरत है.