मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब हैं. घर से बाहर निकलते ही हर जगह केवल राजनीतिक दल, पार्टी कार्यकर्ता या फिर लाउडस्पीकर पर बजते पार्टियों के चुनावी वादों की आवाज़ सुनाई देती है. यही वो मौक़ा है जब प्रत्याशी ख़ुद अपनी जनता के पास, उनके घर, दुकान हर जगह वोट मांगने पहुंचते हैं. कई नए वादे भी करते हैं, लेकिन ये वादों की असलियत क्या है और पिछले चुनावी वादों का क्या हुआ ये जानने के लिए विंध्य फ़र्स्ट की टीम रीवा विधानसभा क्षेत्र के वार्ड 9 की निराला नगर बस्ती पहुंची.
इस बस्ती के लोग इतना परेशान हैं कि उनका साफ कहना था कि हम तो इस बार वोट देने जाएंगे ही नहीं. प्रत्याशी आते हैं, वोट मांगते हैं और जैसे ही जीत जाते हैं, हमारे वोट की क़ीमत को भुला देते हैं.
बस्ती के लोग पानी के लिए नाले पर आश्रित हैं, इनके लिए एक नल तक नहीं लगवाया गया है. हां, नल लगवाने के वादे जरूर किए गए. बस्ती के पास ही बोरी और पन्नियां लगाकर झुग्गी में रहने को मजबूर एक औरत का कहना था कि कोई हमें देखने वाला नहीं है. हम कब मर जाएं, हमारे साथ क्या हो जाए इसकी कोई भी खोज खबर लेने वाला नहीं है. जिस दिन कमाते हैं, उस दिन खाते हैं. जब नहीं कमाते तब खाने के लिए भी नसीब नहीं होता.
छोटे-छोटे बच्चे हैं जिन्हें लेकर लोग विपरीत हालातों में पड़े हुए हैं. ना आवास योजना का फायदा मिल रहा है, ना ही कोई और योजना इन तक पहुंच रही है. निराला नगर बस्ती के लोगों का कहना है कि हमारे पास सुअर पालन और बांस का रोजगार था, लेकिन सारे सुअरों को मार डाला गया. इस वजह से उनके रोजगार का वह साधन भी चला गया.
यहां की एक वृद्धा बताती हैं कि मेरा बेटे के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है. वृद्धा ने अपना घर भी दिखाया और बताया कि ये घर भी टूट गया था जिसके बाद उसे मुआवजे के नाम पर मात्र 2000 रूपये दिए गए. घर की हालत पूरी तरीके से क्षत-विक्षत है. उसने बताया कि बरसात के दिनों में पूरी ज़मीन धंस जाती है और अंदर पानी भर जाता है.
इन विपरीत परिस्थितियों में रह रहे लोग नेताओं के लिए एक बड़ा वोट बैंक हैं. जिन्हें यह महज़ चुनाव के वक्त याद रखते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि आते तो कमल वाले भी हैं, पंजे वाले भी हैं और झाड़ू वाले भी लेकिन इस बार हम वोट नहीं देंगे.
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