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मऊगंज: हाथ नहीं फिर भी हौसले बुलंद, पैरों से चलाते हैं लैपटॉप, कलेक्ट्रेट में मिली कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी

मऊगंज के कृष्ण कुमार केवट

कहते हैं अगर हौसले बुलंद हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होता. इस बात को मऊगंज के कृष्ण कुमार केवट ने साबित कर दिया है. गरीब परिवार में जन्में कृष्ण के दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा कमाल का है. एक गरीब परिवार में जब कृष्ण का जन्म हुआ तो मां-बाप को लोगों ने उन्हें कहीं फेंक देने या फिर गंगा किनारे बैठा देने की सलाह दी. कृष्ण की मां ने हर किसी को ये कहकर चुप करा दिया कि जैसे भी हो मेरा बच्चा है, मैं इसकी देखभाल करूंगी.

समय बीतता गया और मां-बाप की आंखे इस इंतजार में पथरा गईं कि आखिर कृष्ण कब चलना सीखेगा. दोनों हाथ न होने की वजह से कृष्ण को चलना सीखने में काफी वक्त लगा लेकिन आखिरकार वो दिन आ ही गया जब उसने दो पैरों पर चलना सीख लिया. अब बारी थी स्कूल जाने की लेकिन समस्या सबसे बड़ी यही थी कि बिना हाथ के कैसे लिखेगा. एक दिन कृष्ण के पिता रामजस केवट ने ये फैसला कर लिया कि वो उसे स्कूल लेकर जाएंगे फिर जो होगा देखा जाएगा. 

पहले दिन जब कृष्णा स्कूल पहुंचा तो बच्चों के बीच उसका भी मन लग गया. वहीं से कृष्ण की पढ़ाई का सफर शुरू हो गया. रोज सुबह मां कृष्ण को तैयार कर पिता के साथ स्कूल भेजती, फिर स्कूल में पिता कुछ देर कृष्ण के साथ बैठते और उन्हें पैर से पेन पेंसिल पकड़कर लिखना सीखाते. इन सबमें कृष्ण को उनके साथ बैठने वाले बच्चों का भी काफी सहयोग मिला. 

आखिर कृष्ण ने लिखना सीखा और लिखावट ऐसी कि कोई देख कर ये कह न पाए कि पैरों से लिखा गया है. कृष्ण में कुछ कमी तो थी लेकिन उसने इस कमी को कभी जिंदगी के आड़े नहीं आने दिया. 12-12 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचते थे क्योंकि साइकिल भी नहीं चला सकते थे फिर भी पढ़ाई मन लगाकर की और बारहवीं क्लास में टॉप कर अपने मां-बाप का नाम रोशन कर दिया.

जिस कृष्ण के लिए रोटी का एक निवाला भी दूसरों की मदद के बिना खा पाना संभव नहीं था, उसे सीएम से सम्मानित होने का मौका मिला. जब सीएम ने वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए कृष्ण को हाथ लगवाने और पढ़ाई का पूरा खर्च देने का वादा किया तो पूरे परिवार में मानों खुशी की लहर दौड़ गई. 

दिन बीते और इलाज के लिए कृष्ण इंदौर पहुंच गए, लेकिन उम्मीदों में उस वक्त फिर पानी फिर गया जब डॉक्टर ने कहा हाथ तो लग जाएंगे लेकिन काम नहीं करेंगे. जितनी खुशी के साथ कृष्ण इलाज के लिए गए थे, उतना ही निराशा के साथ घर लौट आए. धीरे-धीरे कृष्ण के साथ उनके परिवार की भी उम्मीदें टूटने लगीं. पढ़ाई और इलाज के लिए किया गया सीएम का वादा केवल वादा ही रह गया. जिस कृष्ण की वजह से लोग मऊगंज को जानने लगे थे वो कृष्ण एकबार फिर गुमनामी की तरफ बढ़ रहा था. मजदूर मां-बाप ने जैसे तैसे कृष्ण को बीए और फिर डीसीए करवाया.   

इस परिवार के लिए उम्मीद की किरण एकबार फिर जाग उठी जब जिले में अजय श्रीवास्तव कलेक्टर बनकर आए. अजय श्रीवास्तव को जब कृष्ण के बारे में पता चला तो वो घर पहुंच गए, कृष्ण को आउटसोर्सिंग के जरिए कलेक्ट्रेट में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी दी. साथ ही पढ़ाई के लिए हर संभव मदद का वादा भी किया. अजय श्रीवास्तव ने कृष्ण को घर से ही काम करने की सलाह भी दी है ताकि वो बचे हुए समय में पढ़ाई कर सकें और IAS बनने का सपना पूरा कर सकें. 

देखिए कृष्ण के संघर्ष से लड़ते बुलंद हौसले की कहानी