मध्य प्रदेश के रीवा जिले के वार्ड 44, चिरहुला कॉलोनी में नगर निगम प्रशासन ने 40 सालों से बसे 20 घरों को गिरा दिया. इस कार्रवाई के कारण 40 परिवार बेघर हो गए और उन्हें अब खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. बुधवार, 19 फरवरी की शाम 5 बजे प्रशासन ने मुनादी कराई कि अगले दिन सुबह अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई होगी, आप लोग अपना-अपना घर खाली कर लें. गुरुवार, 20 फरवरी की सुबह 8 बजे, पुलिस बल और जेसीबी मशीनों के साथ नगर निगम की टीम मौके पर पहुंची और कुछ ही घंटों में इन घरों को मलबे में तब्दील कर दिया. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन हमें कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने तक का समय नहीं दिया.

हमने वोट दिया, बिल भरा, फिर भी घर अवैध कैसे?
स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे सालों से बिजली-पानी के बिल भरते आ रहे थे, तो अचानक उनका घर अवैध कैसे हो गया? एक मजदूर ने आंसू बहाते हुए कहा, हमने मेहनत करके यह घर बनाया था. सरकार ने हमें राशन दिया, वोट लिया, लेकिन एक झटके में हमें सड़क पर ला दिया. हम लोग रोड पर खाना बना रहे हैं. आखिर यह कैसा न्याय है?
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बच्चों की पढ़ाई बाधित, परिवार सड़क पर
इतना ही नहीं इस कॉलोनी में जो बच्चे रह रहे हैं उनके वार्षिक परिक्षाएं चल रही हैं. लेकिन अफसोस की वे बेचारे बिना परिक्षा में बैठे ही असफल हो गए हैं. क्योंकि उन्होंने परीक्षा दी ही नहीं. बच्चों के माता-पिता कहते हैं कि ये स्कूल जाएं कैसे इनके कॉपी-किताब, झोला और ड्रेस सब इसी मलबे में दब गया है. अब आखिर बच्चे स्कूल कैसे जाएं?

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नगर निगम प्रशासन का क्या कहना है?
जब इस मुद्दे पर नगर निगम प्रशासन से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि यह सरकारी ज़मीन थी और जिसे अतिक्रमण मुक्त कराना ज़रूरी था. उनका कहना है कि हमने इन्हें दो-तीन महीने पहले खाली करने को कहा था. लेकिन इन लोगों ने प्रशासन की बात नहीं मानी. साथ ही उनका यह भी कहना है कि ये लोग सिर्फ रीवा जिले रहवासी नहीं हैं, इनमें अन्य जिले के लोग भी थे. वहीं वकीलों का कहना है कि बिना पुनर्वास योजना के इस तरह की कार्रवाई करना बिल्कुल गलत है.