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Toggleबेटी बचाओ से बेटी चुनाव जिताओ तक: भारत की यात्रा अधूरी क्यों?
बेटी बचाओ से बेटी चुनाव जिताओ तक: राजनीति में महिलाओ की वर्तमान स्थिति सुधरी तो जरुर है लेकिन ये स्थिति संतोषजनक नही है.ऐसे कई कदम है जिनको उठाने की जरुरत आज के वक़्त में काफी जरुरी है.
वर्तमान घटनाक्रम
गुजरात उपचुनाव के लिए जिला अध्यक्षों की सूची तैयार की गयी जिसमे कांग्रेस पार्टी ने चालीस सीटो के लिए अपने नाम दिए,इन चालीस नामो में केवल एक नाम महिला का दर्ज था, वही बात करे अगर बीजेपी की तो इनकी लिस्ट में दो महिलाओ का नाम शामिल है.ये दोनों ही राष्ट्रिय पार्टिया हमेशा ही राजनीति में महिलाओ की भूमिका को बढ़ाने का वादा करती हैलेकिन इन वादों से इतर हकीकत कुछ और ही दिख रही है.
महिला आरक्षण बिल 2023
समान पॉलिटिकल रिप्रजेंटेशन की दिशा में साल 2023 में एक बिल पास होता है जिसे महिला आरक्षण कानून के नाम से जाना जाता है.इस बिल की ख़ास बात यही है की संसद में ज्यादा से ज्यादा महिलाये चुनकर पहुंचे.लोकसभा और विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं की लिए आरक्षित की जाये.ये बिल अपने आप में एक माइलस्टोन कहा जाता है क्यूकि 27 सालो से ये बिल बहुमत हासिल नही कर पाया था.हालांकि इस नियम को 2029 के चुनाव में लागू किया जाएगा.
इस बिल के पास होने के बाद 14 राज्यों में चुनाव हुए है.माय नेता app का डेटा बताता है की इसमें केवल 10 प्रतिशत महिलाओ का रीप्रेजेंटेशन हुआ.जहां असम में ये 4.9 % रहा तो वहीं ओडिशा में 14.9%रहा. 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में केवल 9.6% महिला उम्मीदवार शामिल हुई थी.अगर अभी से कोई कदम नही उठाये जाते है तो क्या चार साल बाद अपने से महिलाये चुनाव के मैदान में आ पाएंगी.
महिलाओ का प्रतिनिधित्व कम होने का कारण
आज भी हमारे समाज में बहुत सारे लोग मानते हैं कि पुरुष ही नेतृत्व कर सकते हैं.महिलाओं को कमजोर या कम समझदार माना जाता है, जिससे उन्हें राजनीति जैसी बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए योग्य नहीं समझा जाता.हमारे समाज में महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वो घर देखें, बच्चों की देखभाल करें और परिवार को संभालें. राजनीति को एक “पुरुषों का क्षेत्र” माना जाता है, इसलिए लड़कियों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि उन्हें इस दिशा में नहीं सोचना चाहिए.राजनीति में काम करने वाली महिलाओं को कई बार धमकियां मिलती हैं, बदतमीज़ी झेलनी पड़ती है, और सोशल मीडिया पर भी उन्हें परेशान किया जाता है। इससे बहुत सी महिलाएं राजनीति से दूर रहना ही ठीक समझती हैं.
आगे की राह क्या हो सकती है
सभी पार्टीज में ऐसा कोटा सिस्टम होना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा महिलाये सक्रिय राजनीति में हिस्सा ले सके.हालांकि आइसलैंड,फ़िनलैंड,साउथ अफ्रीका,और न्यूजीलैंड इन देशो में हेल्थी वीमेन रिप्रजेंटेशन होता है बिना किसी कोटा सिस्टम के.
इसके साथ ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी में महिलाओ को डिसिजन मेकिंग अथॉरिटी बनाया गया है जिससे महिलाओ की नेतृत्व क्षमता का सही से इस्तेमाल हो सके.इन सबके साथ महिलाओ को सुरक्षित माहौल देना प्राथमिक जरुरत है.