Vindhya First

विंध्य की सियासी पिच पर बागी पलट देते हैं जीती हुई बाज़ी

विंध्य की सियासत में बागियों और दलबदलुओं ने हमेशा उलट फिर किया है. 1951 से अब तक हुए कई चुनावों में पार्टी से बगावत कर दल बदलने वाले प्रत्याशियों ने पार्टी को नुक़सान पहुंचाया है, फिर भले ही वे खुद जीत का चौका लगाने से पहले ही आउट हो गए. इस चुनाव में भी बगावत का दौर शुरू हो गया है.

रीवा से कद्दावर नेता रहे श्रीनिवास तिवारी की नाती सिद्धार्थ तिवारी, सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ला, नागौर से पूर्व विधायक अरविंद सिंह, चित्रकूट से सुभाष शर्मा डोली और सतना से रत्नाकर चतुर्वेदी ने बगावती तेवर दिखाए हैं. मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी के तेवर तो शुरू से ही बागी रहे हैं.

इस बगावत के नतीजे क्या किस तरह उलटफेर करेंगे ये जानने के लिए विंध्य फ़र्स्ट की इस रिपोर्ट का वीडियो ज़रूर देखिए

1990 की बगावत
चित्रकूट में 1990 में कांग्रेस ने रामचंद्र वाजपेई को अपना प्रत्याशी बनाया था. तब कांग्रेस से दावेदार रहे प्रेम सिंह को यह टिकट वितरण रास नहीं आया और उन्होंने कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा. नतीजा जनता दल से रामानंद सिंह 28813 वोट पाकर जीत गए, प्रेम सिंह को 16264 और वाजपेई को 14460 वोट मिले. लिहाजा यहां बगावत ने कांग्रेस प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. अमरपाटन में 1990 में ही कांग्रेस ने राजेंद्र कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया. टिकट वितरण का जिम्मा अर्जुन सिंह के पास था. दूसरे खेमे के कांग्रेस के दावेदार गुलशेर अहमद ने तब बगावत कर दी थी और निर्दलीय चुनाव लड़े. नतीजा जब आया तो 32616 वोट के साथ भाजपा के रामहित गुप्ता चुनाव जीत गए थे और राजेंद्र सिंह 25683 वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे. गुलशेर अहमद 12218 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे.

1998 में कांग्रेस और भाजपा की हार
नागौर में 1998 में कांग्रेस ने राजाराम त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया, लेकिन राम प्रताप सिंह असंतुष्ट रहे और बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़े. नतीजा बागी राम प्रसाद सिंह 31586 वोट के साथ विजयी घोषित हुए, जबकि राजाराम त्रिपाठी 12308 वोट के साथ चौथे स्थान पर चले गए. भाजपा राजघराने के रामदेव सिंह तब 22625 वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे. 1998 में ही सतना विधानसभा की भी एक बगावत काफी चर्चित रही. यहां के शंकर लाल भाजपा से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने मांगे राम गुप्ता को प्रत्याशी बनाया इससे नाराज शंकरलाल ने बगावत का रास्ता चुना और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े. नतीजा जब आया तो इस बगावत का फायदा कांग्रेस को मिला और शाहिद अहमद 33408 वोट से विधायक निर्वाचित हुए. शंकर 3983 बोर्ड के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि मांगेराम 13302 बोर्ड के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गए.

2013 में भी हुआ था बड़ा उलटफेर
2013 के चुनाव में दो निर्दलीयों ने बड़ा उलटफेर किया. गुढ़ से कपिध्वज सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और 2510 वोट हासिल किया. इसका सीधा असर भाजपा के नागेंद्र सिंह पर हुआ. पूर्व में दोनों गुट साथ रहते थे तब इस चुनाव में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी जीते. मऊगंज में मंत्री राजेंद्र शुक्ला के भाई विनोद शुक्ला ने भी भाजपा से बगावत की और निर्दलीय चुनाव लड़े, उन्हें 13097 वोट मिले. इससे भाजपा प्रत्याशी के समीकरण बिगड़ गए और कांग्रेस के सुखेंद्र सिंह बन्ना जीते.

2018 में दोहरी बगावत
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शंकर लाल तिवारी को अपना प्रत्याशी घोषित किया था. इस दौरान तक भाजपा में रहे पुष्कर सिंह ने बगावत कर बसपा पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा तो भाजपा की कोषाध्यक्ष रामू रामगुप्ता भी बगावत करते हुए सपाक्स से चुनाव मैदान में आए. इस दोहरी बगावत का नतीजा यह रहा कि शंकर लाल तिवारी 47547 बोर्ड के साथ दूसरे स्थान पर आ गए जबकि इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाहा को मिला और वह 60105 वोट के साथ विधायक निर्वाचित हुए. हालांकि बागी पुष्कर 35064 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे तो 7984 बोर्ड से रामू राम चौथे स्थान पर आ गए.

बागी किस तरह चुनावी नतीजे प्रभावित करते हैं ये जानने के लिए पूरा वीडियो ज़रूर देखें