मध्यप्रदेश के रीवा ज़िले की कई ऐसी ख़ास चीजें हैं जिनकी चर्चा देश ही नहीं दुनिया भर में होती है. रीवा न केवल प्राकृतिक संपदाओं से बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी संपन्न है. रीवा में दुनिया का इकलौता महामृत्युंजय का मंदिर है. जिसे रीवा रियासत के महाराज विक्रमादित्य ने बनवाया था. इसकी धार्मिक मान्यता ऐसी है कि किसी भी शुभ काम की शुरुआत अगर महामृत्युंजय के दर्शन से हो तो सफलता ज़रूर मिलती है. यह अनोखा शिवलिंग रीवा जिले के किले परिसर में स्थित है. 1001 छिद्रों वाला यह शिवलिंग है, जो अलौकिक शक्ति देने वाला है. जहां हर दिन सैकड़ों की तादात पर भक्त भगवान महामृत्युंजय के दर्शन करने पहुंचते हैं.
रीवा किला परिसर के महामृत्युंजय मंदिर में विराजे शिवलिंग की बनावट बिल्कुल अलग है. ऐसा शिवलिंग विश्व के किसी भी कोने में देखने को नहीं मिलेगा. भगवान महामृत्युंजय के सहस्त्र नेत्र धारी हैं. रीवा के भगवान महामृत्युंजय को लेकर लोगों में ऐसी मान्यता है कि भगवान महामृत्युंजय अकाल मृत्यु से बचाते हैं. साथ ही अगर कोई असाध्य बीमारी है तो उसे भी दूर करते हैं.
इसी मान्यता के चलते यहां दूर-दूर से श्रद्धालु महामृत्युंजय भगवान के दर्शन करने आते है. महाशिवरात्रि, बंसत पंचमी और सोमवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. इन खास दिनों में भक्त महामृत्युजयं के दर्शन के साथ ही जलाभिषेक, जाप हवन जैसी चीजों के साथ पूजा-अर्चना करते है. महामृत्युंजय मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहाँ से कोई ख़ाली हाथ नहीं जाता. यहां हर मनोकामना पूरी होती है और सारे कष्ट दूर होते हैं.
महामृत्युंजय मंदिर लगभग 500 वर्ष पहले बघेल रियासत के महाराज ने बनवाया था. बांधवगढ़ से राजा यहां शिकार के लिए आए थे. शिकार के दौरान राजा ने देखा कि एक शेर चीते को दौड़ा रहा है. जब वह मंदिर के समीप आए तो शेर चीते का शिकार किए बिना ही वापस लौट गया. राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए. तब राजा ने यहां खुदाई करवाई जहां से महामृत्युंजय भगवान की शिवलिंग निकली. कुछ इस तरह से भगवान महामृत्युंजय का इतिहास बताया जाता है.
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