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डॉक्टर से जानें, कफ़ सिरप का नशा विंध्य में क्यों, क्या है मेडिकल ट्रीटमेंट?

नशे की आदत कब लत बन जाती है और शरीर को धीरे-धीरे खोखला करने लगती है, इलाज क्या है? इन सभी बिन्दुओं पर और कफ़ सिरप के नशे पर हमारे एक्सपर्ट्स का क्या कहना है? पढ़िए.

नशे की सामान्य और जटिल स्थिति
मनोचिकित्सक डॉ. रॉबिन गोयल कहते हैं- पेशेंट हमारे पास तब आता है जब उसकी परेशानी बढ़ चुकी होती है. यानी उसको हेल्प या इलाज की आवश्यकता होती है. विंध्य में बहुतायत में कफ सिरप का नशा चलता है. एक टेबलेट आती है स्पास्मो प्रोक्सीमन इसके अंदर मॉर्फिन डेरिवेटिव होते हैं. सरल भाषा में कहें तो अफीम के डेरिवेटिव होते हैं, व्यक्ति को नशे की आदत बहुत जल्दी पड़ती है. धीरे-धीरे यही आदत उसकी मजबूरी बन जाती है.

व्यावहारिक लक्षण
यदि वो नशा नहीं लेता तो उसको विड्रॉल सिमटम्स होने लग जाते हैं जो कि, कोडीन में सबसे ज्यादा होता है. इससे हाथ पैर में बहुत ज्यादा दर्द होना, नींद न लगना, चिड़चिड़ापन, गुस्सा करना और बेचैनी होना शामिल है. पागलपन के साथ कई बार व्यक्ति को काल्पनिक चीजें दिखाई-सुनाई देने लग जाती हैं. डर, शंका करने लग जाता है. इन प्रभावों को हम साइकोटिक सिमटम्स कहते हैं.

विंध्य में मेडिकल नशा क्यों
मनोचिकित्सक डॉ. रॉबिन गोयल कहते हैं- कफ़ सिरप हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है. हम लोगों ने बाहर भी काम किया है. पढ़ाई बाहर की है वहां ये चीजें इतनी बहुतायत में नहीं थी जितनी अपने क्षेत्र में हैं. मुझे 12 साल का यहां काम करने का तजुर्बा है. अवेलेबिलिटी सबसे बड़ी वजह है. यहां ये नशे उपलब्ध हैं. शहरी इलाकों में तो फिर भी कम है लेकिन, ग्रामीण अंचल में ये बहुत ज्यादा है. अब वो चाहे कोरेक्स हो, चाहे गोलियां खाना या गांजे का सेवन हो. अवेलेबिलिटी के अलावा एक फैक्टर है कॉस्ट का. इनिशियल पार्ट में व्यक्ति को लगता है कि, बहुत सस्ता है. क्योंकि, पहले उसको एक गोली खाने में नशा आ जाता है या एक कफ सिरप की बोतल में तीन चार लड़के बैठके पी लेते हैं. तो उनको यह बहुत सस्ता लगता है. आपको अचंभा होगा कि, मैंने ऐसे पेशेंट्स देखे हैं जो दिन में 100-100 गोली स्पास्मो प्रॉक्सीवन खाते हैं या 20-20 बोतल कोरेक्स पीते हैं. इंजेक्शन लगाते हैं क्योंकि अब उनको वो डोज असर ही नहीं करता. तीसरा बड़ा कारण है संगत का असर. ग्रुप में 10 लोग हैं 10 में से तीन लोग नशा करते हैं 7 नहीं करते तो वो हर बार बोलेंगे आओ थोड़ा तुम भी ले लो. व्यक्ति कब तक मना करेगा? वो उसका सेवन जहां शुरू कर देगा थोड़े दिनों बाद उसका आदी हो जाएगा.

रीहैब के बाद भी होता है रीलैप्स
मनोचिकित्सक डॉ. रॉबिन गोयल कहते हैं- 50 फ़ीसदी पेशेंट रीहैब में इंप्रूव करते हैं और 50 फ़ीसदी पेशेंट रीलैप्स करते हैं. रीलैप्स की सबसे बड़ी वजह है माहौल. ग्रामीण अंचल में लोग काम ही नहीं कर रहे या व्यस्तता नहीं है. मित्र मंडली में घूम रहा हो. बहुत दिन एडजस्ट करने की कोशिश करता है. पर जहां वो शुरू करता है, उसका वह पुराना सिस्टम एक्टिवेट हो जाता है.

नशे का मेडिकली ट्रीटमेंट
डॉ. रॉबिन गोयल कहते हैं- नशे के ट्रीटमेंट के दो बेसिक प्रिंसिपल्स होते हैं. सबसे पहला हमारा टारगेट होता है कि, जब व्यक्ति नशा छोड़ता है तो उसे प्रॉब्लम या परेशानी नहीं होनी चाहिए. अर्थात उसको विड्रॉल सिमटम्स नहीं होने चाहिए. इस फेज को हम डिटॉक्सिफिकेशन कहते हैं. इसमें हम उन दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं जिससे उसको नशा छोड़ने में परेशानी न हो. यानी जब वो नशा छोड़े तो उसके हाथ पैर में दर्द न हो, उसको नींद सही से आ जाए.
सेकंड फेज आता है एंटी क्रेविंग का. ये वो फेज होता है, जिसमें हम उन मेडिसिंस को यूज करते हैं, जिससे उसके नशा करने की इच्छा में कमी आ जाती है. यदि हम पहले ही एंटीक्रेविंग दे देंगे और डिटॉक्सिफाई नहीं करेंगे तो उसको रिएक्शन होगा. कई सारी इस तरीके की मनोवैज्ञानिक थेरेपी जिसको हम साइकोथेरेपी कहते हैं.
पूरी जानकारी के लिए देखिए ये वीडियो.