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RTI: सूचना का अधिकार कानून कितना कामयाब? पढ़िए आरटीआई एक्टिविस्ट संजय सिंह की कहानी

संजय बताते हैं कि आईडीएसएमटी योजना के तहत नगर निगम ने 54 लाख का नाला मंजूर किया था. उस नाले के निर्माण में हुई गड़बड़ी के संबंध में मैने पहली बार साल 2012 में RTI लगाई थी. 49 साल के संजय सिंह (Sanjay Singh) पेशे से केमिस्ट हैं और अपना मेडिकल स्टोर चलाते हैं. हालांकि विंध्य सहित रीवा की जनता इन्हें एक RTI (सूचना का अधिकार) एक्टिविस्ट के तौर पर अधिक जानती है.

49 साल के संजय सिंह (Sanjay Singh) पेशे से केमिस्ट हैं और अपना मेडिकल स्टोर चलाते हैं. हालांकि विंध्य सहित रीवा की जनता इन्हें एक RTI (सूचना का अधिकार) एक्टिविस्ट के तौर पर अधिक जानती है. साल 2005 में सूचना का अधिकार क़ानून (Right to Information Act 2005) लागू होने के बाद से संजय सिंह अभी तक हज़ार से अधिक RTI लगा चुके हैं. इनमें से कई RTI के जवाब आज तक नहीं मिले. इतना ही नहीं सूचना का अधिकार लगाने वाले संजय सिंह को कई बार जान से मारने की धमकियां भी मिली. ऐसे में विंध्य की जनता को RTI एक्टिविस्ट संजय सिंह की कहानी जरूर जाननी चाहिए. साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि संजय को क्यों लगा कि, RTI एक्टिविस्ट बनना चाहिए?

संजय सिंह बताते हैं कि पहले किसी ऑफिस में जाकर बाबू से जानकारी मांगते थे तो बहुत दिक्कतें होती थीं. लेकिन फिर जैसे ही आरटीआई एक्ट लागू हुआ तो लगा कि नहीं अब बहुत सारे लोगों को सही कागजात मिल सकते हैं और भ्रष्टाचार करने वालों पर सही कार्यवाही भी हो सकती है. आज के समय में कर्मचारी, अधिकारी और नेता मिलकर भ्रष्टाचार करने में लगे हुए हैं. संजय बताते हैं कि आईडीएसएमटी योजना के तहत नगर निगम ने 54 लाख का नाला मंजूर किया था, उस नाले के निर्माण में हुई गड़बड़ी के संबंध में मैने पहली बार साल 2012 में RTI लगाई थी. एक बार RTI लगाने पर जवाबदेह व्यक्ति ने कहा था कि आप इसको वापस कर लो नहीं तो किसी दिन गोली मरवा दिए जाओगे. लेकिन मैंने RTI वापस नहीं ली. मैने कहा कि आपकी गोली में यदि मेरा नाम लिखा होगा तो कोई बात नहीं. फिर बहुत लोग मेरी जान के पीछे लगे रहते थे यहां तक की पुलिस का भी सहयोग नहीं मिलता था.

किन चुनौतियों का सामना करते हैं RTI एक्टिविस्ट
संजय सिंह के मुताबिक RTI एक्टिविस्ट के जीवन में कई चुनौतियां होती हैं. एक RTI एक्टिविस्ट की ज़िन्दगी आसान नहीं है.  बहुत सारे लोग जो ईमानदारी से काम कर रहे हैं उनके ऊपर हमले हो रहे हैं, उनकी हत्याएं हो गईं. मेरे ऊपर दो बार स्वयं हमला हुआ है. कई सारे आरटीआई एक्टिविस्ट ऐसे भी हैं जिन्होंने इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया. RTI लगा कर के अधिकारियों से पैसा लेना, लोगों को धमकाना शुरू कर चुके हैं. इस एक्ट का दुरुपयोग करने वाले लोगों के ऊपर शासन किसी तरह का बैन लगा सके या फिर वो दोबार कभी आरटीआई ना लगा सकें ऐसा नियम नहीं है.

नहीं मिला इस RTI का जवाब
संजय सिंह बताते हैं मैंने एक बहुत पहले केंद्र सरकार में आरटीआई लगाई कि क्या भारत आजाद है. आज तक उसकी मुझे जानकारी नहीं मिली. क्या हमारा बहुत सारा टैक्स का पैसा ब्रिटेन को जाता था इसका जवाब नहीं दिया. रेलवे में लंबाई और वजन के आधार पर सीट मिल सके इसके लिए क्या नियम है, आरटीआई में इसका कोई सही जवाब नहीं मिला. रीवा के लक्ष्मण बाग संस्थान की बद्रीनाथ में स्थित जमीनें बेची गई. इतना ही कई आरटीआई लगाने के कारण मेरा बंदूक का लाइसेंस भी सरकार ने निरस्त कर दिया और सरकार के द्वारा मिली सुरक्षा को भी वापस ले लिया गया.

हर साल 60 लाख आरटीआई 
आरटीआई इकलौता ऐसा कानून है, जहां सरकार को कानून का पालन करना है, बाकि सभी कानून आम जनता के लिए बनाए जाते हैं. साल 2005 में ये कानून तो आ गया, लेकिन इसे लेकर सरकारों में कभी भी कड़ायी से लागू करने की मंशा नहीं रही. भारत एक ऐसा देश है जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा सूचना के अधिकार का इस्तेमाल होता है. आंकड़े बताते हैं कि समाज का निचला तबका सबसे ज़्यादा आरटीआई डालता है. देश भर में हर साल लगभग 60 लाख आरटीआई डाली जाती हैं.

सुनिए RTI एक्टिविस्ट संजय सिंह की कहानी उनकी जुबानी।।