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Gama Pehlwan: वर्ल्ड चैंपियन गामा पहलवान की कहानी, महाराजा गुलाब सिंह ने दी थी “रीवा केसरी” की उपाधि

गामा पहलवान का जन्म आभिवाजित भारत में हुआ था. लेकिन बंटवारे के समय गामा अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए. पाकिस्तान जाने के बाद भी गामा रीवा आते थे. पहलवानी के शुरुआती गुण रीवा में सीखने की वजह से गामा का यहां से खास लगाव था. रीवा में गामा पहलवान की याद में एक स्टेडियम और एक पहलवानी अकादमी भी खोली गई थी.

विंध्य क्षेत्र के रीवा (Rewa) में गामा पहलवान (Gama Pehlwan) का नाम हमेशा अदब और सम्मान के साथ लिया जाता है. गामा पहलवान कुश्ती (Wrestling) की दुनिया में हमेशा अपराजित रहे. गामा का नाम कुश्ती के क्षेत्र में दुनिया भर के पहलवानों के बीच एक अलग की शख्सियत को बताता है. हालांकि इस शख्सियत के बारे में बहुत कम ही लोग ये जानते होंगे कि गामा पहलवान का विंध्य क्षेत्र के रीवा से खास नाता रहा है. महाराजा गुलाब सिंह (Maharaja Gulab Singh) ने गामा पहलवान को “रीवा केसरी” की उपाधि दी थी.

बता दें कि गामा पहलवान का जन्म 22 मई 1878 को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दतिया जिले में हुआ था. गामा का परिवार मूल रूप से रीवा का निवासी था. लेकिन, गामा का ननिहाल दतिया में था. बताया जाता है कि गामा पहलवान की खुराक एक समय में पांच किलो दूध व उसके साथ सवा किलो बादाम थी. खास बात यह है कि इस 10 किलो दूध को उबाल कर पांच किलो किया जाता था. गामा ने कुश्ती की शुरुआती बारीकियां मशहूर पहलवान माधो सिंह से सीखीं थी. गामा एक ऐसे पहलवान थे, जिन्होंने कभी कोई कुश्ती नहीं हारी.

महाराजा गुलाब सिंह ने बनाया था अपना पहलवान
रीवा के महाराजा गुलाब सिंह को जब गामा पहलवान के बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने गामा को अपने राज्य में बुलाया और उन्हें रीवा रियासत का पहलवान बनाया. महाराजा गुलाब सिंह ने गामा को विशेष रूप से रीवा में ट्रेनिंग के लिए एक पहलवानी अकादमी भी स्थापित की थी. गामा ने रीवा में कई साल तक कुश्ती की ट्रेनिंग ली और महाराजा गुलाब सिंह के समर्थन से विश्व स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. गामा ने रीवा अखाड़ा घाट में ही कुश्ती के दांव पेंच सीखकर देश के साथ विदेशों में भी उस समय के नामी पहलवानों से कुश्ती लड़ी और अपना परचम लहराया, साथ ही रीवा को एक अलग पहचान दी. गामा ने रीवा में ही अपनी सबसे प्रसिद्ध कुश्ती लड़ी थी, इसमें उन्होंने दुनिया के सबसे मजबूत पहलवानों को शिकस्त दी थी.

गामा पहलवान को “रीवा केसरी” की उपाधि
दुनिया के सबसे मजबूत पहलवानों को शिकस्त देने वाले गामा पहलवान से महाराजा गुलाब सिंह बहुत प्रभावित हुए. इस जीत की खुशी में उन्होंने गामा पहलवान को “रीवा केसरी” की उपाधि दी थी. यह उपाधि गामा पहलवान की महानता का प्रतीक थी. इतना ही नहीं रीवा में गामा पहलवान की याद में एक स्टेडियम और एक पहलवानी अकादमी भी खोली गई थी.

खुद से बड़े पहलवान को किया चित्त
गामा का मुकाबला 1895 में देश के सबसे बड़े पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला से हुआ था. रहीम बख्श की हाइट 6 फीट 9 इंच थी, जबकि गामा पहलवान केवल 5 फीट 7 इंच के थे. इस मुकाबले रहीम बख्श गामा से जीत नहीं पाए और मुकाबला बराबरी का रहा. इसके बाद गामा पूरे देश में मशहूर हो गए. 1910 के दौरान गामा ने ब्रिटेन में विदेशी पहलवानों को धूल चटाने की चुनौती दी थी. गामा ने ब्रिटेन के बड़े पहलवानों में शामिल स्टैनिसलॉस जेविस्को और फ्रेंक गॉच को साढ़े 9 मिनट में हराने की चुनौती दी थी. 10 सितंबर 1910 को दोनों के बीच हुए मुकाबले में गामा ने पहले ही मिनट में जैविस्को को पटक दिया. इसके बाद 19 सितंबर को फिर मुकाबला होना था लेकिन जेविस्को अखाड़े में ही नहीं आए.

1927 में लड़ी आखिरी कुश्ती
गामा पहलवान ने अपनी आखिरी कुश्ती 1927 में लड़ी. इसमें उनका मुकाबला स्वीडन के पहलवान जेस पीटरसन से हुआ. गामा ने पीटरसन को हराने के बाद कुश्ती को अलविदा कह दिया. गामा ने देश-विइेश में करीब 50 से ज्यादा पहलवानों को चित किया. खास बात यह है कि पूरी दुनिया में गामा पहलवान को कोई नहीं हरा पाया, जिसके चलते उन्हें वर्ल्ड चैंपियन कहा जाता है.

बंटवारे में पाकिस्तान चले गए गामा
गामा पहलवान का जन्म आभिवाजित भारत में हुआ था. लेकिन भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय गामा अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान जाने के बाद भी गामा रीवा आते थे. पहलवानी के शुरुआती गुण रीवा में सीखने की वजह से गामा का यहां से खास लगाव था. गामा की मृत्यु 23 मई 1960 को पाकिस्तान के लाहौर में हुई थी. रुस्तम-ए-हिंद’ के नाम से गामा पहलवान आज दुनिया में मशहूर हैं. बता दें कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पत्नी कुलसुम नवाज, गामा पहलवान की ही पोती थीं.

गामा पहलवान के कारनामे जानने के लिए देखिए ये वीडियो।।